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नासा ने 24 अरब किलोमीटर दूर वॉयजर 1 यान को कैसे किया जिंदा? 47 साल पुराना कम्प्यूटर ठीक कर किया कमाल

वाशिंगटन: अमेरिका के दक्षिणी कैलिफोर्निया स्थित नासा के एक केंद्र में इसी 20 अप्रैल को वैज्ञानिकों की टीम जुटी हुई थी। हर किसी की नजर कम्यूटर स्क्रीन पर थी। कमांड सेंटर में बिलकुल सन्नाटा छाया हुआ था। तभी कम्यूटर स्क्रीन पर एक संदेश उभरा, जिसके बाद हर किसी के चेहरे खुशी से खिल उठे। एक दूसरे को बधाइयां दी जाने लगीं। ये संदेश धरती से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्पेक्राफ्ट वॉयजर 1 से आया था।
5 महीने पहले इस स्पेसक्राफ्ट के कम्यूटर में गड़बड़ी के बाद इससे संपर्क टूट गया था लेकिन नासा के इंजीनियरों की उम्मीद नहीं टूटी थी। नासा की टीम ने धरती पर बैठकर 24 अरब किलोमीटर दूर मौजूद वॉयजर-1 की कम्प्यूटर समस्या को ठीक करने का कमाल कर दिखाया। खास बात ये है कि नासा की टीम ने वॉयजर के जिस कम्यूटर को इतनी दूरी से बैठकर ठीक किया, वो 1970 के दशक का बना हुआ है। नासा टीम के प्रयासों के चलते अंतरिक्ष में अंतहीन सफर पर चल रहे वॉयजर 1 ने 5 महीने बाद धरती पर पहला संदेश भेजा, जिसे पढ़ा जा सका है। रेडियो सिग्नल को पहुंचने में लगते हैं दो दिन
लगभग 47 साल पहले लॉन्च किया गया वॉयजर 1 अंतरिक्ष में धरती से भेजा गया सबसे दूर मौजूद स्पेसक्राफ्ट है। नासा की वेबसाइट के अनुसार, यह वर्तमान में पृथ्वी से 24 अरब किलोमीटर की दूरी पर है और धीरे-धीरे सौरमंडल से दूर जा रहा है। रेडियो सिग्नल को प्रकाश की गति से इस दूरी को तय करने में 22.5 घंटे लगते हैं। इसका मतलब है कि इंजीनियरों को किसी कमांड को वॉयजर 1 तक पहुंचाने और प्रतिक्रिया हासिल करने में लगभग दो दिन लगते हैं। वॉयजर 1 अंतरिक्ष में 61,100 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से सफर कर रहा है, यानी यह हमेशा लोकेशन बदल रहा है। नवम्बर में अचानक मिलने लगे थे गलत संदेश
बीते साल नवम्बर में वॉयजर 1 के व्यहार में वैज्ञानिकों ने परिवर्तन पाया। स्पेसक्रॉफ्ट सामान्य तरीके से डेटा नहीं भेज रहा था। डेटा में बार-बार एक ही पैटर्न दोहराया जा रहा था, जो समझ के बाहर था। वैज्ञानिक डेटा को पढ़ नहीं पा रहे थे, इसलिए ग्राउंड टीम यह पता लगाने में असमर्थ थी कि असल में गड़बड़ कहां हुई है। वायजर 1 से आखिरी पर सही डेटा 14 नवम्बर को मिला था। इसके बाद टीम लगातार समस्या को समझने की कोशिश में लगी रही और पहली बार मार्च में इस बारे में उम्मीद दिखाई दी। वैज्ञानिकों ने वॉयजर के तीन ऑनबोर्ड कम्यूटर सिस्टम में से एक में गड़बड़ी का पता लगा लिया। ये कम्यूटर वॉयजर के फ्लाइट डेटा सबसिस्टम (FDS) का हिस्सा हैं। एफडीएस स्पेसक्रॉफ्ट द्वारा जुटाए गए विज्ञान और इंजीनियरिंग से जुड़े डेटा को पृथ्वी पर भेजने से पहले पैकेज करता है। दक्षिणी कैलिफोर्निया स्थित नासा की जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी की टीम ने पाया कि डेटा को इकठ्ठा करने वाली मेमोरी चिप खराब हो गई थी। इसी चिप में एफडीएस कम्यूटर का सॉफ्टवेयर कोड भी था। सॉफ्टवेयर कोड को किया गया ट्रांसफरवैज्ञानिकों ने पाया कि जमीन से इस दूरी पर चिप को ठीक करना संभव नहीं था, जिसके बाद दूसरे विकल्पों पर काम शुरू हुआ। एक तरीका था कि सॉफ्टवेयर कोड को एफडीएस के मेमोरी सिस्टम से अलग कहीं और रख दिया जाए, लेकिन यहां भी एक समस्या थी। कोड काफी बड़ा था और कहीं भी इतना स्पेस नहीं था कि इसे एक साथ रखा जा सके। इसके बाद इंजीनियरों की टीम ने कोड को कई हिस्सों में बांटा और इसे फ्लाइट डेटा सबसिस्टम में अलग-अलग जगहों पर रख दिया। इसके साथ ही उन्हें इस तरह व्यवस्थित किया गया कि वे एक साथ काम कर सकें। आखिरकार 18 अप्रैल को वॉयजर 1 ने एक रेडियो सिग्नल पृथ्वी पर भेजा जिसे नासा की ग्राउंड टीम ने 20 अप्रैल को रिसीव किया।

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