प्रो. रामजीलाल जांगिड़: जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता को दी नई पहचान, विनम्र श्रद्धांजलि
पत्रकारिता और अकादमिक जगत के इतिहास में कुछ नाम ऐसे दर्ज होते हैं, जिनकी उपस्थिति किसी संस्था या विचारधारा के निर्माण की नींव में गहराई तक महसूस की जाती है। प्रो. रामजीलाल जांगिड़ ऐसा ही एक नाम है, जिन्होंने न केवल अपने समय में पत्रकारिता की दिशा को संवारा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया। वे भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के हिंदी विभाग के पहले अध्यक्ष थे और हिंदी पत्रकारिता शिक्षा की व्यवस्थित शुरुआत कराने में उनका योगदान अमिट है। कल यानी 9 अगस्त, 2025 को प्रो. जांगिड़ ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
7 नवंबर 1939 को जन्मे रामजीलाल का जन्म ऐसे समय में हुआ जब भारत में स्वतंत्रता की चेतना गहराई तक पहुंच चुकी थी और सामाजिक परिवर्तन की हवाएं बह रही थीं। बचपन से ही भाषा में उनकी गहरी रुचि थी। हिंदी के साथ-साथ अन्य भाषाओं का भी गंभीर अध्ययन किया। यह बहुभाषी ज्ञान उनकी पत्रकारिता और अध्यापन शैली में साफ झलकता था। उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने अकादमिक जीवन में कदम रखा । भाषा और पत्रकारिता के मेल को लेकर अपने विचारों को आकार देना शुरू किया। यह वह समय था जब हिंदी पत्रकारिता को संस्थागत स्वरूप देने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी।
पत्रकारिता से अकादमिक जगत तक का सफर
प्रो. जांगिड़ ने मीडिया जगत में लंबे समय तक सक्रिय रूप से काम किया। उन्होंने अख़बारों, पत्रिकाओं और इलैक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से खबरों और विचारों को जनता तक पहुंचाया। पत्रकार के रूप में उनकी लेखनी सटीक, गहरी और तथ्यपरक थी। वे जानते थे कि समाचार केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि समाज के विचारों को आकार देने का औजार भी है। पत्रकारिता के व्यावहारिक अनुभव ने उन्हें यह समझ दी कि भावी पत्रकारों को केवल भाषा या लेखन का कौशल ही नहीं, बल्कि समाचार की संवेदनशीलता, निष्पक्षता और सामाजिक दृष्टिकोण का भी प्रशिक्षण मिलना चाहिए। इसी सोच ने उन्हें अकादमिक जगत में लाकर खड़ा किया।
भारतीय जनसंचार संस्थान में योगदान
भारतीय जनसंचार संस्थान में हिंदी पत्रकारिता की पढ़ाई की शुरुआत में उनकी भूमिका ऐतिहासिक मानी जाती है। जब उन्हें हिंदी विभाग का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया, तो उनके सामने यह चुनौती थी कि कैसे एक ऐसी शिक्षा प्रणाली तैयार की जाए जो हिंदी पत्रकारिता को वैश्विक मानकों के अनुरूप और भारतीय संदर्भों में प्रासंगिक बना सके। उन्होंने पाठ्यक्रम को इस तरह तैयार किया जिसमें भाषा की मजबूती के साथ-साथ समाचार लेखन, संपादन, रेडियो और टीवी पत्रकारिता, जनसंपर्क, और डिजिटल मीडिया के शुरुआती स्वरूप की समझ भी शामिल थी। उनके प्रयासों से IIMC से निकले पत्रकार न केवल देश के प्रमुख मीडिया संस्थानों में पहुंचे, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी पहचान बनाने में सफल हुए।

पत्रकारों की नई पौध तैयार करना
