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अग्निपथ में भर्ती के लिए बेक़रार नेपाल के नौजवान, सियासत पर अटकी बात

Getty Images भारतीय गोरखा रेजिमेंट के सैनिक लखनऊ में एक कार्यक्रम में अपना कौशल प्रदर्शित करते हुए (फाइल फोटो)

भारत के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में लिखा है कि वे सेना में शुरू की गई 'अग्निपथ' सैन्य भर्ती योजना को रद्द कर देगी.

कांग्रेस पार्टी के इस रुख़ के बाद नेपाल में इस योजना के असर का मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है.

भारत सरकार ने दो साल पहले अग्निपथ नाम की ये स्कीम शुरू की थी.

इसके बाद नेपाल ने नेपाली युवाओं को भारतीय सेना में शामिल नहीं होने के लिए कहा था. तब से ये भर्ती रुकी हुई है.

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इसकी वजह से एक ओर भारतीय सेना में भर्ती होने का सपना देखने वाले कई नेपाली नागरिक इस भर्ती नीति बदलने के इंतज़ार में हैं तो दूसरी ओर कुछ विश्लेषकों के मुताबिक़, 'अग्निपथ' भर्ती योजना के कारण दोनों देशों के बीच दो सौ सालों के सैन्य संबंधों की विरासत ख़तरे में है.

भारत की अग्निपथ योजना के तहत भर्ती होने वालों में से सिर्फ़ 25 फीसदी जवानों को ही स्थाई सेवा में रखने के प्रावधान है. बाक़ी बचे 75 फ़ीसदी को सिर्फ़ चार साल की ही सर्विस का प्रावधान है.

नेपाल सरकार को ये नीति पसंद नहीं आई और इसलिए उसने अपने युवाओं की अग्निपथ स्कीम के तहत भर्ती पर रोक लगा दी.लेकिन ऐसा लगता है कि इससे नेपाली युवाओं की योजनाओं पर असर पड़ा है.

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  • इंतज़ार में नेपाली युवा NAVIN TAMANG नवीन तमांग का कहना है कि वह भारतीय सेना भर्ती खुलने का इंतजार कर रहे हैं

    नेपाल के भोजपुर के शादानंद नगर पालिका के नवीन तमांग ने भविष्य में भारतीय गोरखा पलटन में भर्ती खुलने की उम्मीद नहीं छोड़ी है.

    12वीं की पढ़ाई पूरी कर चुके 21 साल के नवीन तमांग कहते हैं कि जब नेपाल सरकार देश के भीतर रोज़गार पैदा नहीं कर पा रही है तो उसे भारत में मिलने वाली नौकरी पर रोक नहीं लगानी चाहिए.

    नवीन तमांग कहते हैं, "मेरे बाप-दादा भी भारतीय सेना में थे. मैं भी यही चाहता था क्योंकि इसके अलावा कोई चारा नहीं था. लेकिन हमारे जैसे हजारों युवा अब मुसीबत में हैं क्योंकि नेपाल सरकार ने भर्ती पर रोक लगा दी है."

    वे कहते हैं, "भर्ती शुरू होगी तो मेरा और मेरे परिवार का भविष्य भी संवरेगा. अन्यथा, उन्हें रोजगार की तलाश में फिर से भटकना पड़ेगा."

    नेपाल के खोतांग के जांतेढुंगा ग्रामीण नगर पालिका में रहने वाले 19 वर्षीय उपेन्द्र मगर का भी यही दर्द है.

    UPENDRA MAGAR उपेन्द्र मगर का कहना है कि उन्हें मजबूरी में काम की तलाश में खाड़ी देशों का रुख करना पड़ सकता है

    उपेंद्र मगर कहते हैं, "नेपाल में हमारे लिए तरक्की का कोई रास्ता नहीं है. भारतीय सेना एक विकल्प था. इसलिए बेहतर होता अगर भारतीय सेना में भर्ती शुरू हो जाती.''

    उन्होंने कहा कि अब कोई विकल्प नहीं बचा है और वे अब खाड़ी के देशों में जाने की कोशिश करेंगे.

    नवीन तमांग और उपेन्द्र मगर जैसे युवाओं को भारतीय सेना, ब्रिटिश सेना या सिंगापुर पुलिस में भर्ती होने में मदद करने के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र चलाने वाले प्रदेश राई कहते हैं कि वह युवाओं की स्थिति को लेकर चिंतित हैं.

    काठमांडू में ट्रेनिंग सेंटर चलाने वाले प्रदेश राई कहते हैं, "देखिए, सैकड़ों युवा छात्र अभी भी हमारे पास आ रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि अग्निपथ की भर्ती खुलेगी. हमने सुना है कि कई युवा रूसी सेना में शामिल हो गए और अपनी जान गंवा दी क्योंकि नेपाली सरकार अपने युवाओं के लिए पर्याप्त रोज़गार उपलब्ध नहीं करवा पा रही है."

