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लोहे के फेफड़ों से सांस लेने वाले पॉल अलेक्ज़ेंडर, जब तक जिए ज़िंदादिली से जिए

GoFundMe पॉल अलेक्ज़ेंडर

पॉल अलेक्ज़ेंडर उस वक्त केवल छह साल के थे. एक दिन जब उनकी आंख खुली तो वो बुरी तरह डर गए.

उन्होंने खुद को एक बड़े से मेटल के ट्यूब के भीतर पाया. अगर इस ट्यूब से उनके शरीर का कोई अंग अगर बाहर निकला था तो वो था, केवल उनका सिर.

वो अपने शरीर को हिला तक नहीं पा रहे थे ताकि ये जान सकें कि उन्हें किस चीज़ ने बांध रखा है.

जब उन्होंने मदद मांगने के लिए चीखने की कोशिश की, तब उन्हें पता चला कि वो अब आवाज़ नहीं कर पा रहे.

पॉल, पॉलियो के गंभीर झटके से बच गए थे लेकिन उनके दोनों हाथ और दोनों पैर काम नहीं कर रहे थे. ट्रेकियोस्टोमी नाम के एक इमरजेंसी ऑपरेशन (जिसमें सांस लेने के लिए गले से होते हुए विंड पाइप में छेद किया जाता है) के बाद वो सांस तो ले पा रहे थे, लेकिन इसके लिए उन्हें आयरन लंग मशीन यानी लोहे के फेफड़ों की ज़रूरत पड़ रही थी. यही वो मेटल ट्यूब था जिसने उनके शरीर को बांध रखा था.

बीते दिनों 78 साल की उम्र में पॉल का देहांत हो गया. इसके साथ ही पॉल इतिहास में सबसे लंबे वक्त तक इन मशीनी फेफड़ों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति बन गए. उन्होंने लगातार सात दशकों तक इससे सांस ली.

लेकिन वो क्या था जो उन्हें उनके दोस्तों के बीच भी सबसे अलग करता था, जो उन्हें ज़िंदादिल रखता था.

19वीं से 20वीं सदी में पोलियो महामारी का रूप ले चुका था, इस दौर में इस बीमारी ने सैंकड़ों बच्चों की जान ली और उन्हें अपंग बना दिया.

1952 में पॉल टेक्सस के एक अस्पताल में भर्ती थे. कई और बच्चे भी वहां भर्ती थे जो उन्हीं की तरह स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे थे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पोलियो संक्रमित 200 में से एक व्यक्ति को लकवा हो जाता है जो बाद में ठीक नहीं होता. इनमें से 5 से 10 फ़ीसदी के अंदर सांस लेने से जुड़ी मांसपेशियों में मुश्किलें आती हैं और व्यक्ति की मौत हो जाती है.

Philip Alexander फ़िलिप अलेक्ज़ेंडर अपने भाई पॉल के साथ अनिश्चित भविष्य

दो साल अस्पताल में रहने के बाद पॉल के भविष्य को लेकर डॉक्टर संदेह करने लगे. ऐसे में उनके माता-पिता ने एक मुश्किल फ़ैसला किया. वो लोहे के फेफड़ों के साथ पॉल को घर ले आए ताकि वो अपनी आख़िरी सांस शांति से ले सकें.

लेकिन पॉल ने दुनिया को अलविदा नहीं कहा, वो दिन-ब-दिन और मज़बूत होते गए.

पॉल जिस मशीनी फेफड़े का इस्तेमाल कर रहे थे वो निगेटिव प्रेशर सिस्टम पर काम करते हैं. इसमें एक मोटर लगा होता है जो ट्यूब के भीतर की हवा को बाहर निकाल देता है. ऐसे में ट्यूब के भीतर वैक्यूम तैयार हो जाता है जो व्यक्ति को फेफड़ों को हवा लेकर फूलने पर मजबूर कर देता है.

फिर ट्यूब में यही प्रक्रिया उल्टी चलने लगती है यानी उसमें हवा भरने लगती है जिससे व्यक्ति के फेफड़े सिकुड़ जाते हैं और वो सांस छोड़ देता है. इस तरह व्यक्ति की सांस चलती रहती है. इस मशीन को काम करते रहने के लिए बाहर से ऊर्जा चाहिए होती है.

बिजली न रहने की स्थिति में हाथ से हवा भरने-निकालने के लिए ट्यूब में एक पंप होता है. ऐसे वक्त में पॉल के पड़ोसी उनकी मदद के लिए आते थे.

