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Interview: अलाया एफ बोलीं- हम लड़कियों के लिए चुनौतियां ही चुनौतियां हैं, कोई भाव ही नहीं देता

भूमिकाओं के मामले में अलाया एफ ने अपनी पहली ही फिल्म से अलग रास्ता अख्तियार किया। 'जवानी जानेमन' से शुरुआत करने वालीं अलाया एफ 'फ्रेडी', 'ऑलमोस्ट प्यार विद डीजे मोहब्बत' और 'बड़े मियां छोटे मियां' जैसी फिल्मों के बाद वह अब फिल्म 'श्रीकांत' को लेकर चर्चा में हैं। दृष्टिबाधित भारतीय बिजनेसमैन श्रीकांत बोला की जिंदगी पर बनी इस फिल्म में राजकुमार राव लीड रोल में हैं।
फिल्म में अलाया एफ का भी अहम होल है। अलाया एफ इसमें राजकुमार राव की हीरोइन बनी हैं। हाल ही उन्होंने हमसे खास बातचीत में 'श्रीकांत' से लेकर अपने करियर और महिलाओं के लिए चुनौतियों व अन्य चीजों के बारे में खुलकर बात की। फिल्में हों या असल जिंदगी, आप एक आत्मनिर्भर और मजबूत लड़की का प्रतिनिधत्व करती हैं, मगर आपको लड़कियों को लेकर सबसे ज्यादा कौन-सी बात चुनौतीपूर्ण लगती है? -मैं क्या कहूं? हम लड़कियों को लेकर तो बस चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। आपने कभी यह बात नोटिस की है कि आपके फोन पर जब भी किसी कंपनी से मेसेज आता है, तो उस पर लिखा होता है, डियर सर, हर चीज डियर सर से शुरू होती है। डियर मैडम से नहीं। मुझे याद है एक बार मैं एयर कंडीशनर खरीदने गई थी और मोरल सपोर्ट के लिए अपने भाई को साथ ले गई थी। उस शॉप पर जो सेल्स पर्सन था, वो लगातार मेरे भाई को देखकर बात कर रहा था। वो मेरे भाई से पूछ रहा था कि मुझे कितने टन का ऐसी चाहिए? मैं उसके तमाम सवालों का जवाब दे रही थी, मगर वो बंदा मेरी तरफ देख ही नहीं रहा था। उसे लग रहा था कि तमाम फैसले करने वाले मर्द होते हैं, तो वो तो मुझे भाव दे ही नहीं रहा था, मगर फिर मेरे भाई ने उससे कहा, सर पैसे ये देने वाली हैं, इनसे बात कीजिए, इनसे पूछिए। मैं भी उस वक्त चिढ़ गई थी। ऐसी छोटी-छोटी जो चीजें होती है, उससे मुझे बहुत बुरा लगता है। लोगों को लगता है मर्द फैसले ले सकते हैं, औरतें नहीं। आप जब एक रेस्टॉरेंट के अंदर भी आते हैं, तो पहले, 'गुड आफ्टरनून सर' कह कर मर्द का अभिवादन क्या जाता है। जैसे मैम यानी हम तो हैं ही नहीं।
आपके करियर में आप सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम किसे मानती हैं? -देखिए, परिवार और दोस्त तो हैं ही, मगर ये लोग जीवन में सपोर्ट सिस्टम हैं। यदि मैं करियर की बात करू, तो मेरा सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम मेरी टीम है। मेरी पूरी टीम शुरू से ही मेरे साथ रही है। इंडस्ट्री में एरा जो सफर रहा है, उसमें हमने साथ-साथ सारे फैसले लिए। हमने सारे उतार-चढ़ाव साथ देखे। उनके साथ वाला इक्वेशन मेरे लिए बहुत अहमियत रखता है। आप इतनी यंग हैं और चर्चित भी, प्यार-रोमांस के फ्रंट पर क्या हो रहा है? -ईमानदारी से कहूं, तो अगर आपकी नजर में कोई योग्य लड़का हो, तो मुझे बताइए, क्योंकि सारे अच्छे लड़के पता नहीं कहां चले गए हैं? मैं मानती हूं कि लड़को को लेकर मेरी अपेक्षाएं भी काफी ऊंचीं हैं। मैं बहुत स्ट्रॉन्ग हूं, रिलेशनशिप को लेकर सिक्योर हूं। मैं रिलेशनशिप में इनसिक्योरिटी या जेलेसी नहीं रखती। सामने वाले को टेंशन नहीं देती। मैं ज्यादा डिमांडिंग नहीं हूं, तो एक तरह से अच्छी गर्लफ्रेंड मटीरियल हूं, तो मुझे टाइमपास वाले रिलेशन में नहीं रहना। मैं दिल टूटने वाले दौर से भी गुजरी हूं और इस तरह के एक्सपीरियंस से बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है।