    पोखरा में एक अन्य गोरखा प्रशिक्षण केंद्र के प्रमुख राहुल पांडे का कहना है कि गोरखा भर्ती बंद होने पर "सुदूर गांवों के युवा सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. अब भी कई युवा भर्ती खुलने पर जाने को इच्छुक हैं. उनके लिए दूसरा विकल्प दुबई, क़तर और मलेशिया है."

    अग्निवीर योजना क्या है Getty Images भारतीय सेना में गोरखा रेजिमेंट से तीन जनरल हुए हैं - सैम मानेकशॉ, दलबीर सिंह सुहाग और बिपिन रावत

    जून 2022 में, भारत सरकार ने अपनी सेना में जवानों की भर्ती के लिए 'अग्निपथ' योजना को मंजूरी दी थी.

    इस योजना के मुताबिक, भर्ती होने वाले 'अग्निवीर' जवानों का कार्यकाल सिर्फ चार साल का होगा.

    इस योजना के तहत चयनित होने वाले युवाओं में से 25 फ़ीसदी को चार साल बाद सेना में स्थाई नौकरी दिए जाने का प्रावधान किया गया है. बाक़ी 75 फ़ीसदी को लगभग 12.50 लाख रुपये के एकमुश्त पैकेज 'सेवानिधि' के साथ घर भेज दिया जाएगा.

    इससे पहले भारतीय सेना में भर्ती होने वाले सभी जवानों को पेंशन मिलती थी. लेकिन अग्निपथ में चार साल नौकरी करने वालों के लिए पेंशन का प्रावधान नहीं है.

    जैसे ही नई अग्निपथ योजना लागू हुई, नेपाल ने भारत से कहा कि अब उनके नागरिक अग्निपथ योजना के तहत गोरखा रेजिमेंट में भर्ती नहीं होंगे.

    ये गोरखा सैन्य भर्ती पर भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच त्रिपक्षीय समझौते की भावना का उल्लंघन लगता है.

    1947 में हुए त्रिपक्षीय समझौते के अनुसार, नेपाली नागरिक ब्रितानी और भारतीय सेनाओं में भर्ती हो सकते हैं.

    अब कुछ नेपाली युवाओं का कहना है कि भले ही उन्हें पहले की तरह पेंशन न मिले, लेकिन अग्निपथ के तहत नामांकन कराने में कोई नुकसान नहीं है.

    THREE LIONS/GETTY IMAGES साल 1950 में गोरखा सैनिकों की एक फ़ाइल फ़ोटो. भारत में गोरखा भर्ती का एक लंबा इतिहास रहा है

    नवीन तमांग ने बताया, "हालांकि सेवा अवधि केवल चार साल है लेकिन इस दौरान भी ट्रेनिंग का अनुभव होगा और हाथ में कुछ पैसा भी आएगा. अगर भर्ती की अनुमति नहीं देनी है तो सरकार को बेहतर विकल्प देने चाहिए. अगर विदेश में रोजगार के लिए जाना चाहते हैं तो आपको दलाल को 7-8 लाख रुपये देने पड़ते हैं. अग्निपथ में कुछ भी खर्च नहीं होगा."

    नौकरी की तलाश कर रहे नवीन के पिता इस समय मलेशिया में हैं, जबकि उनकी मां और बहनें घर पर हैं.

    वे कहते हैं कि परिवार पहले से ही वित्तीय समस्याओं से जूझ रहा है.

    एक अन्य युवा उपेन्द्र मगर का कहना है कि भले ही कुछ सालों के लिए ही सही, लेकिन उन्हें मौका तो मिलेगा.

    वे कहते हैं, "उसके बाद, अन्य रास्ते खुलते हैं. कुछ पैसे कमाने के बाद हम नेपाल लौटकर कुछ कर सकते हैं."

    नेपाल-भारत संबंधों के जानकार सैन्य संबंधों को दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण विरासत मानते हैं.

    अगस्त 2014 में अपनी नेपाल यात्रा के दौरान संविधान सभा को संबोधित करते हुए भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "भारत ने ऐसी कोई लड़ाई नहीं जीती है जिसमें किसी नेपाली का खून न बहा हो, कोई नेपाली शहीद न हुआ हो."

    साल 1947 में जब ब्रिटिश शासक भारत से लौटे तो त्रिपक्षीय समझौते में गोरखा पलटन का कुछ हिस्सा ब्रिटिश आर्मी के साथ चला गया है, कुछ को भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया.

