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न विजय जुलूस और न धूमधाम...जीतने के बाद भी ग्वालियर से माधवराव सिंधिया का मोह भंग क्यों हुआ? आखिरी बार 'राजकुमारी' को मिली थी जीत

ग्वालियर: ग्वालियर लोकसभा सीट हमेशा से ही चुनाव की दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है। यह भी कहा जाता है कि ग्वालियर की लोकसभा सीट ऐसी लोकसभा सीट है, जहां से जब भी कोई कम अंतर से चुनाव जीतता है, तो वह इस सीट को ही छोड़ देता है। ऐसा ही कुछ हुआ था 1998 में, जब माधवराव सिंधिया लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद भी ग्वालियर सीट से दूरी बनाते गए और आखिरकार 2004 में गुना से चुनाव लड़े।
इस किस्से का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि माधवराव सिंधिया ने एक अच्छा राजनीतिक जीवन व्यतीत किया। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन में लगातार कई चुनाव भी जीते थे, लेकिन इस दौरान एक दौर ऐसा भी आया, जब माधव राव सिंधिया को भी थोड़ी चिंता करनी पड़ी। हमेशा बड़े अंतर से ही जीते दोनों ही स्थितियों में उन्होंने एक बड़ी बढ़त बनाई थी फिर चाहे वह चुनाव अटल बिहारी वाजपेई के सामने लड़ा गया हो या फिर कांग्रेस से छोड़कर निर्दलीय लड़ा गया हो। दोनों ही सूरत में माधवराव सिंधिया एक बड़े अंतर से चुनाव जीते थे लेकिन जब 1998 में माधव राव सिंधिया ने लोकसभा का चुनाव लड़ा तो उनके सामने भाजपा ने जयभान सिंह पवैया को उतारा था, लेकिन इस दौरान मुकाबला देखने लायक था।
इस चुनाव में माधवराव सिंधिया को पवैया ने खासा परेशान कर दिया था। जिस प्रकार के काम उन्होंने ग्वालियर की जनता के लिए किए थे और जितनी उम्मीद उन्हें ग्वालियर के वोटरों से थी, वह खरी नहीं उतरी। जिस तरह से उन्होंने चुनाव जीता उससे वह बहुत हताश हुए। हालांकि जीत का अंतर उस समय भी लगभग 26000 से ज्यादा मतों का था, लेकिन फिर भी यह मार्जिन उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाया और फिर धीरे-धीरे उन्होंने ग्वालियर की लोकसभा सीट से दूरी बनाना शुरू कर दी और वापस अपनी विरासती लोकसभा सीट कही जाने वाली गुना शिवपुरी लोकसभा सेट की ओर रुख कर दिया।
राजकुमारी यशोधरा को मिली थी जीतमध्य प्रदेश सरकार में खेल मंत्री रह चुकीं यशोधरा राजे सिंधिया ग्वालियर लोकसभा सीट से 2009 में आखिरी बार जीती थीं। उनके बाद सिंधिया परिवार का कोई सदस्य यहां चुनाव नहीं लड़ा।

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