आप रिलेशनशिप में ग्रीन फ्लैग (रिलेशनशिप में सकारात्मक संकेत) और रेड फ्लैग (रिलेशनशिप में नकारात्मक संकेत) के बारे में क्या सोचती हैं?-मैं समझती हूं कि ये थोड़े-बहुत जरूरी हैं, क्योंकि इनसे आपको सिग्नल मिलते हैं कि सामने वाला कितना अच्छा या बुरा हो सकता है। मगर मुझे लगता है कि एक रिश्ते में सबसे ज्यादा जरूरी है रिस्पैक्ट। मेरे लिए प्यार से बढकर इज्जत है, क्योंकि आप अगर एक-दूसरे की पसंद-नापसंद या फैसलों को रिस्पैक्ट नहीं कर सकते, तो आप पूरी तरह से प्यार कभी नहीं कर पाएंगे। मेरी जिंदगी में भी कई बार ग्रीन फ्लैग और रेड फ्लैग की स्थिति आयी है, मगर मैंने आपसी सम्मान को सबसे ज्यादा महत्व दिया है। यंग एक्ट्रेस होने के बावजूद आप हमेशा अलग राह के रोल चुनती हैं। 'श्रीकांत' में आपके लिए क्या खास था? -एक एक्ट्रेस के रूप में अलग-अलग भूमिकाएं करने में ही मजा है। 'श्रीकांत' के दौरान जब मैं तुषार सर (फिल्म के निर्देशक तुषार हीरानंदानी) से मिली थी, तब उन्होंने मुझे श्रीकांत की जिंदगी की कहानी सुनाई थी और जब मैंने ये कहानी सुनी, तो मैं बहुत प्रभावित हुई। मैंने उनसे कहा कि मैं श्रीकांत की इस बायोपिक में स्वाति का रोल करना चाहूंगी। हालांकि मुझे इस रोल में कुछ खास करना नहीं था। वह श्रीकांत की सपोर्ट सिस्टम है। वह श्रीकांत के लिए मोरल कंपास (उसकी नैतिकता) है। उसे सही-गलत का पैमाना बताती रहती है।
श्रीकांत नेत्रहीन किरदार है, आप असल जिंदगी में कभी इस तरह के दिव्यांग से मिली हैं?-जी बिलकुल। जब मैं ग्यारहवीं क्लास में थी, तब मैं एनएबी (नैशनल असोसिएशन फॉर द ब्लाइंड) से जुड़ी थी। मैं सेमी विजुअली इंपेयर्ड लोग, जिन्हें थोड़ा-बहुत दिखता है, से मिली थी। मैं उन्हें आर्ट्स और क्राफ्ट्स सिखाया करती थी। मुझे उनके साथ रहने का मौका मिला था। मेरी मम्मी (पूजा बेदी) और नाना (कबीर बेदी) इस समुदाय के कॉजे भी जुड़े रहे, तो मुझे इनके साथ काफी करीब से संपर्क में आने का मौका मिला। इस फिल्म की खासियत यही है कि इसमें बताया गया है कि इन्हें बेचारा मत समझो। 'श्रीकांत' की कहानी यही है कि नेत्रहीन होने के बावजूद उन्होंने छोटी-सी उम्र में डेढ़ सौ करोड़ की कंपनी शुरू की। जब मैं असली श्रीकांत से मिली, तो वह काफी हंसमुख और मजाकिया साबित हुए। वह काफी स्मार्ट हैं। उनको सबके बारे में सब कुछ पता होता है। वह हम सबसे ज्यादा समर्थ हैं। आप तब्बू, सैफ अली खान, कार्तिक आर्यन जैसे कलाकारों के साथ काम कर चुकी हैं, राजकुमार राव आपके लिए किस तरह से अलग साबित हुए? -राज इतने प्रतिभावान और स्थापित कलाकार हैं, इसके बावजूद वे सेट पर पूरी तैयारी के साथ आते हैं। वह बेहद गिविंग एक्टर हैं। वह अपने साथी कलाकार के प्रति काफी सहयोगी रहते हैं। राज जैसे ही आंखों में लेंस पहनते वह एकदम श्रीकांत बन जाते थे। मैं जब पहली बार सेट पर आई और मैंने राज को श्रीकांत के रूप में देखा, तो मैं बहुत हैरान हो गई थी, क्योंकि मैं तब तक असली श्री से मिल चुकी थी। राज ने श्रीकांत के हर मैनरिज्म को बहुत खूबसूरती से अपनाया है। 'बड़े मियां छोटे मियां 2' को लेकर काफी अपेक्षाएं थी, मगर फिल्म को उम्मीद के अनुसार कामयाबी नहीं मिली? -इसके कारण तो मैं नहीं जानती और मुझे जानना भी नहीं है। एक एक्ट्रेस के रूप में यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं सेट पर पूरी तैयारी के साथ आऊं, मैं अपने डायलॉग याद रखूं, अपने निर्देशक के विजन पर खरी साबित होऊं, दिल से अभिनय करूं और समय की पाबंद रहूं। जब तक मैं यह सब कर रही हूं, तब तक मैं खुश हूं। कोई नहीं जानता कि कौन-सी फिल्म चलेगी और कौन-सी नहीं। फिर भी 'बड़े मियां छोटे मियां' से मुझे काफी विजिब्लिटी मिली। मैं ज्यादा दर्शकों तक पहुंची। मुझे एक नया दर्शक वर्ग मिला, तो मेरे लिए तो ये कमाल का अनुभव रहा है। हां, ये सच है कि फिल्म ने पैसे कमाए, मगर जितनी उम्मीद थी, उतने नहीं कमा पाई। मेरे लिए ये पूरा अनुभव अच्छा था। मैं तो खुश हूं।

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