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राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव नहीं लड़ने पर क्या कह रहे हैं वहां के लोग: ग्राउंड रिपोर्ट

ANI रायबरेली में राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी

अमेठी से चुनाव नहीं लड़ने के फ़ैसले के बाद से ही राहुल गांधी के लिए सोशल मीडिया पर 'डरो मत लड़ो' जैसे हैशटैग चलाये जाने लगे, लेकिन गौरीगंज कांग्रेस कार्यालय में एक कार्यकर्ता ने एकदम उलट बात कही, "असल में अमेठी में अब चुनाव लेवल में हो रहा है. राहुल गांधी, भाजपा नेता स्मृति इरानी के सामने चुनाव लड़ें, उनका इतना छोटा कद नहीं हैं."

हालांकि, ये और बात है कि राहुल गांधी को इन्हीं स्मृति इरानी के हाथों पिछले लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था.

साल 1980 के बाद से अमेठी लोकसभा सीट पर गांधी परिवार का कब्जा रहा और राहुल गांधी तीन बार यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.

लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी की आंधी में भाजपा प्रत्याशी स्मृति इरानी ने उन्हें 55,120 मतों से हरा कर इस पारिवारिक और परंपरागत सीट को छीन लिया था.

लोकसभा चुनाव 2024: राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव न लड़ने का क्या होगा असर

इस बार के चुनावी घमासान में राहुल गांधी को अमेठी से चुनाव लड़ाने की चर्चा लगातार हो रही थी. इसलिए जब उनके रायबरेली जाने की ख़बर आयी तो लोगों में बहुत उत्साह नहीं दिखा.

सवाल उठाती रही है बीजेपी ANI अमेठी में एक जनसभा को संबोधित करती स्मृति इरानी

सवाल यह उठ रहा है कि राहुल गांधी ने अमेठी लोकसभा सीट छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ने का निर्णय क्यों किया है? हालांकि, केरल के वायनाड में वोटिंग हो चुकी है, जहां से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने की ख़बर आने के बाद उन पर निशाना साधते हुए कहा कि 'वे वायनाड में भी हार रहे हैं, इसलिए रायबरेली से रास्ता ढूंढ रहे हैं'. वहीं अमेठी से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार और मौजूदा सांसद स्मृति इरानी ने मीडिया के सामने कहा कि कांग्रेस पार्टी का ये फ़ैसला बताता है कि अमेठी में उनकी हार तय थी.

स्मृति इरानी लगातार कहती हैं कि राहुल गांधी हार के डर की वजह से अमेठी से चुनाव नहीं लड़ रहे. साल 2019 में जब राहुल गांधी ने अमेठी के साथ वायनाड से नामांकन किया था तो गृहमंत्री अमित शाह ने डरकर वायनाड जाने की बात कही थी. पिछले लोकसभा चुनाव में बिजनौर में चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था, "राहुल गांधी केरल भाग गए हैं क्योंकि उन्हें डर है कि अमेठी के मतदाता उनसे हिसाब मांगेंगे."

ऐसे में यह तय है कि अमेठी के बजाय रायबरेली से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने को लेकर कांग्रेस और राहुल गांधी को कई सवालों का सामना करना पड़ेगा. अगर राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ना चाहते थे तो निर्णय लेने में इतनी देर क्यों की?

राहुल गांधी ने रायबरेली को क्यों चुना? ANI रायबरेली से नामांकन दाखिल करते राहुल गांधी

क्या अमेठी की जनता से राहुल गांधी नाराज हैं? क्या रायबरेली से चुनाव लड़कर राहुल गांधी अपनी मां की परंपरागत सीट को संभालना चाहते हैं? राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव लड़कर क्या संदेश देना चाहते हैं?

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस इन सवालों के जवाब में कहते हैं, "अमेठी में अगर स्मृति इरानी को गैर-गांधी परिवार के किसी प्रत्याशी से हराया जा सकता है तो यह एक ज्यादा बड़ा मैसेज जाएगा. राहुल गांधी से अगर स्मृति इरानी हार भी जाती हैं तो स्मृति इरानी का राजनीति में वजूद बचा रहता. 2014 मेंवो हार गई थीं लेकिन इसके बावजूद उन्हें मंत्री बनाया गया था."

कलहंस स्मृति इरानी की अमेठी में होने वाली मुश्किलों के बारे में बताते हैं, "राजनीति में स्मृति इरानी का जो उत्थान हुआ है वह गांधी परिवार के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने के कारण ही हुआ है. स्मृति इरानी के पास न तो जाति-बिरादरी का वोट है और न वो कोई बड़ी सेलिब्रिटी हैं. राहुल गांधी से वो टक्कर लेती हैं और हरा देती हैं, यही उनका राजनीति में कुल हासिल है."

