हरियाणा में पराली जलाने की समस्या: झज्जर की घटना पर चिंता

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पराली जलाने की समस्या का पुनरुत्थान

हरियाणा में गेहूं की कटाई के बाद खेतों में पराली जलाने की समस्या एक बार फिर चर्चा का विषय बन गई है। झज्जर जिले में एक खेत में पराली जलाने का एक वीडियो सामने आया है, जो पर्यावरण और किसानों के लिए चिंता का कारण बन गया है। यह घटना यह दर्शाती है कि सख्त नियमों के बावजूद पराली जलाने की प्रथा समाप्त नहीं हुई है। आइए, इस मुद्दे को सरल हिंदी में समझते हैं.


झज्जर में पराली जलाने की घटना

झज्जर के एक गाँव में गेहूं की फसल कटने के बाद खेत में पराली जलाने का मामला सामने आया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में आग की लपटें और धुआँ आसमान में फैलते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह घटना स्थानीय निवासियों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के लिए चिंताजनक है। पराली जलाने से न केवल वायु प्रदूषण होता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित होती है.


हरियाणा में पराली जलाने की स्थिति

हरियाणा में हर साल गेहूं और धान की कटाई के बाद पराली जलाने की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।

2024 में धान कटाई के सीजन में 15 सितंबर से 18 नवंबर के बीच 1,118 स्थानों पर पराली जलाने की घटनाएँ दर्ज की गईं। हालांकि, यह संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 33% कम थी, फिर भी समस्या बनी हुई है। झज्जर, कैथल, करनाल और अंबाला जैसे जिलों में यह प्रथा अधिक देखी जाती है। सरकार ने इसे रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन कुछ किसान अभी भी पराली जलाना आसान और सस्ता मानते हैं.


पर्यावरण पर प्रभाव

पराली जलाने से निकलने वाला धुआँ हवा को जहरीला बनाता है।

दिल्ली और हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में अक्टूबर-नवंबर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है। यह धुआँ साँस की बीमारियों, आँखों में जलन और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। इसके अलावा, आग से मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे कृषि उत्पादन पर असर पड़ता है। झज्जर में हुई इस घटना ने एक बार फिर इस समस्या की गंभीरता को उजागर किया है.


सरकार के प्रयास और नियम

हरियाणा सरकार ने पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए सख्त नियम बनाए हैं। 2024 में कृषि विभाग ने आदेश जारी किया था कि पराली जलाने वालों पर FIR दर्ज होगी और उनकी फसल को दो सीजन तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर नहीं खरीदा जाएगा। इसके अलावा, पराली जलाने वालों पर 30,000 रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। सरकार ने किसानों को पराली प्रबंधन के लिए सस्ती मशीनें और बायो-डीकंपोजर जैसे उपाय उपलब्ध कराए हैं। फिर भी, झज्जर जैसे क्षेत्रों में नियमों का पालन पूरी तरह नहीं हो रहा.


किसानों की मजबूरी

कई किसान पराली जलाने को मजबूरी बताते हैं। गेहूं की कटाई के बाद अगली फसल की बुवाई के लिए समय कम होता है। पराली को मशीनों से हटाने में लागत और समय दोनों लगते हैं। छोटे किसानों के लिए यह खर्च वहन करना मुश्किल होता है। झज्जर के किसानों का कहना है कि सरकार की सब्सिडी और मशीनें हर किसान तक नहीं पहुँच पा रही हैं। इसलिए, कुछ लोग पराली जलाना ही आसान रास्ता मानते हैं.


समाधान की दिशा में कदम

पराली जलाने की समस्या को खत्म करने के लिए सरकार और किसानों को मिलकर काम करना होगा। सरकार को चाहिए कि पराली प्रबंधन की मशीनों पर सब्सिडी बढ़ाए और इन्हें हर गाँव तक पहुँचाए। इसके साथ ही, जागरूकता अभियान चलाकर किसानों को पराली जलाने के नुकसान और वैकल्पिक तरीकों के बारे में बताया जाए। झज्जर जैसे क्षेत्रों में स्थानीय प्रशासन को और सख्ती से निगरानी करनी चाहिए। साथ ही, पराली से बायोगैस और खाद बनाने जैसे विकल्पों को बढ़ावा देना चाहिए.

झज्जर में पराली जलाने की यह घटना हमें पर्यावरण संरक्षण की जरूरत याद दिलाती है। पराली जलाना न केवल कानूनी अपराध है, बल्कि यह हमारी सेहत, मिट्टी और हवा के लिए भी हानिकारक है। सरकार, किसान और समाज को मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान ढूंढना होगा। अगर हम समय रहते कदम नहीं उठाएंगे, तो आने वाली पीढ़ियों को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.