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'हेल्थ ड्रिंक्स' या 'एनर्जी ड्रिंक्स' को ई-कॉमर्स वेबसाइट से हटाने के लिए मंत्रालय ने क्यों कहा

Getty Images/Ania Todica

आप किसी भी किराने की दुकान या ग्रोसरी स्टोर पर जाएं तो आपको वहां क़रीने से रखे हुए कई ड्रिंक्स मिल जाएंगे, जिनमें से कुछ को देखते ही आप स्वास्थ्य के नाम पर उन्हें ख़रीद लेते हैं.

लेकिन क्या ये स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं?

हाल ही में भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने ई-कॉमर्स कंपनियों को एडवाइज़री जारी की है.

इस एडवाइज़री में कहा गया है, ''हमारे संज्ञान में ये आया है कि ई-कॉमर्स साइट या प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ ड्रिंक्स, जिसमें बॉर्नविटा शामिल है उन्हें ''हेल्थ डिंक्स'' की कैटेगरी में डाला गया है.''

इस एडवाइज़री में लिखा गया है, ''नेशनल कमीशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स(एनसीपीसीआर) ने अपनी जांच में पाया कि एफ़एसएस एक्ट 2006, एफ़एसएसएआई और मॉडलेज़ इंडिया फ़ूड प्राइवेट लिमिटेड के ज़रिए दिए गए नियमों में हेल्थ ड्रिंक को परिभाषित नहीं किया गया है. ''

इसलिए ई-कॉमर्स कंपनियों और पोर्टल को ये सलाह दी जाती है कि वो ड्रिंक्स या बीवरेजेज़, जिसमें बॉर्नविटा शामिल है उसे हेल्थ ड्रिंक्स की कैटेगरी से अपने साइट और प्लेटफ़ॉर्म से हटाएं.''

GettyImages/Djavan Rodrequez क्यों उठा ये मामला? BBC

इस संबंध में एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक क़ानूनगो ने बीबीसी से बताया कि उन्हें पिछले साल एक शिकायत मिली थी जिसमें कहा गया था कि बॉर्नविटा में शुगर निर्धारित सीमा से ज़्यादा थी और उसे एक हेल्थ ड्रिंक्स के तौर पर बेचा जा रहा था. साथ ही यह भी कहा जा रहा था कि ये बच्चे के विकास के लिए अच्छा है.

वे बताते हैं, ''ये विज्ञापन भ्रामक और बच्चों के हित में नहीं था. हमने इस बारे में संबंधित सरकारी एजेंसियों को जानकारी दी, वहीं बॉर्नविटा से भी हमारी बातचीत हुई और उन्होंने लिखित में दिया कि उनका ये उत्पाद हेल्थ ड्रिंक नहीं है.''

प्रियंक क़ानूनगो बताते हैं कि इसके बाद उन्होंने एफ़एसएसआई से संपर्क किया और बताया कि एफ़एसएस एक्ट 2006 में हेल्थ ड्रिंक की कोई कैटेगरी नहीं है. यानी कोई भी उत्पाद - जूस ,पाउडर या एनर्जी ड्रिंक की शक्ल में हो, वो हेल्थ ड्रिंक के नाम पर नहीं बेचा जा सकता है.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग(एनसीपीसीआर) का गठन संसद के अधिनियम के अंतर्गत बाल सुरक्षा अधिकार आयोग एक्ट 2005 के तहत किया गया है.

इस बारे में बीबीसी ने मॉडेलेज़ इंडिया फ़ूड प्राइवेट लिमिटेड से ईमेल के ज़रिए संपर्क किया लेकिन उन्होंने जवाब देने से इंकार कर दिया.

GettyImages/Jack Andersen 'कंपनियां चला रही है मार्केटिंग स्टंट'

मुंबई में डायबिटीज़ केयर सेंटर में डॉक्टर राजीव कोविल कहते हैं कि ये कंपनियों की ओर से चलाया जा रहा मार्केटिंग स्टंट है और हेल्थ ड्रिंक जैसा कुछ नहीं होता है. ई-कॉमर्स साइट्स पर आपको कई ड्रिंक्स मिल जाएंगे जो हेल्थ के नाम पर बेचे जा रहे हैं.

डॉक्टर राजीव कोविल का कहना था कि ऐसे ड्रिंक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी नहीं होते हैं.

उनके अनुसार लोगों को ऐसे ड्रिंक का सेवन करना चाहिए जिसमें मिनरल, विटामिन, माइक्रोन्यूटियंट के साथ-साथ शुगर का इस्तेमाल कम हो.

लेकिन शुगर की कितनी मात्रा को कम समझा जाए?

इसे समझाते हुए डॉ राजीव कोविल कहते हैं, ''भारत में फ़ूड लेबलिंग 100 ग्राम पर ही होती है. उदाहरण के लिए अगर कोई खाद्य उत्पाद 100 ग्राम है तो उसमें दस ग्राम से कम चीनी होनी चाहिए. अगर उसमें पांच ग्राम से कम है तो उसे लो शुगर कहेंगे. अगर 0.5 है तो शुगर फ्री कहा जा सकता है. इन सारे ड्रिंक्स में शुगर के अलावा कॉर्बोहाइड्रेट होते हैं जैसे कॉर्न सिरप आदि.''

फ़ूड सेफ़्टी एंड स्टेंडर्डस ऑथिरिटी ऑफ़ इंडिया या एफ़एसएसआई की वेबसाइट पर भी एडवाइज़री छपी हुई है.

