Opinion: 'लोकतंत्र की जड़ों पर हमला हुआ', टीएमसी के गुनाहों से पीछा क्यों नहीं छुड़ा सकतीं ममता बनर्जी
नई दिल्ली: ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) को दो घटनाओं की वजह से देश की न्यायपालिका ने हाल ही में दो-दो बार बेनकाब कर दिया है। पहले मुर्शिदाबाद हिंसा में कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर हुई जांच में पार्टी की असलियत देश के सामने आई। अब 2021 के विधानसभा चुनाव में उसके कार्यकर्ताओं की क्रूरता को सुप्रीम कोर्ट ने ही उजागर कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कार्यकाल में पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर पहले से ही विरोधी दलों के लोगों, उनके समर्थकों को डराने-धमकाने और उनके उत्पीड़न के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन, अब सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में जो फैसला सुनाया है, उससे अदांजा लग सकता है कि टीएमसी में शामिल अपराधियों और दंगाइयों ने किस तरह से लोकतंत्र की जड़ों को नुकसान पहुंचाने का काम किया है।
टीएमसी कार्यकर्ताओं की जमानत पर बिफरा सुप्रीम कोर्ट
हाल के वर्षों में बेल को ही रूल बताने वाले सुप्रीम कोर्ट ने टीएमसी के 6 आरोपियों को कलकत्ता हाई कोर्ट से मिली जमानत जिस तरह से खारिज की है, उससे स्पष्ट हो गया है कि यह मामला कितना गंभीर है। शेख जमीर हुसैन, शेख नुराई, शेख अशरफ,शेख करिबुल और जयंता डोन की जमानत ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने अपने फैसले में जमानत ठुकराने के दो कारण बताए हैं। पहला कारण है 'अपराध की गंभीरता', क्योंकि 'यह अपराध लोकतंत्र पर हमला है'। दूसरा कारण है 'आरोपी निष्पक्ष सुनवाई को प्रभावित कर सकते हैं'। अदालत ने कहा,'आरोपी प्रतिवादियों को जमानत पर रहने की अनुमति दी जाती है, तो निष्पक्ष सुनवाई होने की कोई संभावना नहीं है। इस प्रकार, दोनों मायने में अपराध की प्रकृति और गंभीरता जो लोकतंत्र की जड़ों पर हमले से कम नहीं है, और आरोपियों द्वारा निष्पक्ष मुकदमे को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने की संभावना है, इसलिए आरोपी प्रतिवादियों को दी गई जमानत रद्द की जानी चाहिए।'
'ये घिनौना अपराध लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमला था'
जस्टिस मेहता ने फैसले में कहा, 'ये घिनौना अपराध लोकतंत्र एक गंभीर हमला था। आरोपियों ने जो किया, वो लोकतंत्र के लिए बहुत ही बुरा था। उन्होंने लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमला किया।' अदालत ने कहा है कि 'चुनाव नतीजों के दिन शिकायतकर्ता (हिंदू) के घर पर हमला केवल बदला लेने के मकसद से किया गया था, क्योंकि उसने भगवा पार्टी (BJP) का समर्थन किया था। यह बहुत गंभीर परिस्थिति है, जो हमें आश्वस्त करती है कि आरोपी व्यक्ति, जिसमें प्रतिवादी भी शामिल हैं, विपरीत राजनीतिक पार्टी के सदस्यों को आतंकित करने की कोशिश कर रहे थे।' कोर्ट ने कहा कि आरोपियों का एकमात्र उद्देश्य विपक्षी दल के समर्थकों को अपने अधीन करना था।
टीएमसी कार्यकर्ताओं का महिला के साथ बर्बरता उजागर
अदालत ने इस बात का भी जिक्र किया है कि शिकायतकर्ता की पत्नी के साथ कितना बुरा बर्ताव हुआ। उनके बाल खींचे गए और कपड़े फाड़ दिए गए। आरोपियों ने उनके साथ गलत काम करने की भी कोशिश की। लेकिन, महिला ने हिम्मत दिखाई और अपने ऊपर केरोसिन डाल लिया और धमकी दी कि अगर वे आगे बढ़े तो वह खुद को आग लगा लेगी। कोर्ट के अनुसार, इसके बाद आरोपी डर कर भाग गए। जजमेंट में लिखा है, 'आरोपी व्यक्ति उसे सेक्सुअली असॉल्ट करने वाले थे जब उसने खुद पर केरोसिन डाला और आत्मदाह की धमकी दी, जिसके बाद आरोपी भाग गए।'
सरकार को निर्देशों के उल्लंघन पर उचित कार्रवाई की चेतावनी
