कमजोर हो गए पाकिस्तान में चीन के तीनों पिलर, ड्रैगन के लिए किसी काम का नहीं रहा उसका 'सच्चा दोस्त'

Hero Image
नई दिल्ली: कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते बेहद नाजुक मोड़ पर आ गए हैं। दोनों देशों के बीच युद्ध की भी आशंका जताई जा रही है। वहीं पाकिस्तान और चीन की 'दोस्ती' के चर्चे भी किसी से छिपे नहीं रहे हैं। चीन पाकिस्तान को अपना 'सच्चा दोस्त' बताता रहा है। लेकिन पहलगाम हमले के बाद चीन के स्वर कुछ बदले-बदले नजर आ रहे हैं।पहलगाम हमले के बाद चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया है। चीन ने इस हमले की 'निष्पक्ष' जांच की बात कही है। साथ ही, पाकिस्तान की 'सुरक्षा चिंताओं' को भी सही बताया है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कुछ बातें कहीं हैं। इससे पता चलता है कि चीन इस मामले में सावधानी से काम ले रहा है। उन्होंने पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार से कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए लड़ाई में कोई फायदा नहीं है। उन्होंने दोनों देशों को संयम बरतने की सलाह दी। यूएन में बदले तेवरचीन और पाकिस्तान ने मिलकर यूएन सुरक्षा परिषद में पहलगाम हमले की निंदा को कमजोर करने की कोशिश की। साल 2019 में पुलवामा हमले के बाद UNSC ने भारत का खुलकर समर्थन किया था, लेकिन पहलगाम हमले के बाद UNSC के बयान में भारत की जांच का सीधा समर्थन नहीं किया गया। क्या पाकिस्तान का समर्थन करेगा चीन?अब सवाल यह है कि अगर भारत, पहलगाम हमले का बदला लेने के लिए सैन्य कार्रवाई करता है तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान का कितना साथ देंगे? क्या चीन का समर्थन सिर्फ बातों तक ही रहेगा या वह अपने 'सदाबहार' दोस्त की सीधी मदद करेगा? गहराई से देखने पर पता चलता है कि राष्ट्रपति शी की मदद करने की एक सीमा है। पाकिस्तान को चीन से बिना शर्त समर्थन नहीं मिल सकता है। कमजोर हो गए तीनों पिलरचीन के लिए पाकिस्तान का महत्व कम हुआ है। पाकिस्तान का महत्व तीन बातों पर निर्भर करता है। पहला- अफगानिस्तान तक पहुंच, दूसरा- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के जरिए बुनियादी ढांचा और तीसरा- भारत को सैन्य रूप से घेरना। ये तीनों चीजें कमजोर हो गई हैं। 1. अफगानिस्तान:
चीन ने अब सीधे अफगानिस्तान की सरकार से संबंध बना लिए हैं। उसे अब काबुल के लिए पाकिस्तान की जरूरत नहीं है। 2. CPEC: इसे कभी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता था। लेकिन अब चीन के नीति निर्माताओं को यह एक महंगा सौदा लगता है। ग्वादर बंदरगाह को दुबई का प्रतिद्वंद्वी बनाने की योजना थी, लेकिन यह अभी भी पिछड़ा हुआ है। वहां विद्रोह हो रहा है, स्थानीय लोग नाराज हैं और ठेकेदारों को पैसे नहीं मिले हैं। 3. सैन्य ताकत:
भारत को रोकने में पाकिस्तान की भूमिका अभी भी है। लेकिन एक अस्थिर देश के साथ जुड़ने की कीमत बढ़ रही है। पाकिस्तान में जिहादी संगठनों का प्रभाव बढ़ रहा है। चीन के लिए अब भारत ज्यादा जरूरीचीन के लिए अब पाकिस्तान नहीं, बल्कि भारत ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। इसका सबसे बड़ा कारण अमेरिका की ओर से लगाया गया भारी भरकम टैरिफ है। अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के कारण चीन की अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है। विकास धीमा हो गया है और लोगों का भरोसा कम हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ युद्ध, आर्थिक संकट और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच चीन भारत के साथ तनाव कम करना चाहता है। साल 2020 में लद्दाख में हुई झड़प के बाद चीन ने चुपचाप पीछे हट गया और तनाव कम कर दिया। चीन अपने कारोबार के लिए अब भारत की ओर उम्मीदों भरी नजरों से देख रहा है।