RBI का सख्त कदम: महाराष्ट्र के इस सहकारी बैंक का लाइसेंस रद्द, ग्राहकों के अकाउंट फ्रीज, पैसे निकालना मुश्किल
महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित एक प्रमुख महिला सहकारी बैंक पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने कड़ा फैसला ले लिया है। बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ती अनियमितताओं के बीच आरबीआई ने जीजामाता महिला सहकारी बैंक के संचालन को पूरी तरह रोक दिया है। इस कदम से हजारों ग्राहकों की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि उनके बैंक खाते अब सीज हो चुके हैं। वे अपने ही जमा किए हुए धन को आसानी से एक्सेस नहीं कर पा रहे। यह घटना सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिरता पर सवाल खड़े करती है और आम लोगों को सतर्क रहने की याद दिलाती है।
आरबीआई ने हाल ही में जारी अधिसूचना के तहत जीजामाता महिला सहकारी बैंक का बैंकिंग लाइसेंस समाप्त कर दिया। यह आदेश 7 अक्टूबर 2025 से लागू हो गया, जिसके बाद बैक का कोई भी वित्तीय लेन-देन संभव नहीं रहा। दिलचस्प बात यह है कि यह बैंक पहली बार नहीं बंद हो रहा। साल 2016 में जून महीने में इसका लाइसेंस पहले भी रद्द हो चुका था, लेकिन 2019 के अक्टूबर में इसे फिर से बहाल किया गया था। बहाली के बावजूद बैंक की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले सकी। वित्त वर्ष 2013-14 से चली आ रही फोरेंसिक ऑडिट प्रक्रिया को बैंक प्रबंधन ने पूरा सहयोग नहीं दिया, जिससे जांच अधर में लटक गई। अंततः वित्तीय समीक्षा के बाद आरबीआई को मजबूरन यह कठोर निर्णय लेना पड़ा।
आरबीआई के फैसले की जड़ में बैंक की खराब वित्तीय सेहत है। बैंक के पास न तो पर्याप्त पूंजी थी और न ही भविष्य में लाभ कमाने की कोई ठोस संभावना नजर आ रही थी। सबसे बड़ी समस्या यह उभरकर आई कि बैंक अपने मौजूदा जमाकर्ताओं को उनके पैसे लौटाने की स्थिति में ही नहीं था। अगर संचालन को ऐसे ही जारी रखा जाता, तो यह ग्राहकों के हितों के लिए जोखिम भरा साबित होता। आरबीआई का मानना है कि ऐसी संस्थाओं को तत्काल बंद करना ही सुरक्षित विकल्प है, ताकि बड़े वित्तीय संकट से बचा जा सके। यह कदम सहकारी बैंकों के लिए एक सबक है कि पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन कितना जरूरी है।
इस बैंक बंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित वे हजारों ग्राहक हुए हैं, जिनके खाते अब पूरी तरह फ्रीज हो चुके हैं। न तो वे पैसे जमा कर सकते हैं और न ही निकाल सकते हैं। दैनिक जीवन में यह समस्या कितनी गंभीर हो सकती है, इसका अंदाजा लगाना आसान है—खासकर उन महिलाओं के लिए जो इस बैंक पर निर्भर थीं। बैंक का कारोबार ठप होने से सामान्य सेवाएं जैसे चेकबुक जारी करना, लोन चुकाना या ट्रांसफर सब रुक गए हैं। हालांकि, आरबीआई ने एक राहत की व्यवस्था की है। बैंकिंग जांच पूरी होने तक ग्राहक जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) के दायरे में अपनी जमा राशि का अधिकतम 5 लाख रुपये तक निकाल सकते हैं। अच्छी खबर यह है कि सितंबर 2024 तक बैंक की कुल जमा राशि का 94.41 प्रतिशत हिस्सा डीआईसीजीसी कवरेज के अंतर्गत आता है, जिससे अधिकांश ग्राहकों का धन सुरक्षित माना जा रहा है। फिर भी, पूर्ण भुगतान में देरी हो सकती है, इसलिए प्रभावित लोगों को तुरंत आरबीआई या डीआईसीजीसी से संपर्क करना चाहिए।
भारत में सहकारी बैंकों की संख्या हजारों में है, लेकिन कई पर वित्तीय अनियमितताओं का साया मंडराता रहता है। जीजामाता बैंक का मामला अकेला नहीं है; हाल के वर्षों में कई अन्य सहकारी संस्थाओं पर भी आरबीआई ने ऐसी कार्रवाई की है। यह घटना बताती है कि छोटे बैंकों को बड़े वित्तीय मानकों का पालन करना होगा। ग्राहकों के लिए सलाह है कि वे हमेशा बैंक की वित्तीय रिपोर्ट चेक करें और डीआईसीजीसी कवरेज वाली संस्थाओं को प्राथमिकता दें। सरकार और आरबीआई द्वारा चलाई जा रही डिजिटल बैंकिंग पहलें इस दिशा में मददगार साबित हो रही हैं, जहां पारदर्शिता बढ़ रही है।
क्यों हुआ बैंक बंद जाने क्या हुआ और कब?
