दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर नहीं दिखेंगे आवारा कुत्ते, पर अपराध रोकने के लिए क्या है सरकार की योजना?

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दिल्ली, जिसे दिल वालों का शहर माना जाता है, आज उसी शहर की सरकार के दिल में इन कुत्तों के लिए कोई जगह नहीं है। इस फैसले को निवासी कल्याण संघ (RWA) ने खुशी-खुशी स्वीकार किया है, जबकि पशु कार्यकर्ताओं ने इसका आक्रोश में विरोध किया है।

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सरकार की नाकामयाब कोशिश

दिल्ली, जहाँ हर दिन अपराध के बादलों में घिरी रहती है, अब उसी दिल्ली में अपराधियों को भगाने के बजाय कुत्तों को भगाया जा रहा है। सरकार ने इस तरह की कोशिश कई बार की है, लेकिन हर बार असफल रही है। इस बार भी यही नाकामयाब प्रयास किया जा रहा है। दिल्ली में लगभग 8 लाख लावारिस कुत्ते हैं। सरकार के पास इन कुत्तों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, और न ही नए शेल्टर बनाने के लिए पर्याप्त फंड उपलब्ध है। पहले से मौजूद शेल्टर अपनी क्षमता से अधिक काम कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सरकार बिना किसी व्यवस्था के यह सख्त कदम उठा रही है।

क्यों कर रहे हैं कुत्ते इंसानों पर हमला?

कुत्तों को हमेशा से इंसानों का वफादार और सच्चा दोस्त माना गया है, लेकिन कुछ कारणों से हाल के वर्षों में उनके व्यवहार में बदलाव देखा गया है। कुत्ते जिस जगह रहते हैं, उसे अपना घर मान लेते हैं और उस इलाके से जुड़ जाते हैं। इसलिए किसी अनजान व्यक्ति के आने पर वे हमला कर सकते हैं। कभी-कभी खाना न मिलने या मानसिक तनाव के कारण भी वे चिड़चिड़े होकर हमला कर देते हैं।


दिल्ली कुत्ता मुक्त, पर अपराध का क्या?

सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम दिल्ली में कुत्तों की संख्या तो कम करेगा, लेकिन क्या अपराध भी कम होंगे? दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या बेज़ुबान नहीं, बल्कि अपराध है। इन अपराधों की वजह से दिल्लीवासी न तो सड़कों पर सुरक्षित हैं और न ही अपने घरों में। इसलिए अपराध को रोकने के लिए सख्त कदम उठाना ज्यादा जरूरी है। पहले भी ऐसा देखा गया है कि अन्य अहम मुद्दों की जगह कम महत्व वाले विषयों पर ध्यान केंद्रित किया गया। इस बार भी आम मुद्दों के पीछे महत्वपूर्ण समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।


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