ज्योतिष शास्त्र के प्रारंभिक ज्ञान में जानें जन्मकुंडली में भाव और भावेश
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जन्मकुंडली का दसवां भाव व्यक्ति के कर्म से संबंधित है, इसलिए दसवें भाव के स्वामी को दशमेश अथवा कर्मेश कहकर संबोधित किया जाता है। जन्मकुंडली का ग्यारहवां भाव लाभ से संबंध रखता है, इसलिए जन्मकुंडली के ग्यारहवें भाव के स्वामी को एकादशेश अथवा लाभेश कहकर संबोधित किया जाता है। जन्मकुंडली के बारहवें भाव का संबंध व्यक्ति के व्यय यानि हानि से होता है, अतः बारहवें भाव के स्वामी को द्वादशेश अथवा व्ययेश कहा जाता है। फलादेश के लिए जन्मकुंडली के भाव और भाव के स्वामी यानि भावेश के बारे में जानना अत्यंत आवश्यक है।भाव के स्वामी को पूर्ण रूप से समझने के लिए मेष लग्न की कुण्डली का उदाहरण लेते हैं, मेष लग्न की जन्मपत्री में प्रथम स्थान लग्न पर एक नम्बर अंकित होता है, एक नम्बर का अभिप्राय राशि चक्र की पहली मेष राशि से होता है, यानि कि जब प्रथम भाव में मेष राशि विद्यमान होगी तो मेष राशि का स्वामी मंगल मेष लग्न के लिए लग्नेश की भूमिका में होगा। गौरतलब है मंगल की दूसरी राशि मेष लग्न की जन्मपत्री में आठवें भाव में पड़ती है, जिसके कारण मेष लग्न की कुण्डली में अष्टमेश भी मंगल ग्रह होता है यानि कि मेष लग्न की कुण्डली में मंगल लग्नेश एवं अष्टमेश की भूमिका में रहता है।इसी प्रकार मेष लग्न की कुंडली में दूसरे घर, धन स्थान पर वृष राशि के लिए दो अंक अंकित रहता है, जिसके कारण द्वितीयेश अथवा धनेश की भूमिका में शुक्र ग्रह आ जाता है, द्वितीयेश भाव के स्वामी के साथ मेष लग्न की कुण्डली में शुक्र की दूसरी राशि सप्तम स्थान पर रहती है, जिसके कारण मेष लग्न की कुण्डली में सप्तमेश भी शुक्र ग्रह रहता है। इसी प्रकार से तृतीयेश और षष्ठेश की भूमिका में बुध, चतुर्थेश की भूमिका में चन्द्र, पंचमेश की भूमिका में सूर्य, नवमेश और द्वादशेश की भूमिका में गुरू तथा दशमेश और एकादशेश की भूमिका में शनि ग्रह रहता है। इसी नियम से अन्य लग्नों के लिए प्रत्येक भाव के स्वामी के रूप में अलग-अलग ग्रहों को समझना चाहिए।">
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