क्या आप जानते हैं सिखों की दिवाली क्यों है इतनी खास? बंदी छोड़ दिवस की पूरी जानकारी!

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दीपावली, पूरे भारत में प्रकाश और खुशियों का त्यौहार है। इसी दिन, सिख समुदाय एक और विशेष पर्व मनाता है जिसे 'बंदी छोड़ दिवस' (Bandi Chhor Diwas) के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार सिर्फ दीये जलाने और खुशियाँ मनाने का नहीं है, बल्कि यह अन्याय के खिलाफ संघर्ष, स्वतंत्रता की जीत और एक महान गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब की वीरता और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक है। आइए, इस विशेष दिन के इतिहास, इसके महत्व और गुरु हरगोबिंद साहिब के उन उपदेशों को गहराई से जानें जो आज भी हमें जीवन जीने की सही राह दिखाते हैं।
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बंदी छोड़ दिवस क्या है?


बंदी छोड़ दिवस एक पंजाबी शब्द है, जिसका अर्थ है 'कैदियों को रिहा करने का दिन'। यह हर साल दीपावली के दिन ही पड़ता है और सिखों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह दिन गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा मुगल सम्राट जहांगीर की कैद से 52 हिंदू राजाओं की रिहाई का प्रतीक है।

बंदी छोड़ दिवस का ऐतिहासिक महत्व


  • गुरु हरगोबिंद साहिब की गिरफ्तारी: गुरु हरगोबिंद साहिब (छठे सिख गुरु) को मुगल सम्राट जहांगीर ने 1609 में ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था। सम्राट को यह गलत जानकारी दी गई थी कि गुरु जी एक सेना बना रहे हैं और सत्ता के लिए खतरा बन सकते हैं।
  • 52 राजाओं की रिहाई: लगभग दो साल की कैद के बाद, जहांगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। लेकिन गुरु हरगोबिंद साहिब ने अकेले निकलने से इनकार कर दिया। उन्होंने शर्त रखी कि वे केवल उन्हीं कैदियों के साथ बाहर निकलेंगे जो उनके चोले (कपड़े) को पकड़ सकें।
  • '52 कली चोला': गुरु जी ने एक विशेष चोला बनवाया जिसमें 52 कलियाँ (किनारे या पट्टियाँ) थीं। हर कली को पकड़कर एक राजा किले से बाहर आया, और इस तरह गुरु जी ने अपनी चतुराई और निस्वार्थ भावना से उन सभी राजाओं को आज़ाद कराया जो लंबे समय से कैद थे।
  • अमृतसर आगमन और दीपावली: जब गुरु हरगोबिंद साहिब अमृतसर पहुंचे, तो लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। पूरे शहर को दीयों से रोशन किया गया था और यह दिन तब से 'बंदी छोड़ दिवस' के रूप में मनाया जाने लगा, जो सिखों के लिए दीपावली का ही एक रूप है।

गुरु हरगोबिंद साहिब: योद्धा गुरु


गुरु हरगोबिंद साहिब ने सिख धर्म को एक नया आयाम दिया। वे पहले गुरु थे जिन्होंने 'मीरी और पीरी' (Miri and Piri) की अवधारणा पेश की:

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  • मीरी: सांसारिक शक्ति और राजनीतिक अधिकार का प्रतीक (एक तलवार)।
  • पीरी: आध्यात्मिक शक्ति और धार्मिक अधिकार का प्रतीक (दूसरी तलवार)।

उन्होंने सिखों को आत्मरक्षा के लिए लड़ने और अन्याय के खिलाफ खड़े होने का महत्व सिखाया। उन्होंने 'अकाल तख्त' (शाश्वत सिंहासन) की स्थापना की, जो सिखों की राजनीतिक और आध्यात्मिक सत्ता का प्रतीक है।

गुरु हरगोबिंद साहिब की प्रमुख शिक्षाएं


गुरु हरगोबिंद साहिब के जीवन और उपदेश हमें कई महत्वपूर्ण सबक सिखाते हैं:


  • न्याय और स्वतंत्रता के लिए लड़ना: उन्होंने सिखाया कि अन्याय को चुपचाप सहन नहीं करना चाहिए, बल्कि इसके खिलाफ खड़े होकर न्याय और स्वतंत्रता के लिए लड़ना चाहिए, भले ही इसके लिए व्यक्तिगत जोखिम उठाना पड़े।
  • आत्मरक्षा का महत्व: गुरु जी ने सिखों को शारीरिक रूप से मजबूत और आत्मरक्षा के लिए तैयार रहने का महत्व बताया। उनका मानना था कि धर्म की रक्षा के लिए शक्ति भी आवश्यक है।
  • निस्वार्थ सेवा: उन्होंने 52 राजाओं को अपनी शर्त पर रिहा करवाकर निस्वार्थ सेवा और दूसरों के प्रति करुणा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया।
  • सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन का संतुलन: मीरी और पीरी की अवधारणा के माध्यम से, उन्होंने बताया कि आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ सांसारिक जिम्मेदारियों और सामाजिक न्याय के लिए भी प्रयास करना चाहिए।
  • समानता और भाईचारा: गुरु जी ने हमेशा सभी धर्मों और समुदायों के लोगों के बीच समानता और भाईचारे का संदेश दिया।

बंदी छोड़ दिवस कैसे मनाया जाता है?


इस दिन, सिख समुदाय:

  • गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएं: गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन और अरदास का आयोजन किया जाता है।
  • प्रकाश: घरों और गुरुद्वारों को दीयों, मोमबत्तियों और रोशनी से सजाया जाता है।
  • लंगर: बड़े पैमाने पर लंगर (मुफ्त सामुदायिक भोजन) का आयोजन किया जाता है।
  • आतिशबाजी: कई स्थानों पर आतिशबाजी भी की जाती है, जो खुशी और उत्सव का प्रतीक है।
  • सेवा: जरूरतमंदों की सेवा और दान का कार्य भी किया जाता है।


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