बड़ी देर भई नंदलाला भजन, श्रीकृष्ण भक्ति में डूबा अद्भुत आरती गीत
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"बड़ी देर भई नंदलाला" एक अनुपम भजन है जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति को दर्शाता है। इसमें ग्वाल-बाल, गोपियां और भक्त नंदलाला की राह देखते हैं और मुरली की धुन सुनने की लालसा रखते हैं। यह भजन न केवल कृष्ण की लीला का स्मरण कराता है, बल्कि धरती की रक्षा हेतु श्रीकृष्ण से प्रार्थना भी करता है।
हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम, भक्ति और करुणा का स्वरूप माना जाता है। "बड़ी देर भई नंदलाला" भजन में गोपियां और ग्वाल-बाल अपने प्रिय नंदलाला की प्रतीक्षा करते दिखाई देते हैं। वे उनकी मुरली की मधुर ध्वनि को सुनने को तरसते हैं और भक्त भाव से पुकारते हैं। यह भजन भारतीय संस्कृति में कृष्ण भक्ति का अद्भुत उदाहरण है।
Lyrics – बड़ी देर भई नंदलाला
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला
ग्वाल बाल एक एक से पूछे
ग्वाल बाल एक एक से पूछे
कहां है मुरली वाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला।
कोई ना जाए कुंज गलिन में
तुझ बिन कलियां चुनने को
तरस रहे हैं यमुना के तट
धुन मुरली की सुनने को
अब तो दरस दिखा दे नटखट
क्यों दुविधा में डाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला।
संकट में हैं आज वो धरती
जिस पर तुने जनम लिया
पूरा करदे आज वचन वो
गीता में जो तुने दिया
कोई नहीं है तुझ बिन मोहन
भारत का रखवाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला।
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला
ग्वाल बाल एक एक से पूछे
ग्वाल बाल एक एक से पूछे
कहां है मुरली वाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला।
कृष्ण भक्ति में लोकधुन और संस्कृति का मेल
"बड़ी देर भई नंदलाला" केवल एक भजन नहीं, बल्कि भारतीय लोकधुन और संस्कृति का अद्भुत संगम है। इसमें ग्वाल-बाल और गोपियों के संवादों के माध्यम से ग्रामीण जीवन की सादगी और प्रेम झलकता है। इस भजन को सुनकर ऐसा लगता है मानो पूरा ब्रज धाम श्रीकृष्ण की मुरली की प्रतिध्वनि से गूंज रहा हो।
भजन का भावार्थ
यह भजन सिर्फ कृष्ण के रूप और लीला का वर्णन नहीं करता, बल्कि उनके वचनों की याद दिलाता है। इसमें दिखाया गया है कि ब्रजवासी और भक्त, मुरली वाले श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए बेचैन हैं। अंत में धरती की रक्षा की प्रार्थना करते हुए यह भजन कृष्ण के "गीता में दिए वचनों" को पूरा करने का आह्वान करता है।
हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम, भक्ति और करुणा का स्वरूप माना जाता है। "बड़ी देर भई नंदलाला" भजन में गोपियां और ग्वाल-बाल अपने प्रिय नंदलाला की प्रतीक्षा करते दिखाई देते हैं। वे उनकी मुरली की मधुर ध्वनि को सुनने को तरसते हैं और भक्त भाव से पुकारते हैं। यह भजन भारतीय संस्कृति में कृष्ण भक्ति का अद्भुत उदाहरण है।
Lyrics – बड़ी देर भई नंदलाला
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला
ग्वाल बाल एक एक से पूछे
ग्वाल बाल एक एक से पूछे
कहां है मुरली वाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला।
कोई ना जाए कुंज गलिन में
तुझ बिन कलियां चुनने को
तरस रहे हैं यमुना के तट
धुन मुरली की सुनने को
अब तो दरस दिखा दे नटखट
क्यों दुविधा में डाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला।
संकट में हैं आज वो धरती
जिस पर तुने जनम लिया
पूरा करदे आज वचन वो
गीता में जो तुने दिया
कोई नहीं है तुझ बिन मोहन
भारत का रखवाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला।
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला
ग्वाल बाल एक एक से पूछे
ग्वाल बाल एक एक से पूछे
कहां है मुरली वाला रे
बड़ी देर भई नंदलाला
तेरी राह तके बृज बाला।
कृष्ण भक्ति में लोकधुन और संस्कृति का मेल
"बड़ी देर भई नंदलाला" केवल एक भजन नहीं, बल्कि भारतीय लोकधुन और संस्कृति का अद्भुत संगम है। इसमें ग्वाल-बाल और गोपियों के संवादों के माध्यम से ग्रामीण जीवन की सादगी और प्रेम झलकता है। इस भजन को सुनकर ऐसा लगता है मानो पूरा ब्रज धाम श्रीकृष्ण की मुरली की प्रतिध्वनि से गूंज रहा हो। भजन का भावार्थ
यह भजन सिर्फ कृष्ण के रूप और लीला का वर्णन नहीं करता, बल्कि उनके वचनों की याद दिलाता है। इसमें दिखाया गया है कि ब्रजवासी और भक्त, मुरली वाले श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए बेचैन हैं। अंत में धरती की रक्षा की प्रार्थना करते हुए यह भजन कृष्ण के "गीता में दिए वचनों" को पूरा करने का आह्वान करता है।
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