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संपादकीय: निजी संपत्ति को अपने कब्जे में ले सकती है सरकार? राज्य के अधिकार को समझ लीजिए

दिलचस्प संयोग है कि जब देश में निजी संपत्ति के कथित पुनर्वितरण को लेकर चुनावी माहौल गरमाया हुआ है, तभी सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ इस सवाल पर विचार कर रही है कि क्या राज्य निजी स्वामित्व वाली संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत 'समुदाय की संपत्ति' मानते हुए नियंत्रित करने का अधिकार रखता है। स्वाभाविक ही इस सवाल में निजी संपत्ति के पुनर्वितरण का पहलू भी शामिल है।
कई पहलू अस्पष्ट यूं तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने पहले भी उठता रहा है, लेकिन इससे जुड़े कुछ अहम पहलू पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाए हैं। इससे जुड़े सबसे चर्चित मामले (कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी) में 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 के बहुमत से फैसला दिया था कि निजी स्वामित्व वाली संपत्ति को समुदाय की संपत्ति नहीं माना जा सकता। लेकिन आगे चलकर इसी मामले में जस्टिस वी आर कृष्ण अय्यर की अल्पमत राय ज्यादा अहम मानी गई, जिसके मुताबिक चूंकि व्यक्ति समुदाय का सदस्य होता है इसलिए उसकी संपत्ति समुदाय की संपत्ति के दायरे में आती है।
ताजा विवाद क्या है सुप्रीम कोर्ट के सामने आया ताजा मामला महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डिवेलपमेंट एक्ट (म्हाडा) में 1986 में हुए एक संशोधन से जुड़ा है। यह संशोधन राज्य सरकार को जीर्ण-शीर्ण इमारतों और उसकी जमीन को अधिग्रहित करने का अधिकार देता है बशर्ते उसके 70% मालिक ऐसा अनुरोध करें। इस संशोधन को प्रॉपर्टी ओनर्स असोसिएशन की ओर से अदालत में चुनौती दी गई है। अलग-अलग नजरिएअसल में नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत आने वाले अनुच्छेद 39 बी के संबंधित प्रावधानों को अलग-अलग नजरिए से देखा जाता रहा है।
जस्टिस अय्यर के बहुचर्चित अल्पमत फैसले में इस मामले को समाजवादी नजरिए से देखा गया। इसे पूंजीवादी नजरिए से भी देखा जा सकता है, जिसके मुताबिक निजी संपत्ति में राज्य के किसी तरह के दखल से परहेज किया जाता है। लेकिन बुधवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने स्पष्ट कर दिया कि दोनों में से कोई भी नजरिया इस मामले में संपूर्ण नहीं माना जा सकता। महात्मा गांधी की दृष्टिजस्टिस चंद्रचूड़ के मुताबिक भारत के संदर्भ में संपत्ति को देखने का महात्मा गांधी का दृष्टिकोण सबसे प्रासंगिक है, जिसमें ट्रस्ट की अवधारणा है।
इस अवधारणा में न केवल निजी संपत्ति की और उसे परिवार के सदस्यों को हस्तांतरित करने की गुंजाइश है बल्कि समुदाय के सर्वोच्च हितों के अनुरूप उसके सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल की संभावना भी है। दूर हो अस्पष्टतादेखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई आखिरकार किस निष्कर्ष पर पहुंचती है। लेकिन कोर्ट में चल रही बहस के मौजूदा स्वरूप को देखते हुए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि जहां यह फैसला इस मसले से जुड़ी तमाम अस्पष्टताएं दूर करेगा, वहीं संपत्ति पर नई भारतीय और संवैधानिक दृष्टि विकसित करने में भी मददगार होगा।

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