सप्ताह के हर दिन नॉनवेज खाने से क्यों किया जाता है मना? जानिए इसके पीछे छिपा साइंटिफिक और स्प्रिचुअल कारण

आपने अक्सर सुना होगा कि कुछ लोग हफ्ते के कुछ दिन नॉनवेज नहीं खाते। उनके घरों में मंगलवार, गुरुवार, शुक्रवार या शनिवार जैसे दिनों में मांस-मछली से परहेज़ किया जाता है। अधिकतर लोग इसे सिर्फ धार्मिक मान्यता से जोड़कर देखते हैं, लेकिन हकीकत में इसके पीछे साइंटिफिक और हेल्थ से जुड़े कारण भी छिपे हैं। पुराने जमाने की परंपराएं सिर्फ रीति-रिवाज नहीं थीं, बल्कि उनमें स्वास्थ्य और मानसिक शांति के गहरे संदेश भी छिपे होते थे। आइए जानते हैं कि क्यों दादी-नानी और बुजुर्ग हर दिन नॉनवेज खाने से रोकते थे।
माइंडफुल ईटिंग से जुड़ा है यह नियम
हफ्ते में कुछ दिन नॉनवेज से दूरी रखने का कारण स्प्रिचुअल के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य और खानपान की जागरूकता से भी जुड़ा हुआ है। माइंडफुल ईटिंग यानी सोच-समझकर खाना—इस आदत को बढ़ावा देने के लिए यह नियम उपयोगी माना जाता है। हर दिन मांस खाना शरीर पर असर डाल सकता है और मानसिक रूप से भारीपन महसूस कराया जा सकता है। इसी कारण पुराने समय में कहा जाता था कि ताजे अन्न का सेवन करें, जिससे शरीर हल्का रहे और मन शांत बना रहे।
डाइजेशन के लिए जरूरी है ब्रेक
मीट और नॉनवेज प्रोटीन में भरपूर होते हैं, लेकिन ये आसानी से पच नहीं पाते। लगातार नॉनवेज खाने से पाचन तंत्र पर दबाव बढ़ता है, जिससे एसिडिटी, अपच जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसी कारण सप्ताह में कुछ दिन मीट से दूरी बनाई जाती थी ताकि डाइजेस्टिव सिस्टम को ब्रेक मिल सके और शरीर भी डीटॉक्स हो सके।
खाने में डिसिप्लिन बनाए रखना
हर चीज में अनुशासन जरूरी होता है, और खानपान में भी यह बात लागू होती है। यदि आपके सामने आपकी पसंदीदा चीज हो और आप उसे संयम से न खाएं, तो यह एक तरह की मानसिक मजबूती और अनुशासन को दर्शाता है। इसी वजह से सप्ताह में कुछ दिन नॉनवेज ना खाने की परंपरा बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी में सेल्फ-डिसिप्लिन को बढ़ावा देती है।
संस्कृति और धार्मिक परंपराओं से जुड़ाव
हिंदू धर्म में हर महीने कई ऐसे पवित्र दिन आते हैं जैसे एकादशी, प्रदोष, और नवरात्रि, जब मांसाहार और तामसिक भोजन का त्याग करना शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। ऐसे दिन नॉनवेज से दूर रहना धार्मिक अनुशासन और संस्कृति का पालन करने का एक तरीका है। यह केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है कि हम अपनी संस्कृति को अपनाकर चलें।