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अमेठी के भाजपा जिलाध्यक्ष राम प्रसाद मिश्र कहते हैं, "स्मृति इरानी जी 2014 में आईं और चुनाव हारीं लेकिन उन्होंने अमेठी नहीं छोड़ा. अमेठी को वो अपना परिवार मानती हैं, उन्होंने बहुत सारे विकास कार्य किया और 2019 में वो राहुल गांधी को चुनाव हरा चुकी हैं."

"जनता में उन्होंने विश्वास जताया और जनता को विश्वास हो गया कि दीदी स्मृति इरानी के हाथों विकास होगा. इसलिए राहुल गांधी यहां से छोड़कर अन्यत्र चले गए. यहां चुनाव एकतरफा है और जनता ने सोच लिया है कि अब यहां से दीदी स्मृति इरानी जी रहेंगी."

विश्व हिंदू परिषद के पूर्व जिलाध्यक्ष और बीजेपी कार्यकर्ता भूपेंद्र मिश्रा किशोरी लाल शर्मा और स्मृति ईरानी के बीच जमीन-आसमान का अंतर मानते हैं.

वे कहते हैं, "राहुल गांधी को कहीं न कहीं ऐसा लगा कि वो स्मृति इरानी के सामने चुनाव हार जाएंगे इसलिए उन्होंने रायबरेली से चुनाव लड़ने का निर्णय किया. उन्हें रायबरेली सीट ज़्यादा सुरक्षित लगी जबकि वह भी सुरक्षित नहीं है."

"कांग्रेस के पास यहां से कोई प्रत्याशी नहीं था इसलिए कांग्रेस ने किशोरी लाल को प्रत्याशी बनाया है. किशोरी लाल किसी एंगल से स्मृति इरानी के बराबर का चेहरा नहीं हैं. स्मृति इरानी दो-दो बार की केंद्रीय मंत्री रहीं और राज्यसभा सांसद रहीं. किशोरी लाल शर्मा सिर्फ़ राहुल गांधी और सोनिया गांधी के पीआरओ के रूप में काम करते रहे हैं."

गांधी परिवार के करीबी रहे हैं किशोरी लाल शर्मा ANI नामांकन दाखिल करते किशोरी लाल शर्मा

यही वो पहलू है जिसके चलते किशोरी लाल शर्मा चुनाव मैदान में हैं. पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी जब नामांकन से पहले ज़िला कांग्रेस कार्यालय आईं तो कहा कि, "अमेठी को किशोरी लाल जी, गांधी परिवार से भी ज़्यादा जानते हैं."

चाहे वो राजीव गांधी रहे हों या सोनिया गांधी या फिर राहुल गांधी, इन तीनों का चुनावी प्रबंधन किशोरी लाल शर्मा ही संभालते रहे हैं. उनकी ज़िले के कार्यकर्ताओं पर पकड़ तो है लेकिन आम मतदाताओं को वे कितना जोड़ पाते हैं, ये उन्हें आने वाले दिनों में साबित करना होगा.

अगर वो खुद को गांधी परिवार के प्रति समर्पित बताते हुए चुनाव क्षेत्र में घूमे तो हो सकता है कि लोगों का साथ भी मिले. क्योंकि किशोरी लाल के नाम की घोषणा से पहले अमेठी में लोग राहुल गांधी का इंतज़ार कर रहे थे और स्मृति इरानी को कई जगहों पर लोगों की नाराज़गी का सामना करना पड़ रहा था. लेकिन राहुल गांधी की अनुपस्थिति का फ़ायदा अब इरानी को मिल सकता है.

  • अपने ही देश में 'अदृश्य', भारत में मुसलमान होने के मायने
  • किशोरी लाल शर्मा के नामांकन में बड़े चेहरे नहीं हुए शामिल

    किशोरी लाल शर्मा के नामांकन से पहले प्रियंका गांधी गौरीगंज के कांग्रेस कार्यालय में तो आईं लेकिन नामांकन में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता शामिल नहीं हुआ. वहीं रायबरेली में राहुल गांधी के नामांकन में सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, अशोक गहलोत और मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल रहे.

    किशोरी लाल शर्मा के नामांकन में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए लेकिन अधिकांश लोग अमेठी में राहुल गांधी के नामांकन के लिए आये थे. उन्हें अमेठी आकर पता चला कि यहां से किशोरी लाल शर्मा नामांकन कर रहे हैं.

