क्या टेडिशनल इक्विटी इन्वेस्टमेंट से बेहतर रिटर्न दे सकते हैं मल्टी-एसेट फंड? जानें क्या कहती है फ्रैंकलिन टेम्पलटन की स्टडी
अगर आप निवेश में स्थिरता और अच्छा रिटर्न चाहते हैं, तो सिर्फ इक्विटी पर दांव लगाना जरूरी नहीं. फ्रैंकलिन टेम्पलटन की एक स्टडी के मुताबिक, पिछले 10 सालों में अगर किसी ने 50% इक्विटी, 25% डेट और 25% गोल्ड में निवेश किया होता, तो उसे न सिर्फ अच्छा रिटर्न मिलता, बल्कि जोखिम भी काफी कम होता.
2016 से 2025 के बीच Nifty 500 TRI इंडेक्स ने औसतन 14.8% सालाना रिटर्न दिया. जबकि गोल्ड से 14.7% और डेट से 7.38% रिटर्न मिला. वहीं, अगर इन तीनों को 50:25:25 के अनुपात में मिलाकर मल्टी-एसेट पोर्टफोलियो तैयार किया जाता, तो निवेशकों को 13.6% का औसतन सालाना रिटर्न मिला होता- वो भी कम वोलैटिलिटी के साथ.
लंबे समय में इक्विटी जैसा रिटर्न दे सकते हैं मल्टी-एसेट फंड्स
फ्रैंकलिन टेम्पलटन इंडिया में वीपी और पोर्टफोलियो मैनेजर राजसा के.ने कहा कि 'लंबे समय के निवेश में मल्टी-एसेट फंड्स इक्विटी जैसा रिटर्न दे सकते हैं, वो भी ज्यादा स्थिरता और कम उतार-चढ़ाव के साथ.' एक्सपर्ट का मानना है कि जिन निवेशकों को मार्केट की अनिश्चितता से डर लगता है उनके लिए मल्टी-एसेट फंड्स एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है.
मल्टी-एसेट फंड्स क्या होते हैं?
मल्टी-एसेट फंड्स ऐसे म्यूचुअल फंड होते हैं, जो एक साथ तीन अलग-अलग जगहों पर पैसा लगाते हैं -शेयर, डेब्ट (जैसे सरकारी बॉन्ड, फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स), गोल्ड और सिल्वर जैसी कमोडिटीज. इसका फायदा ये है कि अगर किसी एक एसेट क्लास में नुकसान हो जाए, तो बाकी दो से उसकी भरपाई हो सकती है.
जब शेयर महंगे हों, तब मल्टी-एसेट ज्यादा फायदे का सौदा
अभी के समय में शेयर बाजार की वैल्यूएशन यानी कीमतें ज्यादा चल रही हैं. ऐसे में अगर आपने सारा पैसा सिर्फ शेयरों में लगाया है, तो भविष्य में रिटर्न कमजोर हो सकता है. इसलिए एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि शेयरों के साथ-साथ गोल्ड और डेब्ट में भी पैसा लगाना समझदारी है.
टैक्स में भी फायदा
अगर आप अलग-अलग जगह खुद निवेश करते हैं (जैसे शेयर, गोल्ड ETF और बॉन्ड्स), तो हर बार जब आप रीबैलेंस करेंगे, टैक्स देना पड़ेगा. लेकिन मल्टी-एसेट फंड में ये काम फंड मैनेजर करते हैं और टैक्स का असर कम पड़ता है. इसलिए ये अमीर निवेशकों के बीच भी पसंदीदा बन रहे हैं.
निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी
पिछले एक साल में मल्टी-एसेट फंड्स में निवेश 51% बढ़ा है. जून 2024 में इस फंड कैटेगरी में ₹86,000 करोड़ था, जो जून 2025 तक ₹1.3 लाख करोड़ हो गया. इसका मतलब है कि अब ज्यादा लोग इस ऑप्शन की ओर अट्रैक्ट हो रहे हैं.
2016 से 2025 के बीच Nifty 500 TRI इंडेक्स ने औसतन 14.8% सालाना रिटर्न दिया. जबकि गोल्ड से 14.7% और डेट से 7.38% रिटर्न मिला. वहीं, अगर इन तीनों को 50:25:25 के अनुपात में मिलाकर मल्टी-एसेट पोर्टफोलियो तैयार किया जाता, तो निवेशकों को 13.6% का औसतन सालाना रिटर्न मिला होता- वो भी कम वोलैटिलिटी के साथ.
लंबे समय में इक्विटी जैसा रिटर्न दे सकते हैं मल्टी-एसेट फंड्स
फ्रैंकलिन टेम्पलटन इंडिया में वीपी और पोर्टफोलियो मैनेजर राजसा के.ने कहा कि 'लंबे समय के निवेश में मल्टी-एसेट फंड्स इक्विटी जैसा रिटर्न दे सकते हैं, वो भी ज्यादा स्थिरता और कम उतार-चढ़ाव के साथ.' एक्सपर्ट का मानना है कि जिन निवेशकों को मार्केट की अनिश्चितता से डर लगता है उनके लिए मल्टी-एसेट फंड्स एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है.
मल्टी-एसेट फंड्स क्या होते हैं?
मल्टी-एसेट फंड्स ऐसे म्यूचुअल फंड होते हैं, जो एक साथ तीन अलग-अलग जगहों पर पैसा लगाते हैं -शेयर, डेब्ट (जैसे सरकारी बॉन्ड, फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स), गोल्ड और सिल्वर जैसी कमोडिटीज. इसका फायदा ये है कि अगर किसी एक एसेट क्लास में नुकसान हो जाए, तो बाकी दो से उसकी भरपाई हो सकती है.
जब शेयर महंगे हों, तब मल्टी-एसेट ज्यादा फायदे का सौदा
अभी के समय में शेयर बाजार की वैल्यूएशन यानी कीमतें ज्यादा चल रही हैं. ऐसे में अगर आपने सारा पैसा सिर्फ शेयरों में लगाया है, तो भविष्य में रिटर्न कमजोर हो सकता है. इसलिए एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि शेयरों के साथ-साथ गोल्ड और डेब्ट में भी पैसा लगाना समझदारी है.
टैक्स में भी फायदा
अगर आप अलग-अलग जगह खुद निवेश करते हैं (जैसे शेयर, गोल्ड ETF और बॉन्ड्स), तो हर बार जब आप रीबैलेंस करेंगे, टैक्स देना पड़ेगा. लेकिन मल्टी-एसेट फंड में ये काम फंड मैनेजर करते हैं और टैक्स का असर कम पड़ता है. इसलिए ये अमीर निवेशकों के बीच भी पसंदीदा बन रहे हैं.
निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी
पिछले एक साल में मल्टी-एसेट फंड्स में निवेश 51% बढ़ा है. जून 2024 में इस फंड कैटेगरी में ₹86,000 करोड़ था, जो जून 2025 तक ₹1.3 लाख करोड़ हो गया. इसका मतलब है कि अब ज्यादा लोग इस ऑप्शन की ओर अट्रैक्ट हो रहे हैं.
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