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मेरा देश बदल रहा है... बड़ी कारों की बढ़ रही है मांग, जान लीजिए क्या है वजह

नई दिल्ली: इकनॉमिक ग्रोथ के साथ देश में लोगों की पसंद भी तेजी से बदल रही है। अब ज्यादा से ज्यादा लोग बड़ी कारों को चलाना पंसद कर रहे हैं। देश में भारत में कॉम्पैक्ट वीकल्स की मांग कम होती जा रही है। कॉम्पैक्ट वीकल्स का मतलब ऐसी गाड़ियों से है जिनकी लंबाई चार मीटर से कम होती है। देश में इस तरह की कारों को टैक्स में सबसे ज्यादा फायदा दिया जाता है।
लेकिन इसके बावजूद चार मीटर से कम लंबाई वाली कॉम्पैक्ट गाड़ियों की हिस्सेदारी साल 2023 में गिरकर 50% रह गई जो साल 2021 में 62% थी। Jato Dynamics के आंकड़ों के मुताबिक इस सेगमेंट में लॉन्च किए जाने वाले मॉडलों की संख्या भी 2023 में घटकर 38 रह गई जो 2021 में 48 थी। इस सेगमेंट में हाइपर-कॉम्पिटिटिव एंट्री-लेवल एसयूवी कैटेगरी भी शामिल है, लेकिन ग्राहक अब बड़ी गाड़ियों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं।Jato Dynamics के प्रेसिडेंट रवि भाटिया ने कहा कि इस सेगमेंट में लोगों की दिलचस्पी कम हो रही है और शायद यही कारण है कि कंपनियां इसमें कम ही नए मॉडल ला रही हैं। जानकारों का कहना है कि ग्राहकों के बदलते मिजाज को देखते हुए ऑटो कंपनियों को भी अपनी रणनीति पर विचार करना पड़ रहा है। अब नीति-निर्माताओं को भी नीतियों में बदलाव लाने की जरूरत है। साल 2006 में भारत ने एक नीति लागू की थी जिसके तहत 4 मीटर से कम लंबाई वाली कारों, 1200 सीसी से छोटे पेट्रोल इंजन और 1500 सीसी से छोटे डीजल इंजन वाली गाड़ियों पर उत्पाद शुल्क कम कर दिया गया था। इससे छोटी कारों की लोकप्रियता बढ़ी और लगभग एक दशक तक औसतन 72% कारें बिकीं। मारुति सुजुकी, हुंडई, टाटा मोटर्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा, किआ, रेनॉल्ट, निसान और टोयोटा जैसे अधिकांश ऑटो कंपनियों की इस मार्केट खासकर कॉम्पैक्ट एसयूवी सेगमेंट में मौजूदगी थी।
क्या है वजहदेश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी के अनुसार एंट्री-लेवल एसयूवी को किफायती बनाने से उपभोक्ताओं की पसंद पर असर पड़ा है। मारुति सुजुकी के सीनियर एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहे शशांक श्रीवास्तव ने बताया कि प्रीमियम हैच और एंट्री सेडान के साथ कीमतों के ओवरलैप ने एंट्री एसयूवी कंसीडरेशन को बढ़ा दिया है।' एमजी मोटर के एक प्रवक्ता ने कहा कि एसयूवी उन लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है जो पहले हैचबैक और कॉम्पैक्ट सेडान की ओर आकर्षित होते थे। भारतीय परिस्थितियों में उनके फॉर्म फैक्टर शानदार ढंग से काम करते हैं। ऑटो कंपनियों ने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपनी लाइनअप को इसके मुताबिक ढाल लिया है। वे अर्बन मोबिलिटी के मुताबिक एसयूवी लॉन्च कर रहे हैं। हुंडई और टाटा मोटर्स ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।गाड़ियों के लिए नई सुरक्षा जरूरतों ने एंट्री-लेवल हैचबैक की लागत बढ़ा दी है। इन कारों पर ज्यादा प्रॉफिट कमाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। साथ ही छोटी कारों का प्रभुत्व भी एक कारण है जिससे कुछ OEM को बाजार से बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा है। सेफ्टी और फ्यूल इकॉनमी रेगुलेशन, पैकेजिंग लिमिटेशंस और कीमतों को कम रखने की जरूरत के कारण छोटी कारों को डिजाइन करने में कई चुनौतियां हैं। भारत में शहरी आय में स्थिरता बनी हुई है। इसलिए गाड़ियों को लेकर लोगों की पसंद तेजी से बदल रही है। इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि महंगाई पर लगाम और फाइनेंसिंग के आसान विकल्पों के कारण नई पीढ़ी के खरीदारों के बीच महंगी गाड़ियों को खरीदने का चलन बढ़ रहा है।

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