रोजाना करें श्री कृष्ण चालीसा का पाठ: पाएं मानसिक शांति और कृपा
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हिंदू धर्म में, भगवान कृष्ण की भक्ति और कृपा पाने के लिए श्री कृष्ण चालीसा का पाठ अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस चालीसा में भगवान कृष्ण के विभिन्न लीलाओं और महिमा का सुंदर वर्णन किया गया है। मान्यता है कि इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। "चालीसा का पाठ करने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं।" यह चालीसा भक्तों के लिए मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतोष का एक साधन है।
जय यदुनन्दन जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन। जय यशोदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे। जय नटनागर नाग नथड्या, कृष्ण कन्हैया धेनु चरड्या। पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो।
वंशी मधुर अधर धरि टेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी। आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो । गोल कपोल चिबुक अरुणारे, मुस्कान, मोहिनी डारे। मृदु रंजित राजिव नयन विशाला, मुकुट बैजन्ती माला। मोर कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे। नील जलज सुन्दर तनु सोहै, छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै।
मस्तक तिलक अलक घुंघराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले। करि पय पान, पूतनहिं तारयो, अका बका कागा सुर मारयो। मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भये शीतल, लखितहिं नन्दल लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायो ।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख मुंह चौदह भुवन दिखाई। दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मंगायो। नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हैं। करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करि अभिलाषा। केतिक महा असुर संहारियो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो।
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहं राज दिलाई। महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो। भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दस सहस कुमारी। दें भीमहिं तृणचीर संहारा, जरासिंधु राक्षस कहं मारा।
असुरे बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो । दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मूठि' मुख डारयो। प्रेम के साग विदुर घर मांगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे। लखी प्रेमकी महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी मारथ के पारध रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थांके।
निज गीता के ज्ञान सुनाये, मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजा कर ताली। भक्तन हृदय सुधा वर्षाये। राणा भेजा सांप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी । निज माया तुंम विधिर्हि दिखायो, उरते संशय सकल मिटायो। व शत निन्दा करि तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला। तवहिं द्रोपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई। रितहि वसन बने नन्दलाला, बढ़े चीर भये अरि मुंह काला। नस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भंवर बचावत नइया।
हुन्दरदास आस उर धारी, दद्यादृष्टि कीजै बनवारी। हाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहुबेगि अपराध हमारो। बोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जय।
॥ दोहा ॥ यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करे उर धारि। अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहे पदारथ चारि ॥
यह चालीसा केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि भगवान कृष्ण के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं, बल्कि जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। इस चालीसा के माध्यम से भक्त भगवान कृष्ण की दया, प्रेम और वीरता को महसूस कर सकता है, जिससे जीवन में सकारात्मकता और खुशी का संचार होता है।
श्री कृष्ण चालीसा के बोल
जय यदुनन्दन जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन। जय यशोदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे। जय नटनागर नाग नथड्या, कृष्ण कन्हैया धेनु चरड्या। पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो।
वंशी मधुर अधर धरि टेरी, होवे पूर्ण विनय यह मेरी। आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो । गोल कपोल चिबुक अरुणारे, मुस्कान, मोहिनी डारे। मृदु रंजित राजिव नयन विशाला, मुकुट बैजन्ती माला। मोर कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे। नील जलज सुन्दर तनु सोहै, छवि लखि सुर नर मुनि मन मोहै।
मस्तक तिलक अलक घुंघराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले। करि पय पान, पूतनहिं तारयो, अका बका कागा सुर मारयो। मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भये शीतल, लखितहिं नन्दल लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायो ।
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख मुंह चौदह भुवन दिखाई। दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मंगायो। नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दे निर्भय कीन्हैं। करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करि अभिलाषा। केतिक महा असुर संहारियो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो।
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मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहं राज दिलाई। महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो। भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दस सहस कुमारी। दें भीमहिं तृणचीर संहारा, जरासिंधु राक्षस कहं मारा।
असुरे बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो । दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मूठि' मुख डारयो। प्रेम के साग विदुर घर मांगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे। लखी प्रेमकी महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी मारथ के पारध रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल थांके।
निज गीता के ज्ञान सुनाये, मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजा कर ताली। भक्तन हृदय सुधा वर्षाये। राणा भेजा सांप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी । निज माया तुंम विधिर्हि दिखायो, उरते संशय सकल मिटायो। व शत निन्दा करि तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला। तवहिं द्रोपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई। रितहि वसन बने नन्दलाला, बढ़े चीर भये अरि मुंह काला। नस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भंवर बचावत नइया।
हुन्दरदास आस उर धारी, दद्यादृष्टि कीजै बनवारी। हाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहुबेगि अपराध हमारो। बोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जय।
॥ दोहा ॥ यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करे उर धारि। अष्ट सिद्धि नवनिद्धि फल, लहे पदारथ चारि ॥
यह चालीसा केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि भगवान कृष्ण के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं, बल्कि जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। इस चालीसा के माध्यम से भक्त भगवान कृष्ण की दया, प्रेम और वीरता को महसूस कर सकता है, जिससे जीवन में सकारात्मकता और खुशी का संचार होता है।