पॉल के पिता ने एक अलार्म सिस्टम बनाया था जिसे इमरजेंसी में पॉल अपने मुंह से बजा सकते थे.

वक्त के साथ पॉल ने अपने गले की मांसपेशियों का इस्तेमाल सीखा जिसके मदद से वो झटकों में सांस ले पाते थे. इसे फ्रॉग ब्रीदिंग कहते हैं.

पॉल के छोटे भाई फ़िलिप ने बीबीसी को बताया कि एक पिल्ले के वादे ने पॉल को इस जटिल फ्रॉग ब्रीदिंग का अभ्यास करने का उत्साह दिया.

फ़िलिप कहते हैं, "पॉल को डर था कि वो मर जाएंगे, लेकिन उन्होंने पॉल से कहा कि तीन मिनट तक ऐसा कर सके तो उन्हें पिल्ला मिलेगा." और पॉल ने वो कर दिखाया जो असंभव था.

इसके बाद पॉल का भरोसा बढ़ने लगा और वो धीरे-धीरे अधिक वक्त लोहे के फेफड़ों से बाहर बिताने लगे. इसने उन्हें अपना जीवन जीने का मौक़ा दिया. वो व्हीलचेयर पर पड़ोस के अपने बचपन के दास्तों से मिलने जाते और थक जाने पर अपने मशीनी फेफड़ों के पास वापस आ जाते.

फ़िलिप कहते हैं, "मेरे लिए वो आम भाई की तरह था. हम झगड़ते थे, साथ खेलते थे, पार्टी करते थे और कॉन्सर्ट में जाते थे. आम भाइयों की तरह ही हम काम करते थे."

पढ़ाई और आगे का जीवन

पॉल ने अपनी स्कूल की और कॉलेज की पढ़ाई घर पर पूरी की. इसके बाद लॉ स्कूल जाना चाहते थे.

फ़िलिप कहते हैं कि ऑस्टिन में टेक्सास यूनिवर्सिटी में पॉल ने जो वक्त बिताया वो "अविश्वसनीय" था. पॉल के माता-पिता ने सबसे पहले उनके मशीनी फेफड़ों को यूनिवर्सिटी तक पहुंचाया. जिस केयरगिवर को उन्होंने अपने लिए रखा था एक दिन उसके न आने पर पॉल सीमित मदद के साथ अपनी ज़िंदगी अपने आप जीना सीखने लगे.

फ़िलिप कहते हैं, "उसके पास असल में केयरगिवर थे नहीं. वो डॉर्मिटरी में रहते थे और दूसरे लोग उनका खयाल रखने लगे थे. वो उन्हें व्हीलचेयर में कैंपस घुमाने ले जाते थे."

इसके बाद पॉल ने डलास में लॉ की प्रैक्टिस की. कई बार जब उनके क्लाइंट उनसे मिलने आते वो उन्हें लोहे के फेफड़ों में देखकर चौंक जाते.

फ़िलिप कहते हैं, "ये देखना आसान नहीं था कि ट्यूब से इंसान का केवल सिर बाहर निकला हुआ है, उन्हें देखकर कई लोगों को सदमा लग जाता था. मैंने ये सब काफी देखा है."

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    अपने वयस्क जीवन का अधिकतर वक्त उन्होंने अकेले बिताया. ये किसी ऐसे इंसान के लिए कतई संभव नहीं था जिसे बाथरूम जाने या पानी पीने जैसी अपने मामूली ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना होता है.

    फ़िलिप कहते हैं कि वक्त के साथ वो अपना ख्याल रखने में माहिर होते गए और मदद लेने में लोगों की मदद करने लगे.

    वो कहते हैं, "उन्हें अलग तरह की मदद की ज़रूरत होती थी. यहां तक कि प्रोफ़ेशनल्स को भी लोहे के फेफड़ों के भीतर रहने वाले एक लकवाग्रस्त व्यक्ति की देखभाल की ट्रेनिंग नहीं दी जाती."

    "उन्हें शेविंग और खाना खाने में मदद जैसी मामूली मदद चाहिए होती थी, लेकिन उन्हें व्हीलचेयर में ले जाते वक्त ये ध्यान रखना होता था कि उनके उंगलियों की मूवमेन्ट को न रोका जाए."

    पॉल को केयरगिवर की ज़रूरत होती थी लेकिन इसके लिए जो विज्ञापन दिया जाता था उसमें कोई ख़ास इन्सट्रक्शन मैनुअल नहीं होता था.

