रावण के अनसुने और रोचक तथ्य, रामायण के इस खलनायक की अनोखी कहानी
रामायण का प्रमुख पात्र रावण केवल एक दुष्ट राजा नहीं था, बल्कि उसके जीवन में कई रहस्यमयी और प्रेरणादायक पहलू छिपे हैं। दशहरा के समय जब बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है, रावण के बारे में जानना दिलचस्प हो जाता है। उनके नाम, शक्तियों और अंत की कहानी से जुड़े तथ्य हमें उनके चरित्र की गहराई दिखाते हैं। आइए, इन अनसुने तथ्यों के माध्यम से रावण को करीब से समझें।
रावण का नाम और उनकी भक्ति
रावण का नाम भगवान शिव से जुड़ा है। जब उन्होंने कैलाश पर्वत को उठाकर लंका ले जाने की कोशिश की तो उस समय शिव जी ने अपने पैर का एक अंगूठा कैलाश पर रख दिया जिसकी वजह से रावण कैलाश को ले जाने में असफल हो गया और दर्द से दहाड़ने लगा और शिव तांडव का पर्दशन करने लगा । इस से शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें 'रावण' नाम दिया, जो दहाड़ने वाले का प्रतीक है। यह घटना उनकी शिव भक्ति को दर्शाती है।
रावण के पास पुष्पक विमान जैसी उड़ान भरने वाली साधन थी, जिसे मुट्ठी भर लोग ही संचालित कर पाते थे। लंका में महियांगना जैसे स्थानों पर हवाई अड्डे भी थे, जो वैरागनटोटा और गुरुलुपोथा कहलाते थे।
रावण और उनके भाई कुम्भकर्ण विष्णु के द्वारपाल जय-विजय के अवतार थे। ब्रह्मा के चार कुमारों ने विष्णु के द्वारपालों को यह श्राप दिया कि वो अपने भगवान से अलग हो जाएंगे। यह सुनने के बाद जय-विजय ने उन से माफी मांगी, तब कुमारों ने उन्हे यह विकल्प दिया कि वो या तो सात जन्मों तक पृथ्वी पर विष्णु के सहयोगी या तीन जन्मों तक दुश्मन बन कर जन्म ले सकते हैं । उन्होंने दूसरा विकल्प चुना जिस कारण से वह राक्षस योनि में जन्मे।
जैन रामायण में रावण का अलग चित्र
जैन ग्रंथों के अनुसार, रावण सीता के पिता थे और जातिवाद के खिलाफ थे। लक्ष्मण ने उनका वध किया था, जो 20वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के काल की घटना मानी जाती है। यह कथा हिंदू रामायण से भिन्न है।
रावण के तांत्रिक रहस्य
रावण ने धन प्राप्ति के लिए तांत्रिक विधि बताई है। रुद्राक्ष की माला से 21 दिनों तक धन मंत्र का जाप करने से अकस्मात धन की प्राप्ति होती है। यह उनके तंत्र विद्या के ज्ञान को प्रमाणित करता है।
राजा अनरण्य ने युद्ध में मरने से पहले रावण को श्राप दिया कि उनका वध अनरण्य के वंश से होगा। बाद में राम ने इसे पूरा किया। रावण को अपने साम्राज्य के अंत का आभास था और वे जानते थे कि विष्णु अवतार से उनकी मृत्यु मोक्ष दिलाएगी, जिससे राक्षस जन्म से मुक्ति मिलेगी।
रावण के दस सिरों का रहस्य
रावण के दस सिर नौ मोतियों के हार से बने ऑप्टिकल भ्रम थे। कुछ कथाओं में कहा गया है कि शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने अपने सिर काटे, जिन्हें शिव ने नए सिरों में जोड़ दिया। ये सिर काम, क्रोध, मोह, लोभ, माया, द्वेष, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के प्रतीक थे।
रावण का नाम और उनकी भक्ति
रावण का नाम भगवान शिव से जुड़ा है। जब उन्होंने कैलाश पर्वत को उठाकर लंका ले जाने की कोशिश की तो उस समय शिव जी ने अपने पैर का एक अंगूठा कैलाश पर रख दिया जिसकी वजह से रावण कैलाश को ले जाने में असफल हो गया और दर्द से दहाड़ने लगा और शिव तांडव का पर्दशन करने लगा । इस से शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें 'रावण' नाम दिया, जो दहाड़ने वाले का प्रतीक है। यह घटना उनकी शिव भक्ति को दर्शाती है।
रावण की शक्तियां और आधुनिक तुलना
रावण के पास पुष्पक विमान जैसी उड़ान भरने वाली साधन थी, जिसे मुट्ठी भर लोग ही संचालित कर पाते थे। लंका में महियांगना जैसे स्थानों पर हवाई अड्डे भी थे, जो वैरागनटोटा और गुरुलुपोथा कहलाते थे।
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रावण और कुम्भकर्ण का अवतार रहस्य
रावण और उनके भाई कुम्भकर्ण विष्णु के द्वारपाल जय-विजय के अवतार थे। ब्रह्मा के चार कुमारों ने विष्णु के द्वारपालों को यह श्राप दिया कि वो अपने भगवान से अलग हो जाएंगे। यह सुनने के बाद जय-विजय ने उन से माफी मांगी, तब कुमारों ने उन्हे यह विकल्प दिया कि वो या तो सात जन्मों तक पृथ्वी पर विष्णु के सहयोगी या तीन जन्मों तक दुश्मन बन कर जन्म ले सकते हैं । उन्होंने दूसरा विकल्प चुना जिस कारण से वह राक्षस योनि में जन्मे।
जैन रामायण में रावण का अलग चित्र
जैन ग्रंथों के अनुसार, रावण सीता के पिता थे और जातिवाद के खिलाफ थे। लक्ष्मण ने उनका वध किया था, जो 20वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के काल की घटना मानी जाती है। यह कथा हिंदू रामायण से भिन्न है।
रावण के तांत्रिक रहस्य
रावण ने धन प्राप्ति के लिए तांत्रिक विधि बताई है। रुद्राक्ष की माला से 21 दिनों तक धन मंत्र का जाप करने से अकस्मात धन की प्राप्ति होती है। यह उनके तंत्र विद्या के ज्ञान को प्रमाणित करता है।
रावण के अंत की भविष्यवाणी
राजा अनरण्य ने युद्ध में मरने से पहले रावण को श्राप दिया कि उनका वध अनरण्य के वंश से होगा। बाद में राम ने इसे पूरा किया। रावण को अपने साम्राज्य के अंत का आभास था और वे जानते थे कि विष्णु अवतार से उनकी मृत्यु मोक्ष दिलाएगी, जिससे राक्षस जन्म से मुक्ति मिलेगी।
रावण के दस सिरों का रहस्य
रावण के दस सिर नौ मोतियों के हार से बने ऑप्टिकल भ्रम थे। कुछ कथाओं में कहा गया है कि शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्होंने अपने सिर काटे, जिन्हें शिव ने नए सिरों में जोड़ दिया। ये सिर काम, क्रोध, मोह, लोभ, माया, द्वेष, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के प्रतीक थे।