पूर्णिमा पर गाएं जय गुरुदेव दयानिधि की आरती और जीवन में ज्ञान की रोशनी जगाएं
गुरु का स्थान हमारे जीवन में ईश्वर के समान माना जाता है, क्योंकि वे अज्ञान का अंधकार मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। गुरु पूर्णिमा पर गुरु की आरती करना एक विशेष परंपरा है, जो भक्तों को आशीर्वाद की वर्षा से नवाजती है। श्री गुरु आरती के बोलों में गुरुदेव की दया, ज्ञान और भक्तवत्सलता का वर्णन है। यह आरती जय गुरुदेव दयानिधि से शुरू होकर भवसागर से पार लगाने की कामना करती है।
गुरु आरती का महत्व
गुरु पूर्णिमा पर यह आरती गाने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्वरूप माना गया है, जो वेदों और पुराणों में उनकी महिमा का बखान करते हैं। यह भक्ति गीत जीवन के कष्टों जैसे मोह, क्रोध और माया से मुक्ति का संदेश देता है। गुरु के चरणों में शरणागति से ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। आरती के माध्यम से भक्त अपनी मनोकामनाएं गुरुदेव के समक्ष रखते हैं। यह परंपरा न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है, बल्कि दैनिक जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती है। गुरु की कृपा से भक्त सांसारिक बंधनों से ऊपर उठकर परम पद को प्राप्त करते हैं।
यह आरती गुरुदेव की दया और भक्तों के हित की कामना से ओतप्रोत है। नीचे दिए गए बोलों का गान पूर्णिमा पर या गुरुवार को विशेष फलदायी होता है।
श्री गुरु आरती
जय गुरुदेव दयानिधि दीनन हितकारी, स्वामी भक्तन हितकारी ।
जय जय मोह विनाशक भव बंधन हारी।।
ओम जय जय जय गुरुदेव ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, गुरु मूरति धारी,
वेद पुराण बखानत, गुरु महिमा भारी । ओम जय ।
जप तप तीरथ संयम दान बिबिध दीजै,
गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि जतन कीजै ।ओम जय ।
माया मोह नदी जल जीव बहे सारे,
नाम जहाज बिठा कर गुरु पल में तारे । ओम जय ।
काम क्रोध मद मत्सर चोर बड़े भारे,
ज्ञान खड्ग दे कर में, गुरु सब संहारे। ओम जय ।
नाना पंथ जगत में, निज निज गुण गावे,
सबका सार बताकर, गुरु मारग लावे । ओम जय ।
पांच चोर के कारण, नाम को बाण दियो,
प्रेम भक्ति से सादा, भव जल पार कियो । ओम जय ।
गुरु चरणामृत निर्मल सब पातक हारी,
बचन सुनत तम नाशे सब संशय हारी । ओम जय ।
तन मन धन सब अर्पण गुरु चरणन कीजै,
ब्रह्मानंद परम पद मोक्ष गति लीजै । ओम जय ।
श्री सतगुरुदेव की आरती जो कोई नर गावै,
भव सागर से तरकर, परम गति पावै । ओम जय।
जय गुरुदेव दयानिधि दीनन हितकारी, स्वामी भक्तन हितकारी ।
जय जय मोह विनाशक भव बंधन हारी ।
ओम जय जय जय गुरुदेव ।
आरती गान के लाभ और विधि
इस आरती का नियमित पाठ गुरु की कृपा से जीवन के संशयों को दूर करता है। बोलों में वर्णित है कि गुरु ही सच्चे मार्गदर्शक हैं, जो जप-तप और दान के बिना भी ज्ञान प्रदान करते हैं। भक्तों को सलाह दी जाती है कि इसे दीपक जलाकर, गुरु की मूर्ति या चित्र के समक्ष गाएं। इससे मन की शुद्धि होती है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। गुरु पूर्णिमा पर सामूहिक गान से भक्ति का वातावरण बनता है। यह रचना न केवल धार्मिक, बल्कि जीवन दर्शन भी सिखाती है कि गुरु के बिना कोई साधना अधूरी है।
गुरु आरती का महत्व
गुरु पूर्णिमा पर यह आरती गाने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्वरूप माना गया है, जो वेदों और पुराणों में उनकी महिमा का बखान करते हैं। यह भक्ति गीत जीवन के कष्टों जैसे मोह, क्रोध और माया से मुक्ति का संदेश देता है। गुरु के चरणों में शरणागति से ही सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। आरती के माध्यम से भक्त अपनी मनोकामनाएं गुरुदेव के समक्ष रखते हैं। यह परंपरा न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है, बल्कि दैनिक जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती है। गुरु की कृपा से भक्त सांसारिक बंधनों से ऊपर उठकर परम पद को प्राप्त करते हैं।
आरती के बोल: जय गुरुदेव दयानिधि
यह आरती गुरुदेव की दया और भक्तों के हित की कामना से ओतप्रोत है। नीचे दिए गए बोलों का गान पूर्णिमा पर या गुरुवार को विशेष फलदायी होता है।
श्री गुरु आरती
जय गुरुदेव दयानिधि दीनन हितकारी, स्वामी भक्तन हितकारी ।
जय जय मोह विनाशक भव बंधन हारी।।
ओम जय जय जय गुरुदेव ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, गुरु मूरति धारी,
वेद पुराण बखानत, गुरु महिमा भारी । ओम जय ।
जप तप तीरथ संयम दान बिबिध दीजै,
गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि जतन कीजै ।ओम जय ।
माया मोह नदी जल जीव बहे सारे,
नाम जहाज बिठा कर गुरु पल में तारे । ओम जय ।
काम क्रोध मद मत्सर चोर बड़े भारे,
ज्ञान खड्ग दे कर में, गुरु सब संहारे। ओम जय ।
नाना पंथ जगत में, निज निज गुण गावे,
सबका सार बताकर, गुरु मारग लावे । ओम जय ।
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पांच चोर के कारण, नाम को बाण दियो,
प्रेम भक्ति से सादा, भव जल पार कियो । ओम जय ।
गुरु चरणामृत निर्मल सब पातक हारी,
बचन सुनत तम नाशे सब संशय हारी । ओम जय ।
तन मन धन सब अर्पण गुरु चरणन कीजै,
ब्रह्मानंद परम पद मोक्ष गति लीजै । ओम जय ।
श्री सतगुरुदेव की आरती जो कोई नर गावै,
भव सागर से तरकर, परम गति पावै । ओम जय।
जय गुरुदेव दयानिधि दीनन हितकारी, स्वामी भक्तन हितकारी ।
जय जय मोह विनाशक भव बंधन हारी ।
ओम जय जय जय गुरुदेव ।
आरती गान के लाभ और विधि
इस आरती का नियमित पाठ गुरु की कृपा से जीवन के संशयों को दूर करता है। बोलों में वर्णित है कि गुरु ही सच्चे मार्गदर्शक हैं, जो जप-तप और दान के बिना भी ज्ञान प्रदान करते हैं। भक्तों को सलाह दी जाती है कि इसे दीपक जलाकर, गुरु की मूर्ति या चित्र के समक्ष गाएं। इससे मन की शुद्धि होती है और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। गुरु पूर्णिमा पर सामूहिक गान से भक्ति का वातावरण बनता है। यह रचना न केवल धार्मिक, बल्कि जीवन दर्शन भी सिखाती है कि गुरु के बिना कोई साधना अधूरी है।