    Getty Images मूल पोशाक में 66वीं गोरखा रेजिमेंट के एक सैनिक का 1858 का चित्र

    उस समय भारतीय सेना में 10 गोरखा रेजिमेंटों में से छह स्वतंत्र भारतीय सेना का हिस्सा बनी रहीं, जबकि शेष चार रेजिमेंट ब्रिटिश सेना में समाहित हो गईं.

    वर्तमान में भारतीय सेना में सात गोरखा रेजिमेंट हैं और उनकी 39 बटालियन हैं. उन रेजिमेंटों में लगभग 60 प्रतिशत सैनिक नेपाल से हैं और 40 प्रतिशत भारत में नेपाली भाषी गोरखाली समुदाय से हैं.

    एक अनुमान है कि वर्तमान में भारतीय सेना में लगभग 32,000 गोरखा सैनिक हैं.

    हालांकि अग्निपथ योजना साल 2022 में लागू की गई थी, लेकिन कोविड के कारण नेपाल से भारतीय सेना में भर्ती 2020 से ही प्रभावित है.

    दिल्ली रह रहे भारतीय सेना के सेवानिवृत्त मेजर जनरल गोपाल गुरुंग कहते हैं, "हर साल नेपाल से 12 सौ से 14 सौ गोरखा सैनिकों की भर्ती की जाती थी. सालाना इतने ही लोग रिटायर होते थे. अब अगर भर्ती इसी तरह रोक दी गई तो निश्चित रूप से एक दिन यह संख्या शून्य हो जाएगी."

    उन्हें डर है कि ये विरासत धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगी. वे कहते हैं, "मैं अग्निपथ और पुरानी व्यवस्था की तुलना नहीं करना चाहता. बेशक, नेपाल की अपनी चिंताएं और हित हैं. लेकिन यह नई व्यवस्था बिना किसी भेदभाव के सभी पर लागू होती है. इसलिए नेपाल सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए, समय बीतता जा रहा है."

    गोपाल गुरुंग कहते हैं, "मैं स्वयं इस विरासत का हिस्सा हूं. मेरे जैसे सैनिक जिन्होंने भारतीय सेना में सेवा की है, उनके परिवार और उनकी पीढ़ियां इसे सिर्फ पैसा कमाने का जरिया नहीं मानते हैं. यह हमारे लिए एक भावनात्मक जुड़ाव है जिसे राजनेता शायद ही कभी समझ सकें."

    Reuters यूक्रेन युद्ध के लिए सैकड़ों नेपाली युवा रूसी सेना में शामिल हो गए हैं और एक दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गई है. हालाँकि नेपाल की सरकार का कहना है कि नेपाली नागरिकों का रूसी सेना में भर्ती होना अवैध है

    भारतीय सेना के सेवानिवृत्त कर्नल धन बहादुर थापा भी गोरखा सैन्य भर्ती को लेकर चल रहे गतिरोध से चिंतित हैं.

    धन बहादुर थापा कहते हैं, "ये हमारे दो सौ सालों के इतिहास की एक पवित्र परंपरा है. इससे भारत और नेपाल के रिश्ते मजबूत हुए हैं. आज भी भारतीय सेना ने नेपालियों के लिए जगह बना रखी है. उनकी मानसिकता इस विरासत को तोड़ने की नहीं है. लेकिन अब ये कहना मुश्किल है कि भारत कब तक इंतज़ार करेगा."

    धन बहादुर थापा नेपाली गोरखाओं के संगठन यूनाइटेड फेडरेशन फॉर एक्स-सर्विसमैन एंड पुलिस वेलफेयर के अध्यक्ष भी हैं.

    लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना है कि दूसरे देश की सेना में भर्ती होने की परंपरा ठीक नहीं है और इसे अग्निपथ के बहाने धीरे-धीरे खत्म किया जाना चाहिए.

    नेपाल के पूर्व सांसद और सुरक्षा विश्लेषक दीपक प्रकाश भट्ट कहते हैं, "द्विपक्षीय या त्रिपक्षीय समझौता करके विदेश में गोरखा सैनिकों को भाड़े के सैनिक बनाना ठीक नहीं है. इसलिए, भारत के लिए अग्निपथ लाना और इस भर्ती प्रक्रिया को रोकना उचित है."

    उन्होंने कहा, "इस समय अंग्रेजों के साथ गोरखा भर्ती समझौते की भी समीक्षा की जानी चाहिए. सरकार को रोज़गार के विकल्प उपलब्ध कराने चाहिए. इसमें समय तो लगेगा लेकिन इसका बहाना लगाकर ऐसी अनुचित विरासत को लगातार बरकरार नहीं रखा जाना चाहिए."