आरबीआई ने हाल ही में जारी अधिसूचना के तहत जीजामाता महिला सहकारी बैंक का बैंकिंग लाइसेंस समाप्त कर दिया। यह आदेश 7 अक्टूबर 2025 से लागू हो गया, जिसके बाद बैक का कोई भी वित्तीय लेन-देन संभव नहीं रहा। दिलचस्प बात यह है कि यह बैंक पहली बार नहीं बंद हो रहा। साल 2016 में जून महीने में इसका लाइसेंस पहले भी रद्द हो चुका था, लेकिन 2019 के अक्टूबर में इसे फिर से बहाल किया गया था। बहाली के बावजूद बैंक की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले सकी। वित्त वर्ष 2013-14 से चली आ रही फोरेंसिक ऑडिट प्रक्रिया को बैंक प्रबंधन ने पूरा सहयोग नहीं दिया, जिससे जांच अधर में लटक गई। अंततः वित्तीय समीक्षा के बाद आरबीआई को मजबूरन यह कठोर निर्णय लेना पड़ा।
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लाइसेंस कैंसल करने के पीछे के प्रमुख कारण
आरबीआई के फैसले की जड़ में बैंक की खराब वित्तीय सेहत है। बैंक के पास न तो पर्याप्त पूंजी थी और न ही भविष्य में लाभ कमाने की कोई ठोस संभावना नजर आ रही थी। सबसे बड़ी समस्या यह उभरकर आई कि बैंक अपने मौजूदा जमाकर्ताओं को उनके पैसे लौटाने की स्थिति में ही नहीं था। अगर संचालन को ऐसे ही जारी रखा जाता, तो यह ग्राहकों के हितों के लिए जोखिम भरा साबित होता। आरबीआई का मानना है कि ऐसी संस्थाओं को तत्काल बंद करना ही सुरक्षित विकल्प है, ताकि बड़े वित्तीय संकट से बचा जा सके। यह कदम सहकारी बैंकों के लिए एक सबक है कि पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन कितना जरूरी है।
ग्राहकों पर पड़ा सीधा असर: क्या करें प्रभावित लोग?
इस बैंक बंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित वे हजारों ग्राहक हुए हैं, जिनके खाते अब पूरी तरह फ्रीज हो चुके हैं। न तो वे पैसे जमा कर सकते हैं और न ही निकाल सकते हैं। दैनिक जीवन में यह समस्या कितनी गंभीर हो सकती है, इसका अंदाजा लगाना आसान है—खासकर उन महिलाओं के लिए जो इस बैंक पर निर्भर थीं। बैंक का कारोबार ठप होने से सामान्य सेवाएं जैसे चेकबुक जारी करना, लोन चुकाना या ट्रांसफर सब रुक गए हैं। हालांकि, आरबीआई ने एक राहत की व्यवस्था की है। बैंकिंग जांच पूरी होने तक ग्राहक जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) के दायरे में अपनी जमा राशि का अधिकतम 5 लाख रुपये तक निकाल सकते हैं। अच्छी खबर यह है कि सितंबर 2024 तक बैंक की कुल जमा राशि का 94.41 प्रतिशत हिस्सा डीआईसीजीसी कवरेज के अंतर्गत आता है, जिससे अधिकांश ग्राहकों का धन सुरक्षित माना जा रहा है। फिर भी, पूर्ण भुगतान में देरी हो सकती है, इसलिए प्रभावित लोगों को तुरंत आरबीआई या डीआईसीजीसी से संपर्क करना चाहिए।
सहकारी बैंकों की चुनौतियां
भारत में सहकारी बैंकों की संख्या हजारों में है, लेकिन कई पर वित्तीय अनियमितताओं का साया मंडराता रहता है। जीजामाता बैंक का मामला अकेला नहीं है; हाल के वर्षों में कई अन्य सहकारी संस्थाओं पर भी आरबीआई ने ऐसी कार्रवाई की है। यह घटना बताती है कि छोटे बैंकों को बड़े वित्तीय मानकों का पालन करना होगा। ग्राहकों के लिए सलाह है कि वे हमेशा बैंक की वित्तीय रिपोर्ट चेक करें और डीआईसीजीसी कवरेज वाली संस्थाओं को प्राथमिकता दें। सरकार और आरबीआई द्वारा चलाई जा रही डिजिटल बैंकिंग पहलें इस दिशा में मददगार साबित हो रही हैं, जहां पारदर्शिता बढ़ रही है।