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संपादकीय: वीवीपैट का दायरा बढ़ाने की जरूरत

देश में 18वीं लोकसभा के लिए होने वाले सात चरणों का मतदान आज से शुरू हो गया शुक्रवार को पहले चरण की वोटिंग के लिए सारी तैयारियां हो चुकीं । लेकिन दिलचस्प है कि मतदान से ठीक पहले तक सुप्रीम कोर्ट में चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता से जुड़े मामले पर सुनवाई होती रही। मसला इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में डाले गए वोटों के वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर्चियों से मिलान का है।
कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। पुराना मसला निश्चित रूप से मुद्दा अहम है और पुराना भी। EVM के जरिए वोटिंग की शुरुआत 2004 के लोकसभा चुनावों में हुई थी। तब से सरकारें बदलती रहीं, लेकिन EVM की गड़बड़ियों के आरोप लगते रहे। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह बात पहले ही स्पष्ट कर दी कि बैलट पेपर की ओर वापसी का विकल्प नहीं है। लेकिन उसने यह भी कहा कि चुनाव प्रक्रिया की शुचिता और उसकी विश्वसनीयता से किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। VVPAT के बाद EVM की विश्वसनीयता के सवाल से जूझते हुए ही 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से VVPAT लाया गया। इससे मतदाताओं को यह देखने का मौका मिलता है कि उनका वोट उसी को गया है जिसे वह देना चाहते थे। इसने निश्चित रूप से EVM की विश्वसनीयता बढ़ाने वाले एक टूल के रूप में अपनी जगह बनाई है, लेकिन विवाद का कोई सर्वमान्य हल उसके बाद भी नहीं निकल सका। दायरा बढ़ाया
2019 के लोकसभा चुनावों से पहले यह मामला एक बार फिर जोरदार ढंग से उठा। तब सुप्रीम कोर्ट में पिटिशन के जरिए मांग की गई कि हर लोकसभा क्षेत्र में 50 फीसदी VVPAT पर्चियों का मिलान किया जाए। इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट का कहना था कि अगर बिना किसी तय आधार के यूं ही चुन लिए गए 479 EVM का VVPAT से मिलान किया जाता है तो 99 फीसदी सटीक नतीजे आ सकते हैं। चुनाव आयोग ने बताया कि वह इससे आठ गुना ज्यादा EVM लेता है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने VVPAT मिलान का दायरा पांच गुना और बढ़ाने को कहा। वक्त कोई मसला नहीं बावजूद इसके, मामला अभी भी फंसा हुआ है। अभी हर विधानसभा क्षेत्र से 5 EVM की VVPAT पर्चियां मिलान के लिए ली जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में हर वोट के मिलान की मांग की गई है। दिक्कत यह है कि VVPAT की पर्चियों के मिलान में वक्त लगता है। लेकिन सवाल चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता का हो तो वक्त कोई मसला नहीं होना चाहिए। यूं भी 2004 में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया तीन सप्ताह में पूरी हुई थी। इस बार उसके लिए छह सप्ताह का वक्त लिया जा रहा है। जब वोटिंग में इतना समय लिया गया तो थोड़ा वक्त काउंटिंग में भी लगने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। बेहतर होगा चुनाव आयोग अपनी तरफ से VVPAT मिलान का दायरा बढ़ाने पर विचार करे।

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