कृष्ण छठी 2025: सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि पूरी जानकारी
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हर साल जन्माष्टमी के बाद, भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की खुशी को आगे बढ़ाते हुए 'छठी' का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व सनातन धर्म में किसी भी बच्चे के जन्म के बाद छठी मनाने की परंपरा की तरह ही महत्वपूर्ण है। भगवान के बाल रूप को समर्पित यह पर्व उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन कान्हा जी का श्रृंगार करते हैं, उन्हें भोग लगाते हैं और मंगल गीत गाकर उनका स्वागत करते हैं।
जिन भक्तों ने 15 अगस्त को जन्माष्टमी का व्रत रखा था, वे 21 अगस्त 2025 को छठी मना सकते हैं। वहीं, जिन भक्तों ने 16 अगस्त यानी उदया तिथि को जन्माष्टमी मनाई थी, वे 22 अगस्त 2025 को छठी का पर्व मनाएंगे। मथुरा-वृंदावन में 21 अगस्त को ही छठी मनाई जाएगी।
समाप्त : 22 अगस्त दोपहर 01:25 बजे तक
इस प्रकार 22 अगस्त को छठी व्रत और पूजा श्रेष्ठ मानी जाएगी।
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कृष्ण छठी 2025: सही तिथि और शुभ मुहूर्त
जन्माष्टमी की तिथि को लेकर इस साल थोड़ी असमंजस की स्थिति है, क्योंकि कुछ लोगों ने 15 अगस्त को और कुछ ने 16 अगस्त को जन्माष्टमी का व्रत रखा था। इसी वजह से कृष्ण छठी भी दो दिन मनाई जाएगी।जिन भक्तों ने 15 अगस्त को जन्माष्टमी का व्रत रखा था, वे 21 अगस्त 2025 को छठी मना सकते हैं। वहीं, जिन भक्तों ने 16 अगस्त यानी उदया तिथि को जन्माष्टमी मनाई थी, वे 22 अगस्त 2025 को छठी का पर्व मनाएंगे। मथुरा-वृंदावन में 21 अगस्त को ही छठी मनाई जाएगी।
षष्ठी तिथि
प्रारंभ : 21 अगस्त सुबह 11:42 बजे सेसमाप्त : 22 अगस्त दोपहर 01:25 बजे तक
इस प्रकार 22 अगस्त को छठी व्रत और पूजा श्रेष्ठ मानी जाएगी।
कृष्ण छठी की पूजा विधि
श्रीकृष्ण की छठी मनाने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जाता है:- स्नान और अभिषेक: सबसे पहले लड्डू गोपाल को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल का मिश्रण) से स्नान कराएं। इसके बाद साफ पानी से धोकर उन्हें एक स्वच्छ कपड़े से पोंछ लें।
- वस्त्र और श्रृंगार: लड्डू गोपाल को नए और साफ वस्त्र पहनाएं। इस दिन पीले वस्त्र पहनाना शुभ माना जाता है। इसके बाद उन्हें नए आभूषण, पगड़ी और तिलक लगाएं। यदि आपके पास नई बांसुरी है, तो वह भी कान्हा जी को अर्पित करें।
- काजल लगाना: घर की छह बुजुर्ग महिलाएं लड्डू गोपाल की आंखों में घर का बना काजल लगाती हैं। यह काजल देसी घी के दीये से तैयार किया जाता है।
- भोग और आरती: लड्डू गोपाल को खीर, पंचामृत, मीठा दूध और कढ़ी-चावल का भोग लगाएं। आरती करने के बाद किसी छोटी बच्ची के हाथों से कान्हा जी को कढ़ी-चावल का भोग अर्पित कराएं।
- मंगल गीत और झूला: पूजा के दौरान मंगल गीत गाएं और लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं। इसके बाद आरती करके पूजा को संपन्न करें।
क्यों लगाया जाता है कढ़ी-चावल का भोग?
कृष्ण छठी पर कढ़ी-चावल का भोग लगाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।- यह भोजन सादगी, पवित्रता और सात्विकता का प्रतीक है।
- मान्यता है कि बचपन में श्रीकृष्ण को दूध, चावल और दही से बने व्यंजन बहुत प्रिय थे।
- शास्त्रों के अनुसार, इस भोग से घर में शांति और समृद्धि आती है।
- आस्था है कि इस दिन कढ़ी-चावल का भोग लगाने से दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है और बच्चों की लंबी उम्र व स्वास्थ्य की रक्षा होती है।