जी-7: भारत की ग़ैरमौजूदगी ने खड़ा किया सवाल, कनाडा-भारत विवाद का असर या बदलती विश्व व्यवस्था?

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जी-7: भारत की ग़ैरमौजूदगी ने खड़ा किया सवाल, कनाडा-भारत विवाद का असर या बदलती विश्व व्यवस्था?

अगले साल 2025 में कनाडा के अल्बर्टा प्रांत के कानानास्किस में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन को लेकर दुनिया भर में उत्सुकता बनी हुई है। 15 से 17 जून तक चलने वाली इस उच्च-स्तरीय बैठक में विश्व की सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं – अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, इटली, जर्मनी और मेजबान कनाडा – के शीर्ष नेता भाग लेंगे। हालांकि, इस बार सबकी निगाहें एक ऐसे देश पर हैं जिसे इस सम्मेलन में शामिल होने का न्योता नहीं मिला है – वह है भारत।

बीते छह सालों से भारत, भले ही जी-7 समूह का स्थायी सदस्य न हो, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार एक अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता रहा है। यह आमंत्रण वैश्विक पटल पर भारत के बढ़ते महत्व को दर्शाता था। ऐसे में इस बार का न्योता न मिलना कई राजनीतिक और कूटनीतिक सवाल खड़े कर रहा है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने इसे “बड़ी कूटनीतिक चूक” बताते हुए केंद्र सरकार की आलोचना की है। उन्होंने यह भी उजागर किया कि इस बार ब्राजील, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, यूक्रेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई अन्य गैर-सदस्य देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया गया है, जबकि भारत को नहीं।

क्या भारत-कनाडा रिश्तों की है यह आंच?

भारत को आमंत्रण न मिलने के पीछे पिछले करीब डेढ़ साल से भारत और कनाडा के बीच जारी कड़वाहट भरे रिश्तों को मुख्य वजह माना जा रहा है। सितंबर 2023 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के संभावित हाथ होने का आरोप लगाया था, जिसके बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो गए। भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था और दोनों देशों के बीच राजनयिक गतिरोध बढ़ा था। इसका असर भारत द्वारा कनाडा के नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाओं को अस्थाई रूप से निलंबित करने और दोनों देशों के अधिकारियों के निष्कासन तक भी गया था। ऐसे में माना जा रहा है कि कनाडा ने अपनी मेज़बानी में इस बार भारत को जानबूझकर दूर रखा है।

क्या है जी-7 और कैसे करता है काम?

जी-7 (Group of Seven) दुनिया की सात सबसे विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का एक अनौपचारिक समूह है। इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। यह समूह वैश्विक व्यापार और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर बड़ा प्रभाव रखता है।

वर्ष 2000 में इस गुट की वैश्विक जीडीपी में 40 फीसदी की हिस्सेदारी थी, जो इसकी ताकत का पैमाना था। हालांकि, पिछले कुछ सालों में अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं, खासकर चीन और भारत के तेजी से बढ़ने के कारण, जी-7 देशों की वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी अब घटकर 28.43 फीसदी रह गई है (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के अनुसार)।

जी-7 का सफर: G6 से G8 और फिर वापस G7 तक

जी-7 का जन्म असल में 1975 में जी-6 के रूप में हुआ था। तब अमेरिका, फ्रांस, इटली, जापान, ब्रिटेन और वेस्ट जर्मनी ने मिलकर यह समूह बनाया था। उस समय मुख्य मकसद 1973 के तेल संकट से उपजी आर्थिक चुनौतियों का हल निकालना था। 1976 में कनाडा भी इसमें शामिल हो गया और यह G7 बन गया।

1980 के दशक तक, इस समूह ने आर्थिक मुद्दों के अलावा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को भी अपने एजेंडे में शामिल करना शुरू कर दिया। 1998 में, रूस भी औपचारिक रूप से इस गुट का हिस्सा बन गया, जिससे यह G8 कहलाया जाने लगा। लेकिन 2014 में रूस द्वारा यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर कब्जा करने के बाद, रूस को इस समूह से निलंबित कर दिया गया, और यह वापस G7 बन गया।

जी-7 का कोई कानूनी अस्तित्व नहीं है, न ही इसका कोई स्थायी कार्यालय। यह सदस्य देशों को एक मंच प्रदान करता है जहाँ वे साझा चिंताओं या मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं। इसके फैसले कानूनन बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन ऐतिहासिक रूप से इनके फैसलों का वैश्विक स्तर पर काफी असर रहा है। उदाहरण के तौर पर, 2002 में मलेरिया और एड्स जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए ‘ग्लोबल फंड’ के गठन में इस समूह ने अहम भूमिका निभाई थी। जी-7 विकासशील देशों को वित्तीय मदद भी देता है और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से निपटने में महत्वपूर्ण कदम उठाता रहा है।

इस साल शिखर सम्मेलन के एजेंडे में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा, वैश्विक आर्थिक स्थिरता, विकास, डिजिटल ट्रांजिशन और विभिन्न वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा प्रमुख है। ऐसे में भारत की गैरमौजूदगी निश्चित रूप से वैश्विक कूटनीति के लिए एक नया संकेत दे रही है, जिसे भविष्य में देखना दिलचस्प होगा।