सिंधु जल संधि पर बड़ा खुलासा, 1960 में पाकिस्तान ने मांगी थी दया की भीख... जानें क्या था पूरा मामला

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नई दिल्ली: 1960 में हुए सिंधु जल संधि के बाद, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने कश्मीर को भारत से छीनने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी से मदद मांगी थी। एक नई किताब में यह बात सामने आई है। इस किताब का नाम 'ट्रायल बाय वाटर: इंडस बेसिन एंड इंडिया-पाकिस्तान रिलेशंस' है। इस किताब को उत्तम सिन्हा ने लिखा है। वे अंतरराष्ट्रीय जल मुद्दों के एक्सपर्ट और IDSA में सीनियर फेलो हैं। उन्होंने किताब में बताया है कि अयूब खान ने अमेरिका से यह मदद क्यों मांगी, कैसे मांगी और कैनेडी ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी। किताब में सिंधु जल संधि से जुड़े कई और अहम खुलासे भी किए गए हैं।



'ट्रायल बाय वाटर' किताब में बड़ा खुलासा

'ट्रायल बाय वाटर: इंडस बेसिन एंड इंडिया-पाकिस्तान रिलेशंस' किताब में बताया गया है कि 1960 में सिंधु जल समझौते के बाद, जुलाई 1961 में अयूब खान वाशिंगटन गए थे। वे अमेरिका की ओर से भारत को दी जा रही मदद से पहले ही नाराज थे। फर्स्ट लेडी जैकलिन कैनेडी ने माउंट वर्नोन में अयूब खान के सम्मान में एक रिसेप्शन रखा था। अयूब खान की नाराजगी वहां भी साफ दिख रही थी। उन्होंने CIA की उन गुप्त उड़ानों को रोक दिया था जो पूर्वी पाकिस्तान के एयरबेस से तिब्बती विद्रोहियों की मदद करती थीं। उन्होंने पश्चिमी पाकिस्तान से चीन पर U-2 फ्लाइट्स की उड़ानों को भी रोक दिया था।



कैसे पाकिस्तान ने मांगी अमेरिका से मदद

हालांकि, कैनेडी के साथ एक निजी मुलाकात में माहौल थोड़ा ठीक हुआ। अयूब खान एयरबेस को फिर से खोलने के लिए राजी हो गए। बदले में, कैनेडी ने वादा किया कि अमेरिका भारत को कोई भी सैन्य उपकरण नहीं देगा। कुछ दिनों बाद, ओवल ऑफिस में अयूब खान ने पाकिस्तान की सुरक्षा चिंताओं को लेकर कुछ नक्शे दिखाए।



कुछ नक्शे दिखाकर अयूब खान ने किए कई दावेउत्तम सिन्हा ने अपनी किताब में बताया कि भारत ने अपने 15 लाख सैनिकों में से केवल 15 फीसदी को ही चीन के खिलाफ तैनात किया है। वहीं 85 फीसदी जवानों को पाकिस्तान के खिलाफ उतारा गया है। उन्होंने यह भी बताया कि अफगानिस्तान के पश्चिमी सीमा पर 80,000-90,000 सैनिक हैं, जिनके पास सोवियत संघ से मिले हथियार हैं। तीसरा नक्शा दोनों पड़ोसियों के खिलाफ पाकिस्तान की पतली रक्षापंक्ति को दर्शा रहा था। सिन्हा ने अपनी किताब में बताया कि अयूब खान ने लगातार जोर दिया कि कश्मीर के बिना, भारत या अफगानिस्तान से हमला होने पर पाकिस्तान का बुरा हाल हो जाएगा।



अयूब खान ने कहा- भारत जम्मू रख सकता है लेकिन...उत्तम सिन्हा ने अपनी किताब में लिखा कि अयूब खान ने बार-बार कहा कि कश्मीर के बिना पाकिस्तान का कोई भविष्य नहीं है। कैनेडी और उनके सलाहकारों को अयूब खान की बातों पर शक था, लेकिन वे जानते थे कि भारत-पाकिस्तान के बीच शांति के लिए कश्मीर का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है। कैनेडी ने एक समझौता करने का सुझाव दिया जिसे तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू स्वीकार कर सकते थे। अयूब खान ने जवाब दिया कि भारत जम्मू को रख सकता है, लेकिन पाकिस्तान को अपनी पानी की सुरक्षा के लिए चेनाब नदी के पार 'कुछ मील' जमीन चाहिए।



पानी और जमीन के मुद्दे पर छिड़ गया था घमासान

अयूब खान का तर्क था कि अगर सिंधु जल संधि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों का अधिकार देती है, और वे नदियां कश्मीर से बहती हैं, तो उन नदियों के आसपास के इलाके पाकिस्तान के होने चाहिए। अयूब खान ने कहा कि नेहरू अब कश्मीरियों से दूर हो गए हैं और समझौते के लिए तैयार हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि कश्मीर मुद्दे को हल किए बिना, भारत को अमेरिका की मदद बेकार जाएगी। कैनेडी ने कहा कि अमेरिका की मदद का मकसद भारत को कम्युनिस्ट प्रभाव से बचाना है, न कि वफादारी खरीदना। ये खुलासा उत्तम सिन्हा ने अपनी किताब में किया है।



शीत युद्ध के दौरान उलझा था पानी और जमीन का मुद्दा

बैठक खत्म होते समय, अयूब खान ने एक आखिरी बात कही। उन्होंने पूछा कि अगर नेहरू की नवंबर 1961 में वाशिंगटन यात्रा के दौरान भारतीय पीएम को मनाने का कैनेडी का प्रयास विफल हो जाता है, और पाकिस्तान कश्मीर पर वापस संयुक्त राष्ट्र जाता है, तो क्या अमेरिका उसका समर्थन करेगा? कैनेडी ने इसका हां में जवाब दिया। किताब में यह बात साफ की गई है कि शीत युद्ध के दौरान पानी और जमीन का मुद्दा दक्षिण एशिया में कितना उलझा हुआ था।



सिंधु जल समझौते को लेकर नेहरू की आलोचना

किताब में यह भी बताया गया है कि नेहरू को सिंधु जल संधि को लेकर देश के अंदर आलोचना का सामना करना पड़ा था। नवंबर और दिसंबर 1960 में संधि पर लोकसभा में बहस के दौरान एक सांसद ने नेहरू को क्रिकेट मैच का अंपायर बताया था। किताब में लिखा है कि सांसदों को लग रहा था कि भारत बड़े ही आसानी से बहुत कुछ दे रहा है।



इस संधि को जब कहा गया 'दूसरा विभाजन'

19 सितंबर, 1960 को संधि पर हस्ताक्षर किए गए, और 30 नवंबर को संसद में इस पर बहस हुई। उस समय माहौल बिल्कुल भी खुशनुमा नहीं था। कांग्रेस के सदस्यों सहित सभी दलों के नेताओं ने इसकी आलोचना की। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के अशोक मेहता ने इसे 'दूसरा विभाजन' तक कह दिया था। यह किताब बताती है कि कैसे पानी और जमीन के मुद्दे ने भारत और पाकिस्तान के संबंधों को प्रभावित किया।