कास्ट सेंसस का मुस्लिम कनेक्शन क्या है? नरेंद्र मोदी के मास्टर स्ट्रोक का बिहार चुनाव में लिटमस टेस्ट, जानें

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पटना: नरेंद्र मोदी सरकार जातीय जनगणना कराने जा रही है। इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। संघ, सहयोगी दल, विपक्ष और बिहार विधान सभा चुनाव 2025 को अहम माना जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के मुद्दों को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है। एक और बात कही जा रही है कि क्या ये धर्म के नाम पर एकजुट हुए मुस्लिमों को बांटने का प्रयास है? इसका असली इम्तिहान बिहार विधान सभा चुनाव 2025 में होगा।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि सरकार ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को घेरने के लिए यह कदम उठाया है। वे कहते हैं कि जातीय जनगणना से इन नेताओं के पास कोई मुद्दा नहीं बचेगा। एक और चर्चा चल रही है। कुछ लोगों का मानना है कि सरकार धर्म के आधार पर एकजुट हुए मुस्लिमों को बांटना चाहती है। उनका कहना है कि जातीय जनगणना से मुस्लिम समुदाय अलग-अलग जातियों में बंट जाएगा। सियासी नफा-नुकसान की तराजू पर कास्ट सेंससवक्फ बोर्ड संशोधन बिल के पास होने के बाद जो देश भर में मुस्लिमों ने जो एकता दिखाई वो भाजपा के लिए चिंता का विषय बन गया।
सूत्र बताते हैं कि नरेंद्र मोदी और उनके राजनीतिक सलाहकार इस जनगणना के जरिए इस्लाम को भी जातियों में बांट कर बिहार विधान सभा चुनाव का परिणाम देखना चाहते हैं। राष्ट्रीय जनता दल के महासचिव निराला यादव कहते हैं कि ये जो निर्णय लिया गया है, वो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के दबाव में लिया गया है। लेकिन, जब ये दवाब बनाया जा रहा था, तब ये फैसला न लेकर और अब बिहार विधान सभा चुनाव के मौके पर जनगणना कराने का निर्णय के पीछे षड्यंत्रकारी मंशा है। ये मंशा है, मुस्लिम समाज को जातीय अवधारणा के साथ विभाजित करने का।
लेकिन, ये राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के रहते संभव नहीं है। ऐसा इसलिए कि वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के बाद मुस्लिमों का एनडीए सरकार से विश्वास उठ गया है। मुस्लिम में जातीय-व्यवस्था से इनकार नहीं: दानिशबिहार बीजेपी के मीडिया प्रभारी दानिश इकबाल का मानना है कि जो लोग भी मुस्लिमों में जातीय-व्यवस्था को नकारते हैं, वे लोग मुस्लिम समाज को पीछे रखना चाहते हैं। वे नहीं चाहते कि मुस्लिम समाज विकास के पायदान पर आगे बढ़े। मुस्लिम समाज में जातीय व्यवस्था है। मैंने कई भारतीय उलेमाओं की रचनाएं भी पढ़ी है, जिन्हें उनके कई अनुयायी महान बुद्धिजीवी मानते हैं।
जैसे- मौलवी अहमद रजा खान बरेलवी और मौलवी अशरफ अली फारुकी थानवी। मुझे ये जानकर आश्चर्य हुआ कि उनमें से अधिकांश ने वास्तव में जन्म के आधार पर जातिगत श्रेष्ठता की धारणा का समर्थन किया और इस बारे में फतवे दिए, जो पूरी तरह से कुरान के खिलाफ थे। उन्होंने अरबी में कफ़ा नाम के धारणा का सहारा लेकर ऐसा किया, जिसका उपयोग करके उन्होंने उन समूहों के बीच संभावित विवाह संबंधों के बारे में नियम निर्धारित किए जिन्हें उन्होंने पदानुक्रम में स्थान दिया था। शादियों को लेकर मुस्लिम समाज में भी ऊंच-नीचदानिश इकबाल के मुताबिक, उन्होंने (मुस्लिम बुद्धिजीवी) तर्क दिया कि अरब मूल के मुसलमान (सैय्यद और शेख) गैर-अरब या अजामी मुसलमानों से श्रेष्ठ हैं, और इसलिए जबकि एक आदमी जो अरब मूल का दावा करता है वह एक अजामी महिला से शादी कर सकता है, इसके विपरीत संभव नहीं है।
इसी तरह, उन्होंने तर्क दिया, एक पठान मुस्लिम आदमी एक जुलाहा (अंसारी), मंसूरी (धुनिया), रायिन (कुंजरा) या कुरैशी (कसाई) महिला से शादी कर सकता है, लेकिन एक अंसारी, रायिन, मंसूरी और कुरैशी आदमी एक पठान महिला से शादी नहीं कर सकता क्योंकि वे इन जातियों को पठानों से नीच मानते थे। इनमें से कई उलेमा यह भी मानते थे कि अपनी जाति में ही शादी करना सबसे अच्छा है। यह सब इस्लाम के बारे में मेरी समझ के बिल्कुल विपरीत था, और उनके लेखों को पढ़ना मेरे लिए एक रहस्योद्घाटन था। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि भारत में कितने उलेमा ने जाति को गलत तरीके से वैध बनाने की कोशिश की है, जिसे वे गलत तरीके से इस्लामी या धार्मिक स्वीकृति बताते हैं।
ये हिंदू मामले से अलग नहीं है, जहां जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न के लिए धार्मिक स्वीकृति प्रदान की जाती है जानते हैं मुस्लिमों में कितनी जातियां
  • जनरल मुस्लिम में पठान, रिजवी, शेख, सिद्दीकी, खान, मिर्जा, कायस्थ, सैय्यद, भरसैया और भरसो आते हैं।
  • मुसलमानों में पिछड़ी जातियों की लिस्ट में मदरिया, नालबंद, सुरजापुरी, अंसारी और मलिक मुस्लिम शामिल हैं। बैकवर्ड मुसलमानों में सबसे अधिक आबादी मोमिन अंसारी की है। वहीं, दूसरी बड़ी आबादी सुरजापुरी मुस्लिम की है। पिछड़ी जाति में आने वाले चिक मुस्लिमों, कसाई, डफली, धुनिया, नट, पमरिया, भटिया, भाट और मेहतर हैं
  • अति पिछड़े मुसलमानों में मदारी, मिर्शिकार, फकीर, चूड़ीहार, राईन ठकुराई, शेरशाहबादी और बखो हैं। सिकलीगर, फकीर, मुकेरी गादेरी, कुल्हैया, धोबी, सेखदा, गद्दी और लालबेगी है।
  • दलित मुस्लिमों में भटियारा, फकीर, शाह, डफली, नट, हलालखोर, लालबेगी, बंजारा, धोबी, रणकी, रंगरेज, जोगी, मोची, मुकेरी, बखो और भिश्ती शामिल हैं।