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नेस्ले ने बेबी फूड में मिलाई ज़्यादा चीनी, सरकार पकड़ क्यों नहीं पाती?

Getty Images (सांकेतिक तस्वीर)

नेस्ले इंडिया के एक्स (ट्विटर) बायो में लिखा है, 'जीवन की गुणवत्ता बढ़ाना और स्वस्थ भविष्य में योगदान देना'.

मगर 18 अप्रैल को नेस्ले के इस दावे पर तब सवाल उठने लगे, जब स्विस जांच एजेंसी 'पब्लिक आई' और इंटरनेशनल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क यानी आईबीएफएएन ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की.

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब देशों में बेचे जा रहे अधिकांश सेरेलैक और निडो (दूध पाउडर) में अतिरिक्त चीनी मिलाई जाती है और कई बार इसकी मात्रा काफी अधिक होती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि नेस्ले भारत में सभी शिशु आहारों में प्रति सर्विंग 2.7 ग्राम चीनी मिलाता है.

नेस्ले के मुख्य यूरोपीय बाजारों में 12-36 महीने की उम्र के बच्चों के लिए बेचे जा रहे शिशु आहारों में अतिरिक्त चीनी की कोई मात्रा नहीं है. जबकि एक साल से अधिक उम्र के बच्चों के कुछ शिशु आहार में अतिरिक्त चीनी होती है और छह महीने की उम्र तक के बच्चों के लिए खाद्य पदार्थ में चीनी नहीं पाई गई.

इस रिपोर्ट को लेकर भारत में विवाद शुरू हो गया है.

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि भारत में खाद्य नियामक फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एफएसएसएआई ने कहा है कि वो इस मामले को देखेगा.

वहीं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी एनसीपीसीआर ने एफएसएसएआई से नेस्ले के शिशु खाद्य उत्पादों में चीनी पाए जाने से पैदा हुई चिंताओं की समीक्षा करने की अपील की है.

इस बीच नेस्ले इंडिया ने एक बयान जारी कर कहा, ''पिछले पांच साल में हमने पहले ही वैरिएंट के आधार पर चीनी मिलाने में 30 फीसदी तक की कमी कर दी है. हम नियमित रूप से अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा करते हैं. पोषण, गुणवत्ता, सुरक्षा और स्वाद से समझौता किए बिना मिलाई गई चीनी के स्तर को कम करने के लिए अपने उत्पादों में नवाचार और सुधार करते रहते हैं.''

कंपनी ने बयान में कहा है, ''हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि भारत में बने हमारे उत्पाद कोडेक्स मानकों (डब्ल्यूएचओ और एफएओ के स्थापित आयोग) और जरूरी स्थानीय विशिष्टताओं का पूरी तरह और सख्ती से अनुपालन करते हैं.''

रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में दुनिया भर में बेबी फूड के बाजार में नेस्ले का हिस्सा करीब 20 फीसद है. यह करीब 70 अरब डॉलर का है. वहीं भारत में नेस्ले के बेबी फूड सेरेलैक की बिक्री 2022 में 25 करोड़ से अधिक की रही.

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  • Getty Images रिपोर्ट में कहा क्या गया है?

    अपनी जांच रिपोर्ट में पब्लिक आई और आईबीएफएएन ने नेस्ले के अफ्रीका, एशिया और लातिनी अमेरिका के मुख्य बाजारों में बेचे गए 115 उत्पादों की जांच की. उनमें से कम से कम 108 (94 फीसद) में अतिरिक्त चीनी पाई गई.

    अतिरिक्त चीनी का औसत प्रति सर्विंग 4 ग्राम है, फिलीपींस में बेचे जा रहे उत्पादों में सबसे अधिक अतिरिक्त चीनी 7.3 ग्राम प्रति सर्विंग पाई गई. यह उत्पाद छह महीने के बच्चों के लिए था.

    अन्य देश जहां अतिरिक्त चीनी की मात्रा अधिक पाई गई, वे थे-

    • नाइजीरिया- 6.8 ग्राम प्रति सर्विंग
    • सेनेगल- 5.9 ग्राम प्रति सर्विंग
    • वियतनान- 5.5 ग्राम प्रति सर्विंग
    • इथोपिया- 5.2 ग्राम प्रति सर्विंग
    • दक्षिण अफ्रीका -4.2 ग्राम प्रति सर्विंग

    रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में अतिरिक्त चीनी की मात्रा पैकेजिंग पर बताई जाती है, लेकिन कई अफ्रीकी और लातिनी अमेरिकी देशों में, यह जानकारी नहीं दी जाती है. विडंबना यह है कि कंपनी अपनी वेबसाइट पर कहती है 'चीनी से बचें'.

    नेस्ले बेबी एंड मी वेबसाइट पर प्रकाशित 'आपके (बच्चे के) आहार में नए स्वाद और बनावट पेश करने के 10 तरीके' शीर्षक वाले लेख में कहा गया है, " आपके बच्चे के लिए भोजन बनाते समय चीनी मिलाने की अनुशंसा नहीं की जाती है और न ही उन्हें मीठा पेय पदार्थ देने की सलाह दी जाती है.''

