Ahmedabad Plane Crash: जले शवों की पहचान करने में डॉक्टरों के छूटे पसीने! क्यों हो रहा है इतना मुश्किल? अब सिर्फ ये तरीका कर सकता है मदद..

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Ahmedabad Plane Crash: 12 जून गुरुवार को गुजरात के अहमदाबाद में हुए भीषण विमान हादसे ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। अहमदाबाद से लंदन जा रहा एयर इंडिया का विमान AI-171 दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस विमान में 242 लोग सवार थे, जिनमें से 241 की मौत हो गई। 1 व्यक्ति बच गया। विमान में 230 यात्री और 12 चालक दल के सदस्य सवार थे। मृतकों में भारत, ब्रिटेन और कनाडा के यात्री शामिल हैं। हादसा इतना भीषण था कि कई शवों की पहचान करना मुश्किल हो रहा है। इसकी वजह यह है कि कई शव बुरी तरह जल गए हैं। उनकी पहचान नहीं हो पा रही है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जले हुए शवों की पहचान करना क्यों मुश्किल हो रहा है?

जब किसी बड़े हादसे या आग में कई लोगों की मौत हो जाती है और उनके शव बुरी तरह जल जाते हैं, तो सबसे बड़ी चुनौती उनकी पहचान करना होता है। इस विमान हादसे में भी कई मृतकों के शव बुरी तरह जल गए हैं। उनकी पहचान करना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में केंद्रीय मंत्री के ऐलान के बाद लोगों का डीएनए टेस्ट कराया जाएगा। क्लीवलैंड क्लिनिक के अनुसार, ऐसी घटना के बाद शवों की पहचान करना मुश्किल होता है। आमतौर पर शवों की पहचान चेहरे, कपड़े, गहने या शरीर के निशानों से की जाती है, लेकिन जब शव पूरी तरह जल जाता है, तो ये सभी तरीके बेकार हो जाते हैं। ऐसे में डीएनए जांच सबसे विश्वसनीय और सटीक तरीका बन जाता है।

जले हुए शवों की पहचान करना क्यों मुश्किल है?

TV 9 की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय (डीडीयू) अस्पताल में फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के डॉ. बीएन मिश्रा बताते हैं कि आग में जलने से शरीर के ऊतक, त्वचा, चेहरे के पहचानने योग्य अंग, उंगलियों के निशान और अन्य बाहरी पहचान नष्ट हो जाती है। कई बार शरीर इस हद तक जल जाता है कि हड्डियां तक टूटकर बिखर जाती हैं। ऐसे में शव की पहचान करना मुश्किल होता है। ऐसे में वैज्ञानिक और फोरेंसिक टीमें आगे आती हैं जो वैज्ञानिक तरीकों (डीएनए टेस्ट) के जरिए शवों की पहचान करती हैं।

डीएनए जांच कैसे मदद करती है?

डॉ. मिश्रा बताते हैं कि डीएनए या डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड हमारे शरीर की कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक प्रकार का कोड है। जो हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है। इस परीक्षण में शव से बचा हुआ कोई भी अंग (जैसे हड्डी, दांत, बाल की जड़ आदि) लेकर उसमें मौजूद डीएनए निकाला जाता है। फिर उसका मिलान परिजनों के डीएनए से किया जाता है। अगर डीएनए सैंपल मैच हो जाते हैं तो शव की पहचान करना आसान हो जाता है।

आग लगने के बाद भी डीएनए बच सकता है?

डॉ. मिश्रा बताते हैं कि आग में शरीर पूरी तरह जल सकता है, लेकिन ये अंग बच जाते हैं जिनसे डीएनए सैंपल लिए जाते हैं।

दांत- दांतों की परत सख्त होती है और ये उच्च तापमान में भी काफी हद तक सुरक्षित रह सकते हैं।

हड्डियां- खासकर लंबी और मोटी हड्डियों में अंदर की मज्जा (बोन मैरो) डीएनए को बचा सकती है।

कितनी देर में हो जाता डीएनए टेस्ट?

डॉ. मिश्रा बताते हैं कि डीएनए टेस्टिंग एक जटिल और संवेदनशील प्रक्रिया है। आमतौर पर सैंपल लेने में कुछ घंटे लगते हैं। जिसके बाद लैब में डीएनए निकालने, उसका विश्लेषण करने और तुलना करने में 3 से 10 दिन लग सकते हैं। कुछ मामलों में दो से तीन हफ्ते भी लग सकते हैं।