सुन्न अंग, लड़खड़ाती ज़ुबान-चक्कर,लो बीपी नहीं, स्ट्रोक का अलार्म है,स्ट्रोक से पहले खुद को बचाएं

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स्ट्रोक यानी मस्तिष्क को रक्त प्रवाह का रुकना, एक गंभीर लेकिन अक्सर अनदेखा किया जाने वाला मेडिकल इमरजेंसी है। अधिकतर मामलों में ये धीरे-धीरे नहीं बल्कि अचानक शुरू होता है—एक अजीब सी सुन्नता, जुबान का लड़खड़ाना या अचानक चक्कर आना इसके पहले संकेत हो सकते हैं। भारत में हर साल लाखों लोग स्ट्रोक की चपेट में आते हैं, लेकिन जानकारी की कमी के कारण समय पर मदद नहीं मिल पाती।

डॉ विपुल गुप्ता, डायरेक्टर न्यूरो इंटरनेशनल सर्जरी, सर एच एन रिलायंस फाऊंडेशन हॉस्पिटल, मुंबई, के मुताबिक

, इस्केमिक स्ट्रोक, जो कुल स्ट्रोक के लगभग 87% मामलों में होता है, तब होता है जब मस्तिष्क तक खून पहुंचाने वाली नस में अचानक कोई क्लॉट आ जाता है। यदि इसे समय रहते न पहचाना जाए, तो मस्तिष्क को स्थायी क्षति हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि हम स्ट्रोक के शुरुआती लक्षणों को पहचानें और बिना देर किए डॉक्टर की मदद लें।

अगर हम इन संकेतों को समय रहते पहचान लें, तो ज़िंदगी बचाई जा सकती है और मरीज़ को नॉर्मल जीवन में लौटने का बेहतर मौका मिल सकता है। इस लेख में हम जानेंगे स्ट्रोक के लक्षण, कारण, इससे जुड़ी गलतफहमियाँ और वह सभी ज़रूरी बातें जो हर किसी को पता होनी चाहिए। (Photo Credit):canva


स्ट्रोक क्या होता है और ये क्यों होता है
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स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क को ऑक्सीजन और पोषण पहुंचाने वाला रक्त प्रवाह किसी कारण रुक जाता है। इस्केमिक स्ट्रोक सबसे आम है, जो ब्लड क्लॉट के कारण होता है। वहीं हेमरेजिक स्ट्रोक खून की नस फटने से होता है। यह मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और अगर तुरंत इलाज न मिले, तो यह जानलेवा भी हो सकता है। इसलिए स्ट्रोक को दिल की बीमारी जितना ही गंभीर समझना चाहिए।


शुरुआती लक्षणों को पहचानना है ज़रूरी
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स्ट्रोक के लक्षण अचानक और चुपचाप शुरू हो सकते हैं। चेहरे का एक हिस्सा लटक जाना, हाथ-पैर में सुन्नता, बोलने में कठिनाई, चक्कर आना या देखने में परेशानी इसके आम संकेत हैं। अक्सर लोग इन्हें सामान्य थकावट या लो बीपी समझकर इग्नोर कर देते हैं, जो खतरनाक हो सकता है। एक आसान तरीका है—F.A.S.T.:Face drooping, Arm weakness, Speech difficulty, Time to call emergency.


क्यों हर मिनट मायने रखता है
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स्ट्रोक के हर मिनट में मस्तिष्क की लाखों कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। जितनी जल्दी इलाज शुरू होता है, उतनी ही ज्यादा रिकवरी की संभावना होती है। इसे “Golden Hour” कहा जाता है—पहले 60 मिनट स्ट्रोक के मरीज के लिए सबसे अहम होते हैं। इसलिए देरी नहीं, तुरंत अस्पताल जाना ही सबसे सही कदम होता है।


स्ट्रोक का कारण बनने वाले फैक्टर्स
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हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़, मोटापा, स्मोकिंग, अत्यधिक शराब सेवन, और हाई कोलेस्ट्रॉल स्ट्रोक के प्रमुख कारण हैं। उम्र बढ़ने के साथ स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है लेकिन अब यह युवाओं को भी प्रभावित कर रहा है। तनाव और अनहेल्दी लाइफस्टाइल भी रिस्क फैक्टर हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।


स्ट्रोक के बाद क्या करें, क्या न करें
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अगर किसी को स्ट्रोक आ जाए, तो सबसे पहले घबराएं नहीं। मरीज को एक साइड लिटाएं, उसे कुछ भी खाने-पीने को न दें और तुरंत इमरजेंसी कॉल करें। समय बर्बाद करने की बजाय नज़दीकी अस्पताल पहुंचाना ही प्राथमिकता होनी चाहिए। स्ट्रोक के बाद फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी और पोषण का भी विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है।


स्ट्रोक से बचाव संभव है—इन आदतों को अपनाएं
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स्ट्रोक से बचना मुमकिन है अगर आप हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं। रोज़ाना हल्का व्यायाम, कम नमक और संतुलित आहार, ब्लड प्रेशर की नियमित जांच, स्ट्रेस मैनेजमेंट, और पर्याप्त नींद बेहद ज़रूरी हैं। शराब और सिगरेट से दूरी और नियमित मेडिकल चेकअप से स्ट्रोक के खतरे को कम किया जा सकता है। छोटी-छोटी आदतें बड़े बदलाव ला सकती हैं।



डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है । यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है।