इतना ही नहीं, पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद हिन्दू परिवार पर हुए हमले के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम निर्देश दिए हैं। अदालत ने ट्रायल कोर्ट को छह महीने के भीतर ट्रायल पूरा करने को कहा है। साथ ही, पश्चिम बंगाल के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को शिकायतकर्ता और सभी गवाहों को सुरक्षा देने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि सीबीआई से निर्देशों के उल्लंघन की सूचना मिलने पर उचित कार्रवाई की जाएगी। मतलब, सुप्रीम कोर्ट को टीएमसी के आरोपियों के साथ-साथ ममता बनर्जी सरकार पर भी भरोसा नहीं रह गया है।
शुरू से बंगाल पुलिस ने विरोधी दल समर्थक पीड़ितों से दिखाई बेरुखी
यह मामला 2 मई, 2021 को बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद का है। मुस्लिम बहुल गांव गुमसिया में शेख महिम की अगुवाई में 40-50 लोगों की भीड़ ने एक हिंदू परिवार के घर पर बम फेंके। उन्होंने घर में लूटपाट की और शिकायतकर्ता की पत्नी को निर्वस्त्र करके उसके साथ छेड़छाड़ की। जब महिला ने खुद पर केरोसिन डालकर आत्मदाह करने की धमकी दी, तब जाकर भीड़ रुकी। इसके बाद पूरा परिवार अपनी जान और सम्मान बचाने के लिए गांव से भाग गया। परिवार ने 3 मई, 2021 को सदापुर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की। लेकिन, प्रभारी अधिकारी ने शिकायत तो दर्ज नहीं ही की, बल्कि परिवार को गांव छोड़ने की सलाह भी दे दी। पुलिस ने इसी तरह की कई अन्य शिकायतें भी दर्ज नहीं कीं। बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट ने 19 अगस्त, 2021 को CBI को बलात्कार, हत्या या ऐसे अपराधों के प्रयास से जुड़े सभी मामलों की जांच करने का आदेश दिया। CBI ने दिसंबर 2021 में मामले दर्ज किए। अब, SC ने इस मामले में तेजी लाने और पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सख्त निर्देश दिए हैं।
हिंदुओं पर हमले को नजरअंदाज क्यों कर देती है बंगाल पुलिस?
इस मामले में शिकायतकर्ता ने घटना से पहले भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसे अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का पाल नहीं करने दिया जा रहा है। चुनाव के बाद TMC कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर इसी वजह से उस परिवार को निशाना बनाया। इसी तरह से इसी साल अप्रैल में नए वक्फ कानून के खिलाफ मुर्शिदाबाद जिले में जबरदस्त हिंसा की गई थी और हिंदुओं को निशाना बनाया गया था। बाद में कलकत्ता हाई कोर्ट की एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी ने भी पाया कि हिंसा में टीएमसी के एमएलए और एक पार्षद का सक्रिय योगदान था। यहां हिंदुओं के घरों की पहचान करके उसे निशाना बनाया गया। इस हिंसा में एक पिता-पुत्र की बहुत ही जघन्य तरीके से हत्या कर दी गई। हाई कोर्ट की समिति ने यह भी पाया कि हिंसा होती रही और पश्चिम बंगाल पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।
टीएमसी के गुनाहों से पीछा क्यों नहीं छुड़ा सकतीं ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल में 2011 से ही मुख्यमंत्री पद पर तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी बैठी हुई हैं। इन दोनों घटनाओं में टीएमसी कार्यकर्ताओं के शामिल होने की बात बड़ी अदालतें भी मान रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कलकत्ता हाई कोर्ट की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की जांच से साफ है कि राज्य प्रशासन और पुलिस भरोसे के लायक नहीं रह गए हैं। इन दोनों मामलों में जो आरोपी हैं, वह ममता बनर्जी के ही पार्टी के लोग हैं और जिनपर दंगाइयों पर एक्शन नहीं लेने के आरोप हैं,वह भी उन्हीं के अधीन हैं। ऐसे में खासकर के हिंदुओं को निशाना बनाए जाने के इन गुनाहों से वह अपना पीछा कैसे छुड़ा सकती हैं?