    किशोरी लाल शर्मा के नामांकन में गांव से शामिल होने आईं ज्ञानवती देवी को नहीं पता था कि किसने कांग्रेस की ओर नामांकन भरा है. ज्ञानवती कहती हैं, "हम तो राहुल गांधी के नामांकन में आये हैं. हम किसान हैं किसानों को महंगाई से बहुत दिक्कत है. स्मृति इरानी ने कहा था 13 रुपये किलो चीनी मिलेगी लेकिन 48 रुपये किलो चीनी मिल रही है."

    29 अप्रैल को स्मृति इरानी के नामांकन में शहरी और संगठन के लोगों की भीड़ अधिक रही जबकि कांग्रेस प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा के नामांकन में आम लोग, किसान,महिलाएं अधिक संख्या में नज़र आए.

    राहुल गांधी के अमेठी छोड़ने के मायने

    राहुल गांधी के अमेठी छोड़ने को भाजपा भले ही डर और अमेठी से भागना बता रही हो लेकिन राजनीति के जानकार इसे कांग्रेस की एक रणनीति के तौर पर देख रहे हैं.

    वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "जब सोनिया गांधी ने रायबरेली की सीट छोड़ते हुए राज्यसभा का नामांकन किया था तो रायबरेली के मतदाताओं को एक चिट्ठी लिखी थी. उस चिट्ठी में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि रायबरेली उनके परिवार का अंग है और रायबरेली के लोग भी उनके परिवार का साथ देते रहे हैं. यह स्पष्ट था कि गांधी परिवार का कोई न कोई सदस्य चुनाव लड़ेगा."

    राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव न लड़ने के सवाल पर सिद्धार्थ कहते हैं, " राहुल गांधी अगर अमेठी और वायनाड दोनों जगहों से चुनाव लड़ते तो अधिक सम्भावना थी कि दोनों जगह से जीतते जिससे एक सीट छोड़नी पड़ती. वह सीट अमेठी होती. ऐसी स्थिति में उपचुनाव में एक बार फिर स्मृति इरानी को बढ़त मिलती. रायबरेली की सीट हमेशा से गांधी परिवार का हिस्सा रही है. चुनाव जीतने की दशा में वह सीट प्रियंका गांधी के लिए छोड़ी जा सकती है."

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    इसका संकेत इन दोनों सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश के बयान से भी मिलता है, जिसमें उन्होंने कहा कि प्रियंका गांधी कोई भी उपचुनाव जीत कर संसद पहुंच सकती हैं.

    सिद्धार्थ कलहंस कांग्रेस की संभावित रणनीति को लेकर कहते हैं, "राहुल गांधी अगर अमेठी से चुनाव लड़ते तो मीडिया के लिए दिलचस्पी का विषय हो सकता था. राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए अमेठी पर फोकस ज़्यादा होता, ऊर्जा और संसाधन अमेठी में शिफ्ट होते. रायबरेली अपेक्षाकृत आसान सीट है और वहां भाजपा के प्रत्याशी अमेठी के मुक़ाबले उतने सबल नहीं हैं. यहां ऊर्जा और संसाधन कम ख़र्च होंगे और वही बचे समय को देश के अन्य क्षेत्रों में हो रहे चुनाव के लिए ख़र्च कर सकते हैं."

    उत्तर प्रदेश की राजनीति को लंबे समय से कवर कर रहे पत्रकार ओमर राशिद राहुल गांधी के अमेठी से लड़ने के निर्णय को कांग्रेस की राजनीतिक गलती मानते हैं. ओमर राशिद कहते हैं, "अमेठी राहुल गांधी की परंपरागत सीट थी, अमेठी से चुनाव लड़ना उनके लिए सीधा रास्ता था. अपनी खोई हुई जमीन वापस लेने का मौका था. राजनीति में ऐसा होता है कि आपसे जो रूठ जाता है आप उसी को रीटेन करते हैं."

    वे आगे कहते हैं, "राहुल गांधी के अमेठी से नहीं लड़ने से भाजपा को एक बड़ा मौका मिल गया है, ये दर्शाने के लिए कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व एक कठिन लड़ाई से अपने ही घर से भाग रहा है."

    अमेठी के लोग क्या कह रहे हैं? BBC

    वैसे दिलचस्प यह है कि अमेठी की आम जनता इन चुनावी गुना भाग को नहीं समझ पा रही है. अधिकांश लोगों से बातचीत में यह लगता है कि राहुल गांधी को अमेठी से ही चुनाव लड़ना चाहिए था.

