'डरें हमारे दुश्मन…सरहद के सिपाही नहीं अब गांव भी लड़ने को हैं तैयार, सरहद के इस गांव से उठी जंग की हुंकार
पाकिस्तान के साथ चल रही तनातनी के चलते अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे गांवों में अब किसी तरह का डर नहीं है। पुरुषों के साथ ग्रामीण महिलाएं भी अब अग्रिम मोर्चे पर दुश्मन से लोहा लेने को तैयार हैं। गांवों के आंगन और रसोई में महिलाओं के समूह में यह भावना साफ दिखाई दे रही है। पत्रिका संवाददाता सीमावर्ती गांव गजेवाला वाला पहुंचा। सुबह के 10 बज रहे थे, इसलिए ज्यादातर घरों में महिलाएं खाना बनाने में व्यस्त मिलीं।
गांव के एक घर के आंगन में पहुंचे तो रसोई में रोटी बना रही एक महिला के चारों ओर महिलाओं का समूह बैठा मिला। पड़ोसी देश के साथ तनाव की स्थिति के बारे में बात करते ही महिलाएं एक स्वर में बोल उठीं। हमें अपनी सेना पर पूरा भरोसा है। युद्ध से हमारे दुश्मनों को डरना चाहिए। हमारे सैनिक भाइयों के लिए हमारी रसोई हमेशा खुली है। जब सेना यहां आकर मोर्चा संभालेगी, तो हम मोर्चे पर उन्हें भोजन, दूध, दही और घी पहुंचाएंगे। हमारे परिवार 1965 और 1971 के युद्ध में भी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था करते थे।
सीमा सुरक्षित है, हम भी सुरक्षित हैं
महिला समा और अनीता ने कहा, जब तक हमारी सीमा सैनिकों के हाथों में है, हम सुरक्षित हैं। सीमा पर रहने में डर के सवाल पर समदा और नारायणी देवी ने कहा कि सीमा सबसे सुरक्षित जगह है। हमारी सेना के पास एयर डिफेंस सिस्टम है, इसलिए सीमा पार से हमारे घर तक कुछ नहीं पहुंच पाएगा। अगर हमें इस 50 डिग्री तापमान और तूफान से डर नहीं लगता, तो पाकिस्तान से क्यों डरना चाहिए।