    Getty Images नेस्ले का एक उत्पादन संयंत्र कंपनी के दोहरे मापदंड

    रिपोर्ट से पता चला कि नेस्ले दुनिया भर में अपने सभी उत्पादों में चीनी नहीं मिला रही है.

    स्विट्जरलैंड, जर्मनी, फ्रांस या ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देशों में बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थ में कोई अतिरिक्त चीनी नहीं होती है, लेकिन एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमेरिका के गरीब देशों में ऐसे उत्पाद होते हैं, जिनमें चीनी की मात्रा बहुत अधिक होती है.

    नेस्ले दोहरे मानकों को क्यों अपना रही है और गरीब देशों के साथ अलग व्यवहार क्यों कर रही है, इस पर बहस हो रही है.

    बेजोन मिश्रा एफएसएसआई के पूर्व सदस्य और खाद्य नीति मामलों के विशेषज्ञ हैं. उनका मानना है कि खाद्य सुरक्षा के मामले में भारत में कड़े नियमों की कमी है.

    वो कहते हैं कि यह सच है कि नेस्ले अमीर और गरीब देशों के साथ अलग-अलग व्यवहार कर रही है, लेकिन यह हम ही हैं जो उन्हें ऐसा करने की इजाजत दे रहे हैं.

    वो कहते हैं, ''सरकारी नियामक तंत्र बहुत ही रैंडम हैं. वे परीक्षण के लिए भोजन के नमूने बेतरतीब ढंग से उठाते हैं. वे परिणामों के बारे में पारदर्शी नहीं होते हैं. समस्या यह है कि हमारे पास खाद्य उत्पादों में कितनी चीनी मिलाई जा सकती है, इसके नियम हैं लेकिन निर्धारित मात्रा ही बहुत अधिक है. यह इन कंपनियों को उस स्तर तक चीनी मिलाने की इजाजत देती है. यह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है.''

    वो पूछते हैं कि भारतीय खाद्य प्राधिकरण तीसरे पक्ष के शोध पर क्यों निर्भर है.

    वो कहते हैं, ''इस तरह का अध्ययन सरकार को कराना चाहिए. एफएसएसएआई का काम नागरिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए मानक तय करना है. सबसे बड़ी समस्या नियमों को लागू करना है. वह उत्पाद बाजार में था ही क्यों? एक आम माता-पिता सोचते हैं कि यदि कोई उत्पाद भारतीय बाजार में उपलब्ध है और उस पर पाबंदी नहीं है, तो सरकार ने जांच के बाद उसे मंजूरी दी होगी.''

    ऐसी खबरें हैं कि एफएसएसएआई 'पब्लिक आई' में प्रकाशित रिपोर्ट के दावों की जांच कर रही है.

    बीबीसी ने एफएसएसएआई से उसका पक्ष जानने के लिए संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. एक बार जब वे हमें अपना जवाब भेज देंगे, तो उसे कहानी में जोड़ा जाएगा.

    Getty Images चीनी का बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव

    डॉक्टर राजीव कोविल मुंबई में एक डायबिटीज केंद्र चलाते हैं.

    वह कहते हैं, ''बच्चे को स्वाभाविक रूप से स्वाद की कोई अनुभूति नहीं होती है. अगर उन्हें पहले ही चीनी से परिचित कराया जाता है, तो उनके बड़े होने पर चीनी की चाह बढ़ जाती है. इससे बच्चे को चीनी की लत लग जाएगी. इससे उसे चावल या सब्जियां खाने में परेशानी होगी. कई बार तो वे ऐसे खाद्य पदार्थों को खाने से ही मना कर देते हैं. आप कई माता-पिता को यह शिकायत करते हुए देख सकते हैं कि मेरा बच्चा सामान्य खाना नहीं खाता है, वह केवल मिल्कशेक, चॉकलेट या जूस की मांग करता है.''

    डॉक्टर कोविल का यह भी मानना है कि अधिक चीनी का सेवन छोटे बच्चों को आक्रामक और चिड़चिड़ा बना सकता है.

    वो कहते हैं, ''इसलिए हम सलाह देते हैं कि 2 साल से कम उम्र के बच्चों को अतिरिक्त चीनी न दें.''

    खाने में अधिक चीनी बच्चों को नशे की लत लगा सकती है. डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि इससे भविष्य में उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ेगा.

    डॉक्टर अभिषेक पिंपरालेकर अपोलो अस्पताल में डायबिटीज के विशेषज्ञ हैं.

    वह कहते हैं, ''भारत उच्च रक्तचाप और डायबिटीज के लिए विश्व की राजधानी बन रहा है. मैं मधुमेह से पीड़ित अनेक किशोरों का इलाज करता हूं. उनकी बीमारी की जड़ कम उम्र में उनके खान-पान की आदतों में पाई जा सकती है.''

