धनतेरस पर यम दीपदान का रहस्य: पुराणों से जुड़ी कथा, महत्व और सही विधि
धनतेरस का त्योहार धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की शुरुआत करता है। इस दिन खरीदारी के अलावा यम दीपदान की परंपरा भी निभाई जाती है, जो परिवार को अकाल मौत से बचाने और सकारात्मकता लाने का माध्यम है। 18 अक्टूबर 2025 को धनतेरस मनाई जाएगी। कई लोग जानते ही नहीं कि यह दीपदान कैसे करें, कितने दीपक जलाएं और कौन-सी दिशा सही है। पुराणों में इसका वर्णन मिलता है, जो जीवन में शांति और लंबी उम्र का आशीर्वाद देता है।
यह दीपदान घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है और नकारात्मक शक्तियों को दूर भगाता है। मान्यता है कि इससे अकाल मौत का डर खत्म हो जाता है। पद्मपुराण और स्कन्दपुराण में इसे दीर्घायु और रोगों से मुक्ति का स्रोत बताया गया है। शुक्र ग्रह की अच्छाई बढ़ती है, जो धन और सौंदर्य का प्रतीक है। कर्म दोष और ग्रह बाधाएं शांत होती हैं, जिससे मन में शांति और संतोष आता है।
पद्मपुराण में एक राजा के बेटे की कहानी है, जिसकी मौत जल्दी होने वाली थी। उसकी पत्नी ने धनतेरस की रात घर के बाहर दीपक जलाए और चमकीले आभूषण बिछा दिए। यमराज दीपों की चमक से प्रभावित होकर चले गए। इसी से यम दीपदान की रिवायत चली। स्कन्दपुराण के श्लोक कहते हैं - “धनत्रयोदश्यां रात्रौ यमदीपं प्रज्वालयेत्। दीपदानं तु यं कृत्वा न यमदर्शनं भवेत्॥” इसका मतलब है कि यम दीप जलाने से मौत के बाद यमलोक का सामना नहीं करना पड़ता। एक और श्लोक पद्मपुराण है -“धनत्रयोदश्यां रात्रौ दीपं यमाय दीयते। अकालमृत्युभयात्तस्य दीपदानं विशेषतः॥” जो अकाल मौत से बचाव की बात करता है।
यम दीपदान कैसे करें
प्रदोष काल में 13 दीपक जलाएं। इनमें एक मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा में यमराज के नाम का दीपक रखें। यह गेहूं के आटे से बना हो और चावल या गेहूं के ढेर पर जलाएं। बाकी दीपक मंदिर, तुलसी, आंगन और घर के कोनों में लगाएं। घी या तिल के तेल का इस्तेमाल करें। दीपक रात भर जले तो ज्यादा फायदा। मंत्र जपें - “मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह। त्रयोदश्यां दीपदनात् सूर्यज: प्रीयतामिति।।” दक्षिण दिशा यम की मानी जाती है, इससे दुर्भाग्य और बुरे प्रभाव दूर होते हैं।
यह परंपरा परिवार की भलाई, स्वास्थ्य, धन और लंबी जिंदगी सुनिश्चित करती है। नकारात्मकता मिटती है और चेतना मजबूत होती है। धनतेरस की शाम इसे करने से खास लाभ मिलता है।
यम दीपदान का महत्व
यह दीपदान घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है और नकारात्मक शक्तियों को दूर भगाता है। मान्यता है कि इससे अकाल मौत का डर खत्म हो जाता है। पद्मपुराण और स्कन्दपुराण में इसे दीर्घायु और रोगों से मुक्ति का स्रोत बताया गया है। शुक्र ग्रह की अच्छाई बढ़ती है, जो धन और सौंदर्य का प्रतीक है। कर्म दोष और ग्रह बाधाएं शांत होती हैं, जिससे मन में शांति और संतोष आता है।
पुराणों की कथा
पद्मपुराण में एक राजा के बेटे की कहानी है, जिसकी मौत जल्दी होने वाली थी। उसकी पत्नी ने धनतेरस की रात घर के बाहर दीपक जलाए और चमकीले आभूषण बिछा दिए। यमराज दीपों की चमक से प्रभावित होकर चले गए। इसी से यम दीपदान की रिवायत चली। स्कन्दपुराण के श्लोक कहते हैं - “धनत्रयोदश्यां रात्रौ यमदीपं प्रज्वालयेत्। दीपदानं तु यं कृत्वा न यमदर्शनं भवेत्॥” इसका मतलब है कि यम दीप जलाने से मौत के बाद यमलोक का सामना नहीं करना पड़ता। एक और श्लोक पद्मपुराण है -“धनत्रयोदश्यां रात्रौ दीपं यमाय दीयते। अकालमृत्युभयात्तस्य दीपदानं विशेषतः॥” जो अकाल मौत से बचाव की बात करता है।
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यम दीपदान कैसे करें
प्रदोष काल में 13 दीपक जलाएं। इनमें एक मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा में यमराज के नाम का दीपक रखें। यह गेहूं के आटे से बना हो और चावल या गेहूं के ढेर पर जलाएं। बाकी दीपक मंदिर, तुलसी, आंगन और घर के कोनों में लगाएं। घी या तिल के तेल का इस्तेमाल करें। दीपक रात भर जले तो ज्यादा फायदा। मंत्र जपें - “मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह। त्रयोदश्यां दीपदनात् सूर्यज: प्रीयतामिति।।” दक्षिण दिशा यम की मानी जाती है, इससे दुर्भाग्य और बुरे प्रभाव दूर होते हैं।सांस्कृतिक महत्व
यह परंपरा परिवार की भलाई, स्वास्थ्य, धन और लंबी जिंदगी सुनिश्चित करती है। नकारात्मकता मिटती है और चेतना मजबूत होती है। धनतेरस की शाम इसे करने से खास लाभ मिलता है।