    फ़िलिप कहते हैं, "वो काम करते-करते सीखते थे. कई लोग तो एक दो दिन में काम छोड़ कर चले गए. मुझे याद है कि मैंने एक बार एसिस्टेड लिविंग सेन्टर्स के बारे में काफी खोजबीन की थी. कुछ में मैंने पूछा था कि क्या वो पॉल की देखभाल कर सकेंगे लेकिन उनके चेहरे के भाव मैं बता नहीं सकता."

    एक बार पॉल को कैथी गेन्स नाम की केयरगिवर मिली जो दशकों तक उसके साथ रही. कैथी की मौत से पॉल को बड़ा सदमा लगा.

    फ़िलिप कहते हैं कि वो हमेशा खुद को अपने भाई के बैक-अप केयरगिवर के तौर पर देखते थे लेकिन वो पॉल की बनाई व्यवस्था के भी कायल थे.

    वो कहते हैं, "पॉल ने अपनी ज़िदगी में बहुत सारे शानदार और खूबसूरत दोस्त बनाए थे."

    Rotary Club of Park Cities Dallas पॉल अपनी दोस्त कैथी गेन्स के साथ मदद की ज़रूरत

    इन्हीं दोस्तों में से एक ने पॉल की मदद उस वक्त की जब उन्हें इसकी बेहद ज़्यादा ज़रूरत थी.

    बात 2015 की है, जब पॉल के मशीनी फेफड़े अचानक लीक करने लगे. इस तरह मशीनें दुर्लभ हुआ करती थीं और मशीन रिपेयर करने के लिए किसी की तलाश कर पाना वक्त से जंग लड़ने जैसा था.

    इसके लिए सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाई गई. पूरी दुनिया से कई लोग पॉल की मदद के लिए सामने आए, लेकिन उन्हें घर के पास ही मदद मिल गई.

    डलास में पॉल के घर से दस मील आगे एक एनवायरनमेंट टेस्टिंग लेबोरेटरी थी जिसके मालिक बैडी रिचर्ड्स थे.

    एक इमारत खाली करने के काम में ब्रैडी को दो मशीनी फेफड़े मिले थे. वो याद करते हैं एक दिन एक डॉक्टर उनके पास आए और उनसे पूछा, "क्या आपके पास यहां मुझे आयरन लंग मिलेंगे?"

    मशीन ठीक से काम नहीं कर रही थी और पॉल को घर पर रखना केयरगिवर के लिए मुश्किल होता जा रहा था. ये डॉक्टर पॉल को अस्पताल से घर और घर से अस्पताल लाने-ले जाने का काम करते थे.

    स्थिति बिगड़ती जा रही थी. ऐसे में एक दिन किसी से सुनकर डॉक्टर ब्रैडी के पास आए थे.

    ब्रैडी कहते हैं, "मुझे उस वक्त पॉल अलेक्ज़ेंडर के बारे में कुछ पता नहीं था."

    स्थिति के बारे में जानने के बाद ब्रैडी अपने पास रखी एक मशीन को दुरुस्त करने के काम में जुट गए.

    उन्होंने कुछ नए पुर्ज़े बनाए, कुछ पुर्ज़े दूसरी मशीनों से लिए और मशीन ठीक करते-करते इनके बारे में सीखने लगे.

    वो कहतें हैं, "आयरन लंग मज़बूत मशीनें हुआ करती थीं जो लंबे वक्त तक चलने के लिए बनाई गई थी. ये सिंपल मशीनें थी इसलिए इन्हें दुरुस्त करना ज़्यादा मुश्किल नहीं था. आप इनमें सांस लेने की गति को धीमा या तेज़ कर सकते थे."

    Brady Richards आयरन लंग के साथ ब्रैडी रिचर्ड्स

    मशीन का काम पूरा होते ही ब्रैडी इसे लेकर पॉल के घर गए और उनकी पुरानी मशीन को इससे बदल दिया. उन्होंने ये काम मुफ्त में किया.

    लेकिन उनका काम ख़त्म नहीं हुआ. एक रात पॉल की केयरगिवर ने ब्रैडी को फ़ोन किया और कहा कि मशीन काम नहीं कर रही है."

    ब्रैडी पॉल के घर आए और उन्होंने देखा कि गले पर लगने वाला कॉलर सही तरीके से नहीं लगा है और ढीला हो गया है.

    वो याद करते हैं कि "पॉल लगातार कह रहे थे कि वो ठीक हैं, लेकिन सच ये है कि उनका शरीर नीला पड़ रहा था."

    इस तरह की इमरजेंसी के लिए पॉल के पास दूसरी डिवाइस थी, जो छोटी थी लेकिन आयरन लंग से अलग तकनीक पर काम करती थी.

