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अक्षय तृतीया पर्व का वैज्ञानिक आधार मानेंगे, तो आरोग्यता पाऐंगे, घर-परिवार से दूर होंगी अनेक बीमारियां

वैशाख मास शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि जो कि अक्षय तृतीया के नाम से जगत प्रसिद्ध है, इस दिन स्वास्थ्य लाभ, समृद्धि एवं संकटों से मुक्ति के लिए अनेक उपायों का विवरण प्राप्त होता है। इस पवित्र तिथि से प्रारम्भ कर फ्रिज के ठण्डे पानी की अपेक्षा प्रतिदिन मिट्टी के घड़े में जल भरकर पानी पीने से शरीर स्वस्थ रहता है। मिट्टी के सम्पर्क से जल में पृथ्वी तत्व की वृद्धि होती है, जल तत्व और पृथ्वी तत्व शरीर के लिए पोषक बनते हैं, जो वैशाख मास में आरोग्य प्राप्ति के लिए सरलतम उपाय है।
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में होती है वृद्धि - यदि हम अक्षय तृतीया को वैज्ञानिक, सामाजिक व्यवस्था के परिपेक्ष में देखें तो अक्षय तृतीया पर्व तक लगभग आधा वैशाख का महीना बीत चुका होता है, अतः गर्मी अपनी चरम सीमा पर होती है, दिन भर लू चलती रहती है इसलिए अक्षय तृतीया के पर्व के दिन से ही राह चलते लोगों के लिए प्याऊ लगवाने की व्यवस्था शास्त्रों में वर्णित है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन प्रत्येक व्यक्ति को भुने हुए जौ का, बूरा आदि मीठे से मिश्रित आटे (सत्तू, जो कि एक सुपाच्य और पूर्ण भोज है) का सेवन तथा दान करना चाहिए।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो जौ का आटा जिसे हम सत्तू के नाम से जानते हैं, गर्मी के लिए साक्षात अमृततुल्य है। जौ (बाली) गर्मी को शान्त करने वाला, सुपाच्य तथा हल्का भोजन है। जौ का उबला पानी बीमारों के लिए प्रायः ही डॉक्टर बताते हैं। शास्त्रों में उसे देव अन्न के रूप में प्रतिष्ठित किया है एवं इस ऋतु में जौ आदि के दान का विशेष महत्व प्रतिपादित किया गया है। इसी के साथ जगह-जगह प्याउ लगवाना अथवा मिट्टी से बने हुए घड़ों में पानी भरकर दान करने का विशेष विधान इस पर्व के साथ-साथ जुड़ा हुआ है।

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