डूबते बॉलीवुड का रामबाण इलाज! Waves 2025 में शाहरुख और आमिर ने क्यों रोया 'कम सिंगल स्क्रीन्स' का रोना?
बॉलीवुड डूब रहा है! मलयालम इंडस्ट्री में घाटे के कारण कई महीने नई फिल्मों पर काम बंद करना पड़ा, कन्नड़ और तमिल सिनेमा में 50 करोड़ की कमाई करने वाली फिल्में सुपरहिट बन जा रही हैं। तेलुगू इंडस्ट्री में भी बॉलीवुड की तरह ही बड़े-बड़े सुपरस्टार्स की फिल्में पिट रही हैं। कुल मिलाकर पूरी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का एक जैसा हाल है। कोरोना महामारी के बाद सिनेमाघरों से दर्शक नदारद हैं। गिनी-चुनी फिल्में ही बंपर कमाई कर रही हैं। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? WAVES 2025 में आमिर खान और शाहरुख खान जैसे दिग्गजों ने कहा है कि टिकट की कीमतों को कम करना और देश में सिनेमाघरों की संख्या बढ़ाना ही एकमात्र 'रामबाण' इलाज है। क्या वाकई? आइए समझते हैं।ज्यादा पीछे नहीं भी जाएं, तो साल 2025 में अब तक 'छावा', 'एल 2 एम्पुरान' जैसी एक-दो फिल्मों के अलावा अधिकतर फ्लॉप साबित हुई हैं। आलम ये है कि सिनेमाघर खाली हैं। एक बड़ी वजह टिकटों की कीमत है, क्योंकि इस बीच हमने यह भी देखा है कि जब 'नेशनल सिनेमा लवर्स डे' पर 100 रुपये टिकट की कीमत होती है, तो यही सिनेमाघर हाउसफुल हो जाते हैं। शाहरुख बोले- सस्ते और सुलभ थिएटर्स की जरूरत शाहरुख खान ने गुरुवार को मुंबई में चल रहे 'वर्ल्ड ऑडियो विजुअल एंड एंटरटेनमेंट समिट' (WAVES) के दौरान देश में ज्यादा थिएटर स्क्रीन्स की वकालत की थी। ‘द जर्नी: फ्रॉम आउटसाइडर टू रूलर’ नाम के सेशन में शाहरुख ने कहा कि देश में स्क्रीन्स की संख्या बढ़ाकर और टिकटों की कीमत कम करके ही बॉलीवुड को ‘बचाया’ जा सकता है। किंग खान ने कहा, 'मैं अब भी मानता हूं कि आज के समय की जरूरत छोटे शहरों और कस्बों में सुलभ और सस्ते थिएटर हैं, ताकि हम भारतीय फिल्में दिखा सकें। किसी भी भाषा की फिल्में सस्ते दामों पर ज्यादातर भारतीयों को उपलब्ध होनी चाहिए। यह बहुत महंगा होता जा रहा है।'
आमिर ने कहा- देश के कई जिलों में आज एक भी थिएटर नहींइसी तरह शुक्रवार को WAVES 2025 में आमिर खान ने भी कुछ ऐसा ही कहा। वह बोले, 'हमें भारत में और भी ज्यादा थिएटर और अलग-अलग तरह के थिएटर की जरूरत है। देश में कई जिले ऐसे हैं, जहां आज एक भी थिएटर नहीं है। मुझे लगता है कि पिछले कई दशकों में हमने जो भी समस्याएं झेली हैं, वे सिर्फ ज्यादा स्क्रीन की कमी को लेकर हैं।' चीन में हैं 90,000 थिएटर स्क्रीन्स, अमेरिका में 40 हजार दुनिया के दूसरे बड़े देशों से तुलना करें, तो भारत वाकई अमेरिका और चीन से थिएटर्स और स्क्रीन्स के मामले में काफी पीछे है। साल 2023 में, एक सर्वे रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में लगभग 9,742 सिनेमा स्क्रीन्स होंगी, जिनमें सिंगल-स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स दोनों हैं। जबकि इतनी ही आबादी वाले चीन में 90,000 स्क्रीन्स हैं। अमेरिका में हमारे देश की आबादी का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा है, लेकिन वहां भी करीब 40,000 स्क्रीन हैं।
