"ना कोई स्नान, ना होती पूजा इस नदी का पानी है साफ पर इसके पास जाने से भी डरते हैं लोग, 2 मिनट के वीडियो में जानिए क्यों?

भारत में नदियों को बहुत पवित्र माना जाता है। कई नदियों को मां का दर्जा दिया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इन नदियों में स्नान करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। लेकिन भारत के मध्य प्रदेश राज्य में एक ऐसी नदी है, जिसमें स्नान करना अशुभ माना जाता है। इतना ही नहीं, इस नदी की पूजा अन्य नदियों की तरह नहीं की जाती है....
चंबल उद्गम
इंदौर जिले के महू से निकलने वाली और 965 किलोमीटर तक राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बहने वाली चंबल नदी कई रहस्यों से भरी हुई है। इस नदी को लेकर कई तरह की कहानियां कही जाती हैं। यहां तक कि चंबल नदी के किनारे रहने वाले लोग भी इस नदी में नहाना पसंद नहीं करते हैं।
शापित नदी
कहानियों में चंबल नदी को शापित नदी भी कहा जाता है। एक कहानी के अनुसार द्रौपदी ने नदी को शाप दिया था। कहा जाता है कि महाभारत काल में चंबल के किनारे कौरवों और पांडवों के बीच जुआ खेला गया था। इसमें पांडव द्रौपदी को दुर्योधन से हार गए थे। इस घटना से आहत होकर द्रौपदी ने श्राप दिया कि चंबल की पूजा नहीं करनी चाहिए।
खून से बनी
शास्त्रों के अनुसार, इस नदी की उत्पत्ति जानवरों के खून से हुई मानी जाती है। प्रचलित कथा यह है कि राजा रंतिदेव ने हजारों यज्ञ और अनुष्ठान किए थे। इन यज्ञों और अनुष्ठानों में कई मासूम जानवरों की बलि दी गई थी। इन जानवरों के खून और बची हुई पूजा सामग्री से चर्मण्वती यानी चंबल नदी की उत्पत्ति मानी गई।
प्राचीन नाम
चंबल नदी का प्राचीन नाम चर्मण्वती बताया जाता है। जिसका अर्थ है वह नदी जिसके किनारे चमड़ा सुखाया जाता है। समय के साथ यह नदी चर्मण नदी के नाम से प्रसिद्ध हो गई और इसका नाम चर्मण्वती रखा गया। अब इसे चंबल कहा जाता है।
विद्रोहियों की पनाहगाह
राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीहड़ों से आच्छादित भाग को चंबल क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। यह सुनसान इलाका दशकों से डाकुओं और बागियों की पनाहगाह रहा है। कहा जाता है कि डाकू अक्सर लोगों की हत्या करने के बाद शवों को चंबल में फेंक देते थे।
क्यों नहीं होती इसकी पूजा?
चंबल नदी की गिनती देश की सबसे साफ नदियों में होती है। इसके बावजूद चंबल को पवित्र नहीं माना जाता। नदियों को जीवनदायिनी भी कहा जाता है, क्योंकि इनका पानी लोगों की प्यास बुझाता है और खेतों की सिंचाई करता है। लेकिन आज भी लोग दूसरी पवित्र नदियों की तरह चंबल की पूजा नहीं करते।
क्यों नहीं करते स्नान?
लोग इस नदी में नहाने से बचते हैं। हालांकि, यह पूरी तरह सच नहीं है। नदी के किनारे रहने वाले लोग कई सालों से इस नदी में नहाते आ रहे हैं। हां, लेकिन इसमें नहाने का चलन नहीं है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि नदी में मगरमच्छों की संख्या बहुत ज्यादा है। जिससे जान को खतरा रहता है।
बीहड़ों का इलाका
पहले के समय में चंबल इलाकों में लोगों की चंबल नदी तक पहुंच आसान नहीं थी। एक तो गहरी और ऊंची बीहड़ों में जाने का कोई रास्ता नहीं था। दूसरे, डकैतों की वजह से लोग सुनसान नदी किनारे जाने से बचते थे। इसलिए यहां नहाने की प्रथा शुरू नहीं हुई।
नदी का विकराल रूप
चंबल नदी के आसपास के अधिकांश इलाकों में मीलों तक खड्ड फैले हुए हैं। पहले इन खड्डों में खेती करना आसान नहीं था। इसके अलावा 12 महीने बहने वाली चंबल बरसात के मौसम में विकराल रूप ले लेती है, जिसका पानी कई किलोमीटर तक फैल जाता है।
यमुना से मिलन
राजस्थान के कोटा जिले को पार करने के बाद चंबल नदी सवाई माधोपुर और धौलपुर जिलों की सीमा से होकर बहती है। फिर अंत में यह नदी उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है और 32 किलोमीटर तक बहती है। इटावा के पास यह नदी यमुना नदी में मिल जाती है। यमुना देश की दूसरी सबसे पूजनीय नदी है।