    दरअसल, अस्सी के दशक तक अमेठी देश के सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में शुमार था. यहां की भूमि बंजर एवं क्षारीय थी. साल 1980 में कांग्रेस नेता संजय गांधी ने यहां से चुनाव जीता था.

    लेकिन अगले ही साल हवाई दुर्घटना में हुई संजय गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी ने अमेठी लोकसभा को अपनी कर्मभूमि बनाया.

    अमेठी की दशा बदलने के उद्देश्य से संजय गांधी और राजीव गांधी ने अमेठी लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया. इस सिलसिले को सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने भी बरकरार रखा.

    कांग्रेस पार्टी दावा करती है कि उसने अमेठी में कृषि, शिक्षा और कनेक्टिविटी के क्षेत्र में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य किया है.

    BBC अमेठी

    शिक्षक पिंटू कुमार बताते हैं, "अमेठी में जो भी विकास हुआ है वो राजीव गांधी से राहुल गांधी के समय के बीच ही हुआ है. अमेठी में फुटवियर डिजाइन और डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट, संजय गांधी अस्पताल, राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी और भारत हैवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड कारखाना आदि राजीव गांधी और राहुल गांधी ने ही अमेठी की जनता को दिलाए हैं."

    इसके बाद भी राहुल गांधी पिछला चुनाव हार कैसे गए थे, इस बारे में लोगों का कहना है कि राहुल गांधी, सांसद के तौर पर अपने क्षेत्र के लोगों के लिए मौजूद नहीं होते थे. इससे आम लोगों की नाराजगी बढ़ी और फिर नरेंद्र मोदी का जादू भी था. वहीं स्मृति इरानी ने इलाके में अपनी मौजूदगी दर्ज करायी.

    हालांकि, बीते पांच साल के दौरान उनके कामकाज को लेकर उनकी आलोचना भी हुई है. पिंटू कुमार कहते हैं, "पिछले पांच वर्षों में अमेठी में विकास की रफ्तार धीमी हुई है."

    BBC अमेठी निवासी जैनुल हसन और जगनारायण यादव

    जगनारायण यादव टीकरमाफी में मेडिकल स्टोर चलाते हैं. पिछले पांच सालों में स्मृति इरानी के कामकाज से वो बहुत खुश नहीं हैं, लेकिन राहुल गांधी के चुनाव नहीं लड़ने के फ़ैसले ने उनकी चिंता बढ़ा दी है.

    कांग्रेस और राहुल गांधी के इस फ़ैसले से लोग असन्तुष्ट भी नज़र आ रहे हैं. कांग्रेस कार्यकर्ता अपनी प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया पर व्यक्त कर रहे हैं.

    जगनारायण कहते हैं, "किशोरी लाल शर्मा राजनीति करते रहे हैं. चुनाव लड़ाते रहे हैं. इस बार स्वयं चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन अमेठी की जनता उन्हें गांधी परिवार जितना पसंद नहीं करेगी. प्रियंका गांधी का इंदिरा गांधी जैसा जलवा होता, यहां से प्रियंका गांधी को चुनाव लड़ाना था."

    लेकिन अमेठी निवासी जैनुल हसन मानते हैं कि किशोरी लाल शर्मा की दावेदारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए.

    वे कहते हैं, "पिछले पांच साल में अमेठी में धरातल पर कोई काम नहीं हुआ है. इससे अमेठी की जनता स्मृति इरानी से नाराज है. ब्राह्मण प्रत्याशी उतार कर कांग्रेस ने बहुत बड़ा खेल किया है. ब्राह्मण अधिकांश कांग्रेस के साथ जा रहे हैं वहीं दलित समुदाय का एक धड़ा संविधान पर मंडराते खतरे को पहचानते हुए इंडिया गठबंधन का समर्थन कर रहा है."

    अमेठी लोकसभा क्षेत्र

    अमेठी लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो ये पूर्वी उत्तर प्रदेश में स्थित है.

    अमेठी लोकसभा क्षेत्र 1967 में अस्तित्व में आया था. 1980 से यह सीट गांधी परिवार के पास रही है.

    जातीय समीकरण की बात की जाए तो अमेठी में सर्वाधिक मतदाता दलित और पिछड़ा वर्ग के हैं.

    अमेठी में अनुमानित 34 फीसदी मतदाता ओबीसी, 26 फीसदी मतदाता दलित और 20 फीसदी मतदाता मुस्लिम वर्ग से हैं.

    इसके अलावा अमेठी में 8 फीसदी ब्राह्मण और 12 फीसदी राजपूत मतदाता हैं.

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