किराएदारी कानून: किराएदारों के अधिकारों की सुरक्षा

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किराएदारी कानून का महत्व


किराएदारी कानून: यह कानून किराएदारों के अधिकारों को सशक्त बनाता है और मकान मालिकों पर नियंत्रण स्थापित करता है। किराएदार इन अधिकारों की जानकारी के साथ सुरक्षित रह सकते हैं और विवादों से बच सकते हैं।


किराएदार और मकान मालिक के अधिकार

किराएदार अक्सर मकान मालिकों के दबाव का सामना करते हैं। इसलिए, दोनों पक्षों के लिए इन अधिकारों को जानना आवश्यक है।


किराया नियंत्रण अधिनियम का परिचय:


1948 में लागू किया गया केंद्रीय किराया नियंत्रण अधिनियम मकान मालिकों और किराएदारों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था। यह सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे का शोषण न करें। हालांकि, हर राज्य का किराया नियंत्रण अधिनियम अलग हो सकता है।


किराएदार के अधिकार

1. किराया समझौता:


किराया नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, किराए पर कमरा लेते समय मकान मालिक से लिखित समझौता पत्र लेना आवश्यक है। यह भविष्य में विवादों को सुलझाने में मदद करेगा।


2. बेदखली का अधिकार:


किराएदार को बिना उचित कारण के बेदखल नहीं किया जा सकता। यदि किराएदार दो महीने से किराया नहीं चुका रहा है या संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहा है, तो ही बेदखली की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।


3. मूलभूत सुविधाएं:


किराएदार को बिजली, पानी और पार्किंग जैसी सुविधाएं मिलनी चाहिए। यदि मकान मालिक इन सुविधाओं को रोकता है, तो किराएदार शिकायत कर सकता है।


4. किराया बढ़ाने की प्रक्रिया:


यदि मकान मालिक किराया बढ़ाना चाहता है, तो उसे तीन महीने पहले सूचित करना होगा। अन्यथा, वह मनमाना किराया नहीं ले सकता।


5. रखरखाव का खर्च:


किराएदार के रहने के दौरान मकान का रखरखाव मकान मालिक की जिम्मेदारी है। हालांकि, इस पर बातचीत की जा सकती है।