धनतेरस 2025: धन्वंतरि जी की आरती से पाएं स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद
दीपावली की शुरुआत धनतेरस से होती है, जो त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की आराधना विशेष महत्व रखती है, क्योंकि वे आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं। उनकी आरती गाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और परिवार को रोगमुक्त जीवन का आशीर्वाद मिलता है। यह रस्म न केवल धार्मिक है, बल्कि स्वास्थ्य जागरूकता का भी प्रतीक है। आइए, इस पावन आरती के छंदों के माध्यम से भगवान धन्वंतरि की महिमा को समझें और इसे अपने जीवन में अपनाएं।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। वे समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, जो स्वास्थ्य और अमरता का प्रतीक है। इस दिन शाम को उनकी मूर्ति या चित्र की स्थापना कर आरती उतारी जाती है। मान्यता है कि इससे सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं और जीवन स्वस्थ व सुखमय बनता है। आयुर्वेद के माध्यम से उन्होंने वनस्पतियों से औषधियां सिखाईं, जो आज भी उपयोगी हैं। धन्वंतरि पूजा से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
नीचे धन्वंतरि जी की यह पावन आरती दी गई है, जिसे भक्ति भाव से गाएं। यह आरती रोग निवारण और कल्याण के लिए विशेष फलदायी है।
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
दोहा :- मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन। जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन।।
बोलिए सब मिलकर भगवान धन्वंतरि महाराज की जय।
धन्वंतरि जी की आरती गाने वाले को कभी रोग या शोक का सामना नहीं करना पड़ता। यह आरती स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ धन-धान्य की वृद्धि भी करती है। शाम को दीप जलाकर आरती करें, अमृत कलश का चित्र रखें और भक्ति से गाएं। इससे घर का वातावरण शुद्ध होता है। वैद्य समाज इस आरती को विशेष रूप से अपनाता है, क्योंकि यह आयुर्वेद की शक्ति को याद दिलाती है। नियमित जाप से असाध्य व्याधियां भी दूर हो जाती हैं।
धन्वंतरि जी का महत्व धनतेरस पर
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। वे समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, जो स्वास्थ्य और अमरता का प्रतीक है। इस दिन शाम को उनकी मूर्ति या चित्र की स्थापना कर आरती उतारी जाती है। मान्यता है कि इससे सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं और जीवन स्वस्थ व सुखमय बनता है। आयुर्वेद के माध्यम से उन्होंने वनस्पतियों से औषधियां सिखाईं, जो आज भी उपयोगी हैं। धन्वंतरि पूजा से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।
धन्वंतरि जी की आरती: पूरा पाठ
नीचे धन्वंतरि जी की यह पावन आरती दी गई है, जिसे भक्ति भाव से गाएं। यह आरती रोग निवारण और कल्याण के लिए विशेष फलदायी है।
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
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आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।। जय धन्वंतरि देवा, जय जय धन्वंतरि देवा।।
दोहा :- मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन। जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन।।
बोलिए सब मिलकर भगवान धन्वंतरि महाराज की जय।
आरती करने के लाभ और विधि
धन्वंतरि जी की आरती गाने वाले को कभी रोग या शोक का सामना नहीं करना पड़ता। यह आरती स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ धन-धान्य की वृद्धि भी करती है। शाम को दीप जलाकर आरती करें, अमृत कलश का चित्र रखें और भक्ति से गाएं। इससे घर का वातावरण शुद्ध होता है। वैद्य समाज इस आरती को विशेष रूप से अपनाता है, क्योंकि यह आयुर्वेद की शक्ति को याद दिलाती है। नियमित जाप से असाध्य व्याधियां भी दूर हो जाती हैं।