इस एडवाइज़री में कहा गया है कि उनके संज्ञान में आया है कि जिन खाद्य पदार्थों को प्रोपराइटेरी फ़ूड का लाइसेंस मिला है, जो डेयरी पर आधारित बिवरेजेज़ मिक्स, सीरियल पर आधारित बिवरेजेज़ मिक्स या मॉल्ट पर आधारित बिवरेजेज़ हेल्थ ड्रिंक, एनर्जी ड्रिंक की कैटेगरी में बेचे जा रहे हैं.

ऐसे में जिन उत्पादों को एफ़एसएस के तहत एनर्जी ड्रिंक्स का लाइसेंस मिला है, वही इसका इस्तेमाल कर सकते हैं और हेल्थ ड्रिंक एफ़एसएस एक्ट 2006 अंतर्गत परिभाषित नहीं है.

प्रियंक क़ानूनगो दावा करते हैं कि इन पाउडर या ड्रिंक्स से बच्चे को इतनी शुगर मिल जाती है कि उन्हें दिन में कोई शुगर लेने की ज़रूरत नहीं होती लेकिन ये उत्पाद बनाने वाले लोग इस बारे में कोई जानकारी नहीं देते.

कितनी शुगर लेनी चाहिए?

डॉ अरुण गुप्ता कहते हैं कि हेल्थ ड्रिंक्स के नाम से ये उत्पाद हमारी जनता पर कई सालों से थोपे जा रहे हैं और विज्ञापनों, मार्केटिंग के ज़रिए भ्रमित किया जा रहा है.

डॉक्टर अरुण गुप्ता बाल रोग विशेषज्ञ हैं और न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई) नाम के थिंक टैंक के संयोजक हैं.

वे कहते हैं, "सरकार का कहना है कि हेल्थ ड्रिंक्स को परिभाषित नहीं किया गया है तो सरकार इसे लेकर क्यों क़दम नहीं उठाती है. एडवाइज़री से कितना काम चलेगा. एक स्पष्ट परिभाषा होनी चाहिए कि हेल्दी फ़ूड, ड्रिंक या अनहेल्दी फ़ूड क्या है?"

GettyImages/Peter Dazeley BBC

जानकारों का कहना है कि ऐसे ड्रिंक्स के कई विकल्प बाज़ार में उपलब्ध हैं जिसमें शुगर की मात्रा काफ़ी होती है.

डॉ राजीव कोविल और डॉ अरुण गुप्ता का कहना है कि जैसे धूम्रपान की लत लग जाती है वैसे ही लोगों या बच्चों को शुगर खाने की लत लग सकती है क्योंकि वो एक ख़ुशी का एहसास भी देता है.

लेकिन जब वो शुगर लेने के लिए ऐसे ड्रिक्स का इस्तेमाल करने लगते हैं तो उन्हें नॉन कम्यूनिकेबल डिज़िज होने का ख़तरा और बढ़ जाता है. नॉन कम्यूनिकेबल डिज़िज यानी वो बीमारी जो किसी संक्रमण से नहीं बल्कि अस्वस्थ आचरण से होती है.

इससे कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जैसे -

  • वज़न का बढ़ना
  • मोटापा होना
  • इससे डायबिटीज़ की समस्या हो जाती है.

डॉक्टरों का कहना है कि उदाहरण के तौर पर बिस्किट में चीनी के अलावा नमक भी होता है. जूस या एनर्जी ड्रिंक्स में चीनी की मात्रा काफ़ी होती है. ये सभी उत्पाद अल्ट्रा प्रोसेस्ड फ़ूड में भी आते हैं.

हाल ही में ब्रिटिश मेडिकल जनरल (बीएमजे) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे स्वास्थ्य पर ही असर नहीं होता बल्कि उम्र भी छोटी होती है.

डॉ अरुण गुप्ता कहते हैं, ''अगर आपकी रोज़ की डाइट में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फ़ूड का हिस्सा 10 प्रतिशत से ज़्यादा है तो ये शरीर पर डायबिटीज़, कैंसर, हॉर्ट डिज़ीज, डिप्रेशन जैसी बीमारी दे सकता है. ये नॉन कम्यूनिकेबल डिज़िज तेज़ी से बढ़ रही हैं.''

विज्ञापनों में बताया जाना चाहिए कि खाद्य या पेय पदार्थों में कितनी प्रतिशत चीनी या नमक का इस्तेमाल किया गया है.

डॉ अरुण गुप्ता कहते हैं कि लो शुगर प्रोडक्ट को परिभाषित किया गया है लेकिन हाई शुगर प्रोडक्ट को लेकर कोई जानकारी नहीं दी जाती है.

ऐसे विज्ञापनों का प्रचार प्रसार कम होना चाहिए ताकि ऐसे उत्पादों को खरीदने में कमी लाई जा सके.

डॉ अरुण गुप्ता और डॉ राजीव कोविल कहते हैं कि लोगों को जागरुक करना होगा क्योंकि उन्हें फ़ूड लेबल पढ़ने नहीं आता. ऐसे में जो लोग पढ़े लिखे नहीं हैं उनको ध्यान में रखते हुए ट्रैफिक कलर कोडिंग के ज़रिए जागरुक किया जाना चाहिए. वहीं जिन उत्पादों में हाई शुगर, साल्ट और फ़ैट है उसे लेकर बड़ी वार्निंग दी जानी चाहिए.

ऐसे उत्पादों की क़ीमत ज़्यादा रखनी चाहिए और कर भी अधिक लगाना चाहिए ताकि जो ख़रीद रहा है वो उसे देखे कि वो सेवन या ज़ायक़े के लिए क्या ले रहा है.

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