टीएमसी कार्यकर्ताओं की जमानत पर बिफरा सुप्रीम कोर्ट
हाल के वर्षों में बेल को ही रूल बताने वाले सुप्रीम कोर्ट ने टीएमसी के 6 आरोपियों को कलकत्ता हाई कोर्ट से मिली जमानत जिस तरह से खारिज की है, उससे स्पष्ट हो गया है कि यह मामला कितना गंभीर है। शेख जमीर हुसैन, शेख नुराई, शेख अशरफ,शेख करिबुल और जयंता डोन की जमानत ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने अपने फैसले में जमानत ठुकराने के दो कारण बताए हैं। पहला कारण है 'अपराध की गंभीरता', क्योंकि 'यह अपराध लोकतंत्र पर हमला है'। दूसरा कारण है 'आरोपी निष्पक्ष सुनवाई को प्रभावित कर सकते हैं'। अदालत ने कहा,'आरोपी प्रतिवादियों को जमानत पर रहने की अनुमति दी जाती है, तो निष्पक्ष सुनवाई होने की कोई संभावना नहीं है। इस प्रकार, दोनों मायने में अपराध की प्रकृति और गंभीरता जो लोकतंत्र की जड़ों पर हमले से कम नहीं है, और आरोपियों द्वारा निष्पक्ष मुकदमे को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने की संभावना है, इसलिए आरोपी प्रतिवादियों को दी गई जमानत रद्द की जानी चाहिए।'
'ये घिनौना अपराध लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमला था'
जस्टिस मेहता ने फैसले में कहा, 'ये घिनौना अपराध लोकतंत्र एक गंभीर हमला था। आरोपियों ने जो किया, वो लोकतंत्र के लिए बहुत ही बुरा था। उन्होंने लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमला किया।' अदालत ने कहा है कि 'चुनाव नतीजों के दिन शिकायतकर्ता (हिंदू) के घर पर हमला केवल बदला लेने के मकसद से किया गया था, क्योंकि उसने भगवा पार्टी (BJP) का समर्थन किया था। यह बहुत गंभीर परिस्थिति है, जो हमें आश्वस्त करती है कि आरोपी व्यक्ति, जिसमें प्रतिवादी भी शामिल हैं, विपरीत राजनीतिक पार्टी के सदस्यों को आतंकित करने की कोशिश कर रहे थे।' कोर्ट ने कहा कि आरोपियों का एकमात्र उद्देश्य विपक्षी दल के समर्थकों को अपने अधीन करना था।
टीएमसी कार्यकर्ताओं का महिला के साथ बर्बरता उजागर
अदालत ने इस बात का भी जिक्र किया है कि शिकायतकर्ता की पत्नी के साथ कितना बुरा बर्ताव हुआ। उनके बाल खींचे गए और कपड़े फाड़ दिए गए। आरोपियों ने उनके साथ गलत काम करने की भी कोशिश की। लेकिन, महिला ने हिम्मत दिखाई और अपने ऊपर केरोसिन डाल लिया और धमकी दी कि अगर वे आगे बढ़े तो वह खुद को आग लगा लेगी। कोर्ट के अनुसार, इसके बाद आरोपी डर कर भाग गए। जजमेंट में लिखा है, 'आरोपी व्यक्ति उसे सेक्सुअली असॉल्ट करने वाले थे जब उसने खुद पर केरोसिन डाला और आत्मदाह की धमकी दी, जिसके बाद आरोपी भाग गए।'
सरकार को निर्देशों के उल्लंघन पर उचित कार्रवाई की चेतावनी
इतना ही नहीं, पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद हिन्दू परिवार पर हुए हमले के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम निर्देश दिए हैं। अदालत ने ट्रायल कोर्ट को छह महीने के भीतर ट्रायल पूरा करने को कहा है। साथ ही, पश्चिम बंगाल के गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को शिकायतकर्ता और सभी गवाहों को सुरक्षा देने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि सीबीआई से निर्देशों के उल्लंघन की सूचना मिलने पर उचित कार्रवाई की जाएगी। मतलब, सुप्रीम कोर्ट को टीएमसी के आरोपियों के साथ-साथ ममता बनर्जी सरकार पर भी भरोसा नहीं रह गया है।
