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संपादकीय: महाराष्ट्र में सीट बंटवारे पर सहमति, लोकसभा चुनाव से पहले MVA का मेसेज

महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी (MVA) ने आखिर मंगलवार को गुड़ी पाड़वा के मौके पर सीट बंटवारे की घोषणा कर दी। उसके लिए संतोष की अतिरिक्त बात यह भी है कि अन्य कुछ राज्यों में भले ही NDA खेमा ज्यादा व्यवस्थित और अनुशासित नजर आ रहा हो, कम से कम महाराष्ट्र में MVA ने उसे पीछे छोड़ दिया है। वहां महायुति के घटक दलों में अभी भी कई सीटों को लेकर मतभेद नहीं सुलझ पाए हैं।
बड़े भाई की भूमिकासीटों का जिस तरह से बंटवारा हुआ है, उसमें पहली नजर में शिवसेना (UBT) फायदे में नजर आती है जिसे सबसे ज्यादा 21 सीटें मिली हैं। यानी कम से कम सीटों के बंटवारे के दौरान उसने प्रदेश राजनीति में बड़े भाई की अपनी भूमिका बरकरार रखने का दावा करने लायक स्थिति बनाए रखी है। कांग्रेस को जहां 17 सीटों पर संतोष करना पड़ा, वहीं NCP के हिस्से में महज 10 सीटें आई हैं। सांगली, भिवंडी और उत्तर पश्चिम मुंबई यानी जिन सीटों को लेकर विवाद सार्वजनिक हुआ था, उन सभी पर कांग्रेस को पीछे हटना पड़ा। हालांकि कांग्रेस इसे तानाशाही के खिलाफ जंग में दी गई आहुति करार दे रही है। लेकिन देखना होगा कि यह त्याग या समझदारी इन पार्टियों की सांसदों की संख्या में किस हद तक इजाफा कर पाती है। राज्य पर टिकीं नजरें
महाराष्ट्र पर इस बार पूरे देश की नजरें अगर विशेष रूप से टिकी हुई हैं तो उसके पीछे ठोस वजहें भी हैं। यहां से कुल 48 सांसद चुने जाने हैं, जो यूपी (80) के बाद सबसे बड़ी संख्या है। दूसरी बात यह कि विभिन्न पार्टियों में टूट-फूट के चलते न सिर्फ पार्टियों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी हुई है बल्कि उसकी वजह से प्रत्याशियों और उनके वोटर बेस को लेकर भी ऐसे सवाल उठ खड़े हुए हैं, जिनके जवाब इन चुनाव नतीजों से ही मिलेंगे। राजनीति का स्वरूपइस बार दांव पर महाराष्ट्र की पारंपरिक राजनीति का स्वरूप भी है। जिन नेताओं और परिवारों की प्रदेश राजनीति में साख रही है, न केवल उनकी पार्टियां दो फाड़ हो चुकी हैं बल्कि वे परिवार के स्तर पर भी जूझते दिख रहे हैं। विपक्षी गठबंधन के नेता इसका सारा दोष BJP पर मढ़ते हैं, जो इसे गलत बताती है। लेकिन इन नेताओं के परिवारवाद को निशाना बनाने में कोई गुरेज नहीं करती। स्वाभाविक ही, लोकसभा चुनाव के नतीजे यह फैसला करेंगे कि प्रदेश की राजनीति में शरद पवार और उद्धव ठाकरे का दबदबा कायम रहेगा या उसके अंत की शुरुआत हो जाएगी। पांच चरणों में चुनाव
प्रदेश में चुनाव पांच चरणों में होना है। 19 अप्रैल को वहां पहले और 20 मई को आखिरी दौर का मतदान होना है। बहरहाल, सबसे बड़ी बात देखने वाली यही होगी कि इन पार्टियों के वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर होते हैं या नहीं और होते हैं तो किस हद तक।

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