    डॉक्टर कोविल यह भी बताते हैं कि अधिक मात्रा में चीनी का सेवन बचपन के मोटापे से जुड़ा हुआ है. वो कहते हैं, ''भारत बच्चों में मोटापे के मामले में दुनिया के शीर्ष पांच देशों में से एक है.''

    वो कहते हैं, ''कुदरती तौर पर शक्कर चावल, गेहूं, फलों में कुछ मात्रा में पाई जाती है. आपको और चीनी की ज़रूरत नहीं है.''

    वो सलाह देते हैं कि माता-पिता को खाद्य पदार्थ के लेबल पढ़ने के प्रति जागरूक होना चाहिए. वो कहते हैं कि कोई भी पैक किया हुआ खाद्य पदार्थ या शिशु आहार उत्पाद, जिसके लेबल पर अतिरिक्त चीनी का उल्लेख हो, उसे इस्तेमाल करने से बचना चाहिए.''

    वो कहते हैं, ''अन्य प्रकार की शक्कर भी हैं, जैसे फ्रुक्टोज, मक्का, हाई स्टार्च, जिनका उल्लेख अतिरिक्त चीनी के रूप में नहीं किया गया है, उनका उल्लेख अलग-अलग तरीके से किया गया है. जबकि सच्चाई यह है कि वे सभी अलग से मिलाई गई चीनी हैं. इसलिए खाद्य लेबल के बारे में नियम होने चाहिए और सरकार को रंगों पर आधारित एक प्रणाली लानी चाहिए ताकि हर माता-पिता समझ सकें कि वे अपने बच्चों को क्या दे रहे हैं.''

    वहीं दूसरी ओर डॉक्टर पिंपरालेकर का सुझाव है कि बच्चों को प्रीमिक्स, पैक्ड फूड या रेडी-टू-ईट खाद्य उत्पाद बिल्कुल नहीं देने चाहिए.

    वो कहते हैं, ''कभी-कभी, चीनी के बारे में जानकारी साफ-साफ छिपा दी जाती है. जैसे उन बिस्किटों का उदाहरण लें- जिनका प्रचार डायबिटीज फ्रेंडली बिस्कुट के रूप में किया जाता है. उसमें चीनी भी मिलाई गई है और उसकी जानकारी पैकेट के कोने पर दी जाती है. आप उसे तब तक नहीं देख पाएंगे, जब तक कि आप नहीं जानते कि आप क्या खोज रहे हैं.''

    Getty Images प्रतीकात्मक तस्वीर चीनी खाने पर डब्लूएचओ का दिशा-निर्देश

    विश्व स्वास्थ्य संगठन वयस्क और बच्चों में शक्कर का दैनिक सेवन अपने कुल ऊर्जा सेवन के 10 फीसदी से भी कम करने का सुझाव देता है. इसमें यह भी कहा गया है कि अगर चीनी का सेवन 5 फीसदी तक कम कर दिया जाए यानी करीब 6 बड़े चम्मच प्रतिदिन, तो यह अधिक फायदेमंद होगा.

    इसे इस तरह से समझें, 1 चम्मच कैचप में करीब 4 ग्राम (लगभग 1 चम्मच) शुगर होती है. मीठे सोडे के एक डिब्बे में करीब 40 ग्राम (करीब 10 चम्मच) तक शुगर होती है.

    डब्ल्यूएचओ के शोध से पता चलता है कि चीनी-मीठा पेय पदार्थ का अधिक सेवन करने वाले बच्चों में कम सेवन करने वाले बच्चों की तुलना में मोटापे की संभावना अधिक होती है.

    लैंसेट में छपे एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत में 10 करोड़ से अधिक लोग, देश की आबादी के करीब 11.4 फीसदी लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं.

    भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि 13 करोड़ 60 लाख लोग प्री-डायबिटीज के साथ जी रहे हैं.

    बच्चों में मोटापा भी एक ऐसी समस्या है, जिसका सामना भारत भी कर रहा है.

    ताजा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के मुताबिक़, क़रीब 23 फीसदी पुरुषों और 24 फीसदी महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 या उससे अधिक पाया गया.

    साल 2015-16 की तुलना में यह दोनों में चार फीसदी अधिक है. इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पांच साल से कम उम्र के 3.4 फीसदी बच्चे अब अधिक वजन वाले हैं, जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा 2.1 फीसदी था.

    डॉक्टर पिंपरालेकर कहते हैं, ''बच्चों का मोटापा डायबिटीज से लेकर अवसाद तक कई स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का कारण बन सकता है. वहीं किशोर लड़कियों में पीसीओडी विकसित होने का भी खतरा होता है या उन्हें मासिक धर्म देरी से हो सकता है. मोटापे की महामारी का हम सामना कर रहे हैं और डिब्बाबंद भोजन में मिलाई गई चीनी मदद नहीं कर रही है.''

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