    लंदन के सेंट थॉमस अस्पताल के लेन फ़ॉक्स रेस्पिरेटरी यूनिट के डॉक्टर पैट्रिक मर्फ़ी समझाते हैं, "ये पॉज़िटिव प्रेशर रेस्पिरेटर होते हैं जो व्यक्ति को ऐसा अनुभव देते हैं जैसे उनका सिर कार की खिड़की से बाहर निकला हुआ हो. हर किसी को ये अनुभव ठीक नहीं लगता."

    पॉल ने कभी इस तरह के मास्क जैसे डिवाइस का इस्तेमाल नहीं किया.

    James Porteous जेम्स पोर्टियस अपनी ख़ास कार में जिसे उनकी सुविधा के हिसाब से मॉडिफाई किया गया है मशीन बदलने का विकल्प

    लेकिन उत्तरी इग्लैंड के यॉर्क में रहने वाले 78 साल के जेम्स पोर्टियस ने अपना डिवाइस बदलने का फ़ैसला किया. उन्हें भी उसी साल पोलियो हुआ जिस साल पॉल को हुआ.

    जेम्स पोर्टियस को भी पहले आयरन लंग में ही रखा गया था. उनकी स्थिति बेहतर होने लगी और एक वक्त वो आया जिसमें वो मशीन की ज़्यादा मदद लिए बिना जीवन जीने लगे थे.

    हालांकि जैसा पोलियो के दूसरे मरीज़ों के साथ होता है वक्त और उम्र के साथ मशीन पर उनकी निर्भरता बढ़ती गई.

    अब वो दिन में 17 घंटों के लिए एक रेस्पिरेटर मास्क का इस्तेमाल करते हैं.

    उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर पहले स्टॉक ब्रोकर के तौर पर काम किया, जिसके बाद राउनट्री नाम की कंपनी और फिर नेस्ले में काम किया. वो शादीशुदा हैं और उनकी चार बेटियां हैं.

    वो कहते हैं, "मैं सारी ज़िंदगी अपने घुटनों पर एक शॉल डालकर बैठा रह सकता था लेकिन मैंने ऐसा न करने का फ़ैसला किया. आजकल मैं थक जाता हूं लेकिन फिर भी ज़िंदगी अच्छी है. मैं दुनिया के पोलियो को पूरी तरह मिटा देने के अभियान में जुटा हुआ हूं."

    NHS डॉक्टर मर्फ़ी पोलियो को जड़ से खत्म करने का लक्ष्य

    पोलियो को जड़ से ख़त्म करना पॉल का भी लक्ष्य था. उन्होंने 2020 में अपने मेमॉयर में ये बात लिखी थी. अपने मुंह पर लगी पेन्सिल से कीबोर्ड तक पहुंच कर उन्होंने पूरा मेमॉयर खुद ही लिखा था.

    ब्रैडी कहते हैं कि पॉल से मिलने के बाद से वो हमेशा उनके साथ रहे. घर बदलने में और लोहे के फेफड़ों के रिपेयर में वो मदद करते.

    वो कहते हैं, "पॉल का साथ होना अपने आप में खुश करने वाला अनुभव था. उनका सकारात्मक रवैया आपको प्रेरित करता था."

    वहीं डॉक्टर मर्फ़ी कहते हैं कि "पॉल के माता-पिता उन्हें आयरन लंग के साथ घर ले गए. उस दौर में ये अत्याधुनिक तकनीक थी. उन्हें डॉक्टरों, नर्सों और इंजीनियरों की ख़ास मदद की ज़रूरत थी. कई प्रशिक्षण प्राप्त डॉक्टर भी इस तरह की गंभीर बीमारी वाले मरीज़ की देखभाल करने के मामले में कॉन्फिडेंट नहीं होते लेकिन पॉल के घरवालों ने ये किया. ये बहादुरी का काम है."

    बीते साल पॉल अलेक्ज़ेंडर का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया. वो सबसे लंबे वक्त तक लोहे के फेफड़ों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति बने.

    फ़िलिप कहते हैं कि पूरी दुनिया को इस बात पर आश्चर्य हो सकता है कि उनके भाई ने लोहे के फेफड़ों के साथ किस तरह अपनी ज़िंदगी गुज़ारी लेकिन उनके माता-पिता को इस पर आश्चर्य नहीं होता.

    वो कहते हैं, "उन्हें पॉल पर भरोसा था. उन्होंने उसे बहुत प्यार और मज़बूती दी थी. उन्हें इस बात से कभी आश्चर्य नहीं होता."

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