    नेपाल की वामपंथी पार्टियां पिछले काफी समय से गोरखा भर्ती रोकने का मुद्दा उठाती रही हैं.

    क्या कहती है नेपाल सरकार

    जून 2022 में, जब भारत सरकार ने अग्निपथ योजना को लागू करने का निर्णय लिया, तो नेपाल ने तुरंत कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की थी.

    गोपाल गुरुंग कहते हैं कि जब भारतीय सेना में भर्ती की अधिसूचना जारी की तो पहले नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़का ने भारतीय राजदूत को फोन कर नेपालियों की भर्ती रोकने को कहा था.

    गोपाल गुरुंग कहते हैं, "ऐसा लगता है कि इस मुद्दे को नेपाल में राजनीतिक रंग दे दिया गया है. निःसंदेह, ये बेहतर होता अगर अग्निपथ योजना लाने से पहले नेपाल से परामर्श किया गया होता. लेकिन भारत की नीति आने के बाद कम से कम इस पर चर्चा तो होनी ही चाहिए थी."

    पिछले साल विदेश मंत्री रहे नेपाली कांग्रेस नेता एनपी सऊद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "अग्निपथ को लेकर भारत के अंदर बहस चल रही है. नेपाल कहता रहा है कि वह इस पर राष्ट्रीय सहमति बनाने के बाद ही कोई फैसला करेगा."

    उन्होंने यह भी कहा कि द्विपक्षीय वार्ता में अग्निपथ का मुद्दा कभी भी गंभीरता से नहीं उठाया गया. उन्होंने कहा कि अनौपचारिक बातचीत में समाधान निकलने के बाद ही किसी औपचारिक समझौते पर पहुंचा जा सकता है.

    मौजूदा उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठ की भी यही राय है.

    उन्होंने बीबीसी को एक संक्षिप्त प्रतिक्रिया दी: "फिलहाल (अग्निपथ की भर्ती पर) कोई सहमति नहीं है. चर्चा चल रही है."

    नेपाल को इस बात की चिंता है कि देश में चार साल बाद लौटने वाले युवाओं को कहां नौकरी दी जाए?

    सऊद ने कहा था, "भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था है. वहां सेना की नौकरी के बाद भी कई अवसर हैं. वे अर्धसैनिक बलों में शामिल हो सकते हैं या प्राइवेट नौकरी कर सकते हैं. लेकिन हमारे पास ये विकल्प नहीं हैं."

    इस मामले पर भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है. बीबीसी न्यूज़ नेपाली ने वहां के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता से भी इस बारे में संपर्क करने की कोशिश की.

    लेकिन हाल ही में भारतीय सेना के आधिकारिक एक्स-हैंडल पर यह स्पष्ट किया गया था कि उनकी गोरखा ब्रिगेड को छोटा करने या पुनर्गठित करने की कोई योजना नहीं है.

    सितंबर 2022 में, भारतीय सेना प्रमुख मनोज पांडे ने नेपाल की यात्रा से लौटने के बाद कहा था, "अगर नेपाल में गोरखा भर्ती प्रक्रिया पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार नहीं की जा सकती है, तो उन्हें गोरखाओं के लिए खाली रखे गिए पदों को वितरित करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा."

    भारतीय सेना से सेवानिवृत्त सैनिक हर साल पेंशन के तौर पर नेपाल में करोड़ों रुपये लाते हैं.

    यूनाइटेड फेडरेशन फॉर एक्स सर्विसमैन एंड पुलिस वेलफेयर के अध्यक्ष धन बहादुर थापा ने बताया कि कुल रकम करीब 3,750 करोड़ तक पहुंच गई है.

    नेपाल राष्ट्र बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल पेंशन के नाम पर करीब 4600 करोड़ रुपये नेपाल आए हैं.

    माना जा रहा है कि इस पेंशन का एक बड़ा हिस्सा पूर्व भारतीय सैनिकों का है.

    भारतीय सेना से सेवानिवृत्त जूनियर कमीशंड अधिकारी कुल बहादुर केसी ने कहा कि अग्निपथ योजना के तहत चार साल की सेवा अवधि के दौरान भी युवाओं को पैसा और अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं.

    कुल बहादुर केसी कहते हैं, "अग्निपथ योजना का भारत के भीतर भी कुछ हलकों से विरोध किया जा रहा है. वहां इसके अच्छे और बुरे पहलुओं पर भी चर्चा हो रही है. इसलिए बेहतर होगा कि फिलहाल नेपाली युवाओं को न रोका जाए. नहीं तो देश देश का ही नुकसान होगा."

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