सावन में क्यों वर्जित है प्याज-लहसुन का सेवन? एक क्लिक में जाने इसके पीछे छिपे धार्मिक और आयुर्वेदिक रहस्य

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सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई से शुरू हो गया है। यह महीना भगवान शिव को समर्पित है और इस दौरान भक्त व्रत, पूजा और साधना में लीन रहते हैं। इस महीने में प्याज और लहसुन जैसे तामसिक भोजन से बचना चाहिए। इसके पीछे आयुर्वेदिक और धार्मिक दोनों कारण हैं, जो शास्त्रों और आयुर्वेदिक ग्रंथों में मिलते हैं। हिंदू धर्म में सावन का महीना भक्ति और पवित्रता का प्रतीक है। इस दौरान भक्त अपने मन, तन और आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। प्याज और लहसुन को तामसिक भोजन माना जाता है, जो मन को उत्तेजित करता है और आध्यात्मिक शांति में बाधा डाल सकता है। वहीं, आयुर्वेद में भोजन को तीन गुणों में विभाजित किया गया है। इसमें सात्विक, राजसिक और तामसिक भोजन शामिल हैं। प्याज और लहसुन को राजसिक और तामसिक माना जाता है, जो मन और शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। सावन में इनसे परहेज करने के पीछे कई आयुर्वेदिक कारण हैं।

धार्मिक शास्त्र क्या कहते हैं?
मनु स्मृति, अध्याय 5, श्लोक 5 में कहा गया है कि प्याज और लहसुन जैसे कुछ खाद्य पदार्थ ब्राह्मणों और सात्विक जीवन जीने वालों के लिए वर्जित हैं, क्योंकि ये तामसिक और राजसिक गुणों को बढ़ाते हैं।लशुणां गृंजनं चैव पलाण्डुं कवकं तथा। अभक्ष्यं ब्राह्मणानां च मानसं यच्च विदाहति।अर्थात् लहसुन, प्याज, मशरूम और मांस आदि ब्राह्मणों के लिए अभक्ष्य (खाने योग्य नहीं) हैं, क्योंकि ये शरीर और मन को उत्तेजित करते हैं।

इसके साथ ही, पद्म पुराण में धार्मिक अनुष्ठानों और व्रत के दौरान तामसिक भोजन से परहेज करने का भी निर्देश दिया गया है। सावन में शिव पूजा के लिए केवल सात्विक भोजन ही खाना चाहिए। इससे मन शांत और एकाग्र रहता है।शिव पुराण में भगवान शिव को सात्विक और शुद्ध भोजन अर्पित करने का विधान बताया गया है। प्याज और लहसुन को तामसिक माना जाता है, इसलिए इन्हें भगवान शिव को अर्पित नहीं किया जाता है और न ही व्रत या सावन के महीने में खाया जाता है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्याज और लहसुन आसुरी प्रवृत्तियों को बढ़ाते हैं। इसलिए, शुभ और पवित्र अवसरों पर इनका सेवन नहीं करना चाहिए।

आयुर्वेदिक ग्रंथ क्या कहते हैं?
चरक संहिता के सूत्रस्थान 27 में भोजन के गुणों और उनके प्रभावों का वर्णन किया गया है। प्याज और लहसुन उष्ण (गर्म) प्रकृति के माने जाते हैं, जो पित्त दोष को बढ़ा सकते हैं। सावन वर्षा ऋतु है, जिसमें पित्त और कफ दोष असंतुलित हो सकते हैं। प्याज और लहसुन का सेवन न करने की सलाह दी गई है।

उष्ण तीक्ष्ण विदाहि च लशुं पलान्दु च।
इसका अर्थ है कि लहसुन और प्याज गर्म और तीखे होते हैं, जो शरीर में जलन और असंतुलन पैदा कर सकते हैं।इसके साथ ही, सुश्रुत संहिता में भी प्याज और लहसुन को भारी और उत्तेजक भोजन बताया गया है। आयुर्वेद के अनुसार, ये पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं और मन को अशांत कर सकते हैं, जो ध्यान और साधना के लिए अच्छा नहीं है।आयुर्वेदिक ग्रंथ भावप्रकाश निघंटु में प्याज और लहसुन को औषधीय गुणों के साथ-साथ राजसिक और तामसिक गुणों से युक्त बताया गया है। ये शरीर में गर्मी बढ़ाते हैं और यौन इच्छा को उत्तेजित कर सकते हैं, जो आध्यात्मिक साधना के लिए उपयुक्त नहीं है।

पित्त दोष असंतुलित हो जाता है
सावन में बारिश के कारण वातावरण में नमी बढ़ जाती है, जिससे पाचन शक्ति कमजोर हो सकती है। प्याज और लहसुन की गर्म प्रकृति पित्त को बढ़ाती है, जिससे अम्लपित्त (एसिडिटी) और सीने में जलन जैसी पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, राजसिक और तामसिक भोजन मन को अशांत और बेचैन बनाते हैं। सावन में ध्यान और भक्ति के लिए शांत और सात्विक मन की आवश्यकता होती है, इसलिए इनसे परहेज किया जाता है।