शुरू से बंगाल पुलिस ने विरोधी दल समर्थक पीड़ितों से दिखाई बेरुखी
यह मामला 2 मई, 2021 को बंगाल विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद का है। मुस्लिम बहुल गांव गुमसिया में शेख महिम की अगुवाई में 40-50 लोगों की भीड़ ने एक हिंदू परिवार के घर पर बम फेंके। उन्होंने घर में लूटपाट की और शिकायतकर्ता की पत्नी को निर्वस्त्र करके उसके साथ छेड़छाड़ की। जब महिला ने खुद पर केरोसिन डालकर आत्मदाह करने की धमकी दी, तब जाकर भीड़ रुकी। इसके बाद पूरा परिवार अपनी जान और सम्मान बचाने के लिए गांव से भाग गया। परिवार ने 3 मई, 2021 को सदापुर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की। लेकिन, प्रभारी अधिकारी ने शिकायत तो दर्ज नहीं ही की, बल्कि परिवार को गांव छोड़ने की सलाह भी दे दी। पुलिस ने इसी तरह की कई अन्य शिकायतें भी दर्ज नहीं कीं। बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट ने 19 अगस्त, 2021 को CBI को बलात्कार, हत्या या ऐसे अपराधों के प्रयास से जुड़े सभी मामलों की जांच करने का आदेश दिया। CBI ने दिसंबर 2021 में मामले दर्ज किए। अब, SC ने इस मामले में तेजी लाने और पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सख्त निर्देश दिए हैं।
हिंदुओं पर हमले को नजरअंदाज क्यों कर देती है बंगाल पुलिस?
इस मामले में शिकायतकर्ता ने घटना से पहले भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसे अपने धार्मिक रीति-रिवाजों का पाल नहीं करने दिया जा रहा है। चुनाव के बाद TMC कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर इसी वजह से उस परिवार को निशाना बनाया। इसी तरह से इसी साल अप्रैल में नए वक्फ कानून के खिलाफ मुर्शिदाबाद जिले में जबरदस्त हिंसा की गई थी और हिंदुओं को निशाना बनाया गया था। बाद में कलकत्ता हाई कोर्ट की एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी ने भी पाया कि हिंसा में टीएमसी के एमएलए और एक पार्षद का सक्रिय योगदान था। यहां हिंदुओं के घरों की पहचान करके उसे निशाना बनाया गया। इस हिंसा में एक पिता-पुत्र की बहुत ही जघन्य तरीके से हत्या कर दी गई। हाई कोर्ट की समिति ने यह भी पाया कि हिंसा होती रही और पश्चिम बंगाल पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही।
टीएमसी के गुनाहों से पीछा क्यों नहीं छुड़ा सकतीं ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल में 2011 से ही मुख्यमंत्री पद पर तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी बैठी हुई हैं। इन दोनों घटनाओं में टीएमसी कार्यकर्ताओं के शामिल होने की बात बड़ी अदालतें भी मान रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कलकत्ता हाई कोर्ट की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की जांच से साफ है कि राज्य प्रशासन और पुलिस भरोसे के लायक नहीं रह गए हैं। इन दोनों मामलों में जो आरोपी हैं, वह ममता बनर्जी के ही पार्टी के लोग हैं और जिनपर दंगाइयों पर एक्शन नहीं लेने के आरोप हैं,वह भी उन्हीं के अधीन हैं। ऐसे में खासकर के हिंदुओं को निशाना बनाए जाने के इन गुनाहों से वह अपना पीछा कैसे छुड़ा सकती हैं?
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