प्रो. जांगिड़ को यह भलीभांति मालूम था कि पत्रकारिता में केवल तकनीकी दक्षता पर्याप्त नहीं है; पत्रकार को सामाजिक सरोकार, नैतिकता और संवेदनशीलता से भी लैस होना चाहिए। उन्होंने अपने छात्रों को हमेशा सिखाया कि खबर लिखते समय भाषा की सादगी, तथ्यों की शुद्धता और मानवीय दृष्टिकोण सर्वोपरि होना चाहिए। उनकी कक्षाएं केवल पढ़ाई का माध्यम नहीं थीं, बल्कि एक ऐसा मंच थीं जहां विचारों की खुली बहस होती, जहां छात्रों को अपनी राय रखने और तर्कों से उसे साबित करने का अवसर मिलता। उन्होंने पत्रकारिता के विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, आलोचनात्मक दृष्टि और जिम्मेदारी का भाव पैदा किया।
बहुभाषी विद्वान
प्रो. जांगिड़ का भाषाई ज्ञान अद्वितीय था। वे कई भाषाओं में दक्ष थे। इस बहुभाषी क्षमता ने उन्हें पत्रकारिता के विभिन्न स्वरूपों और क्षेत्रों की गहरी समझ दी। वे मानते थे कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि विचारों और संस्कृति का वाहक है। इसलिए उन्होंने अपने छात्रों को प्रोत्साहित किया कि वे अन्य भाषाओं की बुनियादी समझ विकसित करें, ताकि वे विविध समाज और संस्कृतियों को गहराई से समझ सकें।
मीडिया में अनुभव और दृष्टिकोण- मीडिया में काम करने का उनका अनुभव गहन और बहुआयामी था। उन्होंने अख़बार, इलैक्ट्रोनिक मीडिया में काम करते हुए यह महसूस किया कि पत्रकारिता में निरंतर बदलाव हो रहा है और इन परिवर्तनों के साथ पत्रकारों को भी स्वयं को अपडेट रखना चाहिए। उनकी दृष्टि में पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी है।
छात्रों और सहकर्मियों के लिए प्रेरणा- प्रो. जांगिड़ न केवल एक शिक्षक और पत्रकार थे, बल्कि एक मार्गदर्शक, प्रेरक और सच्चे गुरु भी थे। उनके व्यक्तित्व में अनुशासन, सरलता और विद्वता का अद्भुत मेल था। छात्रों के साथ उनका रिश्ता औपचारिकता से परे था—वे उनके मित्र, सलाहकार और प्रेरणास्रोत थे। सहकर्मी उनके गहरे ज्ञान, कार्य के प्रति निष्ठा और सहृदय व्यवहार की हमेशा सराहना करते थे। उन्होंने संस्थान में संवाद, सहयोग और टीम भावना का माहौल बनाया, जिससे काम करने का वातावरण समृद्ध और रचनात्मक बना रहा।
आज जब हम प्रो. रामजीलाल जांगिड़ को याद करते हैं, तो यह महसूस होता है कि उन्होंने केवल पत्रकारिता सिखाई नहीं, बल्कि पत्रकारिता का एक मूल्य-आधारित ढांचा तैयार किया। उनकी दी हुई शिक्षा और सोच आज भी IIMC और उससे निकले पत्रकारों के काम में दिखाई देती है। उनके योगदान को शब्दों में बांधना कठिन है, लेकिन इतना निश्चित है कि उन्होंने पत्रकारिता को पेशा नहीं, बल्कि एक मिशन माना। उनकी स्मृति आने वाले समय में भी पत्रकारों, शिक्षकों और छात्रों के लिए मार्गदर्शक बनी रहेगी।
प्रो. रामजीलाल जांगिड़ का जीवन इस बात का प्रमाण है कि एक व्यक्ति, अपने ज्ञान, दृष्टि और समर्पण से न केवल एक संस्था, बल्कि पूरे पेशे की दिशा बदल सकता है। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को न केवल नया पाठ्यक्रम और संरचना दी, बल्कि उसे आत्मा भी दी—एक ऐसी आत्मा जो सच, संवेदनशीलता और समाज के प्रति जिम्मेदारी से भरी है। उनकी अनुपस्थिति पत्रकारिता और अकादमिक जगत के लिए अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनका काम, विचार और शिक्षा हमेशा जीवित रहेंगे। वे केवल एक शिक्षक या पत्रकार नहीं थे—वे हिंदी पत्रकारिता के एक युग थे, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देते रहेंगे।