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Chaitra Purnima 2024 Vrat Katha : चैत्र पूर्णिमा की व्रत कथा, इसे पढ़ने-सुनने से सांसरिक सुख भोगने के बाद मिलता है मोक्ष

चैत्र पूर्णिमा 23 अप्रैल, मंगलवार के दिन है। इस दिन हनुमान जयंती भी है। इसके अलावा पूर्णिमा इस बार चित्रा नक्षत्र में पड़ रही है। इस कारण से चैत्र की पूर्णिमा का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। चैत्र की पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 23 तारीख को सुबह 3 बजकर 26 मिनट पर है, जबकि 24 तारीख को सुबह में 5 बजकर 19 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी। इस कारण से पूर्णिमा का व्रत 23 अप्रैल, मंगलवार को ही रखा जाएगा।
चैत्र पूर्णिमा पर विधि-विधान के साथ पूजा करने के साथ पूर्णिमा व्रत कथा का पाठ करने या इसे सुनने से आपकी मनोकामनाएं पूरी होती है और मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। आइए, जानते हैं चैत्र पूर्णिमा व्रत कथा। चैत्र पूर्णिमा व्रत की महिला के बारे में एक साधु वैश्य ने सुना और पूर्णिमा पर सत्यव्रत पूजन करने का संकल्प लिया। साधु वैश्य ने कहा कि जब उसे संतान प्राप्ति होगी, तो सत्यवत पूजन करेगा। समय बीतने के साथ उस वैश्य साधु के यहां पर एक कन्या ने जन्म लिया। कन्या के जन्म के बाद उसकी पत्नी ने याद सत्यव्रत यानी सत्यनारायण भगवान की पूजा कराने का स्मरण कराया लेकिन साधु वैश्य ने कहा कि कन्या का विवाह होगा, तो सत्यव्रत करेगा लेकिन वैश्य साधु ने व्रत नहीं किया।
इसके बाद वो अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया। वहां भाग्य ने ऐसी करवट ली कि उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया। इधर साधु वैश्य के घर में चोरी हो गई। इस कारण साधु वैश्य के घर में दाने-दाने की मोहताजी छा गई। पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गई। एक दिन किसी नगर में सत्यनारायण का पूजन हो रहा था। प्रसाद मिलने की लालसा में पुत्री कलावती पूजन में बैठ गई। प्रसाद मिलने पर उसने घर आकर अपनी मां को प्रसाद दिया। तब उसकी मां कलावती को याद आया कि उसके पति ने सत्यव्रत करने का संकल्प लिया था।
लीलावती ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापिस आने की मनोकामना मांगी। लीलावती का श्रद्धा भाव और समर्पण भाव देखकर श्री हरि प्रसन्न हो गए और स्वप्न में राजा को कह दिया कि वह दोनों बंदियों को छोड़ दे, क्योंकि वह निर्दोष हैं। राजा ने अगली सुबह उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया। तब वैश्य साधु ने घर आकर विधि-विधान के साथ पूर्णिमा का व्रत रखा और सत्यनारायण कथा का पाठ कराया। इसके बाद वे सपरिवार चैत्र पूर्णिमा सहित प्रत्येक पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन भर आयोजन करता रहा।
इसके पश्चात सभी सांसरिक सुख भोगने के बाद उसे अंत में मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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