राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस 2025: कैंसर से जंग सिर्फ इलाज नहीं, जीवनशैली और सहयोग की भी कहानी है

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हर साल 7 नवंबर को, भारत में राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है, जिसकी स्थापना 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने की थी। यह तिथि अपने शोध के माध्यम से कैंसर के उपचार में अग्रणी रहीं मैरी क्यूरी की जयंती से मेल खाती है। लेकिन आज, जब भारत में हर साल 14 लाख से अधिक नए कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं, तो इस दिन का महत्व केवल इतिहास याद करने तक सीमित नहीं है। आज की चुनौती बदल गई है: कैंसर के लगभग दो-तिहाई मामले तब सामने आते हैं, जब उनका उपचार मुश्किल हो जाता है। इसका एक बड़ा कारण हमारी बदलती जीवनशैली, खाने-पीने की आदतें और पर्यावरण प्रदूषण है। यह दिवस हमें यह समझने का मौका देता है कि कैंसर की लड़ाई अब केवल अस्पताल में नहीं, बल्कि हमारी रसोई और रोज़मर्रा के जीवन में भी लड़ी जानी है।
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आधुनिक जीवनशैली: कैंसर के बढ़ते मामलों का 'नया कारण'


भारत में कैंसर के बढ़ते मामलों के लिए अब केवल तंबाकू को दोष देना काफी नहीं है। शहरीकरण (Urbanization) और आधुनिक जीवनशैली ने कई नए जोखिम पैदा किए हैं:

  • फास्ट फूड और मिलावट: पैकेज्ड (packaged) और प्रोसेस्ड फूड्स का बढ़ता चलन, साथ ही फल-सब्जियों में कीटनाशकों (pesticides) और रसायनों का उपयोग, पाचन तंत्र से जुड़े कैंसर के खतरे को बढ़ा रहा है।
  • गतिहीनता (Sedentary Lifestyle): टेक्नोलॉजी के कारण शारीरिक श्रम का कम होना और मोटापे में वृद्धि, स्तन कैंसर (Breast Cancer) और कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) जैसे कई प्रकार के कैंसर का मुख्य जोखिम कारक बन गया है।
  • पर्यावरण प्रदूषण: बड़े शहरों में वायु प्रदूषण (Air Pollution) फेफड़ों के कैंसर (Lung Cancer) को बढ़ाने में एक बड़ा योगदान दे रहा है।

यह ज़रूरी है कि जागरूकता अभियान अब केवल तम्बाकू छोड़ने पर नहीं, बल्कि संपूर्ण और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने पर भी ज़ोर दें।

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डिजिटल क्रांति: कैंसर स्क्रीनिंग को सुलभ बनाने का समाधान


भारत में सबसे बड़ी चुनौती है दूरदराज के इलाकों में स्क्रीनिंग की सुविधा का अभाव। लोग या तो जागरूकता की कमी के कारण जांच नहीं कराते, या फिर उनके पास जांच केंद्र तक पहुंचने के साधन नहीं होते। यहाँ डिजिटल तकनीक एक गेम चेंजर (Game Changer) साबित हो रही है:

  • AI और टेली-मेडिसिन: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से चलने वाले ऐप और उपकरण अब घर पर ही या छोटे क्लीनिक में मुंह और सर्वाइकल कैंसर की शुरुआती जांच में मदद कर रहे हैं। टेली-मेडिसिन के ज़रिए विशेषज्ञ डॉक्टर दूर से ही मरीज़ों को सलाह दे रहे हैं।
  • सरकारी पहल: आयुष्मान भारत और राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NPCDCS) जैसी योजनाओं ने 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए मौखिक, स्तन और सर्वाइकल कैंसर की मुफ्त स्क्रीनिंग शुरू की है। डिजिटल प्लेटफॉर्म इन योजनाओं को आम लोगों तक पहुँचाने में मदद कर रहे हैं।

जागरूकता से आगे: 'सर्विस' और 'सपोर्ट' की ज़रूरत


जागरूकता फैलाना पहला कदम है, लेकिन अंतिम लक्ष्य है सभी के लिए किफायती उपचार (Affordable Treatment) सुनिश्चित करना।


  • पैलियेटिव केयर ( Palliative Care) : भारत में 75% से अधिक कैंसर रोगियों का निदान एडवांस स्टेज (Advanced Stage) में होता है। ऐसे में, दर्द को कम करने और जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life) में सुधार लाने के लिए पैलियेटिव केयर को मुख्यधारा में लाना बहुत ज़रूरी है।
  • भावनात्मक सहारा: कैंसर का सामना कर रहे मरीज़ों और उनके परिवारों को भावनात्मक (Emotional) और मनोवैज्ञानिक (Psychological) समर्थन देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। कैंसर सर्वाइवर्स की कहानियाँ साझा करना लोगों में डर को कम करता है और आशा जगाता है।

7 नवंबर का यह दिन हमें याद दिलाता है कि कैंसर एक सामूहिक चुनौती है, जिसका सामना हमें एकजुट होकर, अपनी जीवनशैली सुधार कर, और टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल करके करना है।


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