1990 के दशक में देश में थे 25000 स्क्रीन्सएक रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 के दशक में भारत में करीब 25,000 सिंगल-स्क्रीन थिएटर थे। जो पिछले कुछ साल में बहुत कम हो गई हैं। खासकर कोरोना महामारी में बंदी के कारण घाटा बढ़ा और कई बड़े शहरों में भी सिंगल स्क्रीन थिएटर्स को मजूबरी में बंद करना पड़ा। देश में बचे हैं सिर्फ 5500 सिंगल स्क्रीन थिएटर्ससाल 2023 की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में अब करीब 5500 सिंगल स्क्रीन थिएटर बचे हैं। इनमें से भी कइयों को मल्टीप्लेक्स के तर्ज पर रेनोवेट किया गया है, लिहाजा टिकट की कीमतें बढ़ानी पड़ी हैं। बिहार में थे 200 सिंगल सक्रीन्स, अब बचे हैं सिर्फ 45'द सिटिजन' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में कभी लगभग 200 सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर थे। अब उनमें से केवल 45 ही बचे हैं। कभी ये सिनेमाघर हाउसफुल शोज चलाते थे, लेकिन अब इनमें मुश्किल से ही कोई दर्शक आता है। गया में प्रेम टॉकीज के मैनेजर रफी अहमन खान बताते हैं कि पहले दर्शकों की भीड़ ऐसी होती थी कि हाउसफुल के बाद भी लोग टिकट मांगते थे और उन्हें अपने कमरे में खुद को बंद करना पड़ता था। लेकिन आज 460 सीटों वाले उनके सिनेमाघर की हालत ये है कि औसतन एक शो में 15-20 दर्शक ही मिलते हैं।

आंध्र प्रदेश में बंद हो गए 2000 सिंगल स्क्रीन थिएटर्स इसी तरह, 'ग्लोबल मीडिया जर्नल' में छपी एक स्टडी के मुताबिक, करीब 10 साल पहले आंध्र प्रदेश में 3600 सिंगल स्क्रीन थिएटर थे, जो अब घटकर 1600 रह गए हैं। इन 1600 में से भी कुछ को मल्टीप्लेक्स में बदल दिया गया है, या बदला जा रहा है। स्क्रीन्स की संख्या बढ़ाने से कितना होगा फायदाहमारे देश में क्रिकेट और सिनेमा, ये दो ऐसी चीजें हैं, जिनको लेकर गजब की फैन फॉलोइंग है। ऐसा नहीं है कि लोगों ने फिल्में देखना बंद कर दिया है। तब और अब में फर्क ये है कि लोग अब सिनेमाघर की जगह OTT पर फिल्में देख रहे हैं। इसकी एक वजह सिनेमा देखने का खर्च है। आज औसतन मल्टीप्लेक्स में एक आदमी के फिल्म देखने का खर्च 300-500 रुपये है। ऐसे में, फैमिली को साथ लेकर जाना मिडिल क्लास के लिए महीने का बजट बिगाड़कर रख देता है। लेकिन सिंगल स्क्रीन्स की संख्या बढ़ाई जाती है, तो मल्टीप्लेक्स की तुलना में टिकट सस्ते होंगे। दर्शक बड़े पर्दे पर अपनी फेवरेट फिल्मों का मजा कम खर्च में ले पाएंगे।
कंपीटिशन के कारण मल्टीप्लेक्सेज को भी कम करनी पड़ेगी कीमतसिंगल स्क्रीन्स की संख्या बढ़ने से मल्टीप्लेक्स बिजनस को भी कंपीटिशन मिलेगा। उन्हें भी मजबूरी में दर्शकों को लुभाने के लिए अपनी टिकटों की कीमत कम करनी पड़ेगी। सस्ते टिकट के कारण दर्शकों की संख्या बढ़ेगी। देश का सबसे बड़ा वर्ग मिडिल क्लास, अपनी फैमिली के साथ कम खर्च में मनोरंजन का लाभ ले पाएगा। इससे सिनेमाघरों में फुटफॉल बढ़ेगा। टिकट बिक्री के कारण फिल्मों की कमाई बढ़ेगी।
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