काल भैरव जयंती पर विशेष आराधना - जानें कब, कैसे और किस मुहूर्त में करें पूजा
काल भैरव जयंती को भैरव अष्टमी या काल भैरव अष्टमी भी कहते हैं। यह 12 नवंबर 2025 को बुधवार को मनाई जाएगी। अष्टमी तिथि 11 नवंबर रात 11:08 बजे शुरू होकर 12 नवंबर रात 10:58 बजे समाप्त होगी। पूजा के लिए दो शुभ समय हैं: सुबह 6:41 से 9:23 बजे तक और सुबह 10:44 से दोपहर 12:05 बजे तक। पूजा से रोग, शत्रु भय और अकाल मृत्यु का डर दूर होता है। काशी कोतवाल कहलाने वाले काल भैरव की आरती और मंत्र भी साझा किए गए हैं।
तिथि और दिन: कब मनाएं जयंती?
पंचांग के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि इस साल 11 नवंबर की रात 11 बजकर 8 मिनट से शुरू होगी। यह तिथि 12 नवंबर को रात 10 बजकर 58 मिनट तक चलेगी। इसलिए, सूर्योदय तिथि के हिसाब से काल भैरव जयंती 12 नवंबर को बुधवार के दिन उत्सव के रूप में मनाई जाएगी। इस दिन भक्त मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं और घर पर भी विशेष पूजा का आयोजन करते हैं।
पूजा मुहूर्त: शुभ समय चुनें
इस पर्व पर पूजा दिन के किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन शास्त्रीय नियमों के अनुसार कुछ खास मुहूर्त बताए गए हैं। पहला मुहूर्त सुबह 6 बजकर 41 मिनट से सुबह 9 बजकर 23 मिनट तक का है। दूसरा उत्तम समय सुबह 10 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। इन समयों में पूजा करने से फल अधिक मिलता है। भक्तों को सलाह दी जाती है कि इन अंतरालों का लाभ उठाएं।
काल भैरव को काशी का कोतवाल माना जाता है। मान्यता है कि सच्चे मन से उनकी पूजा करने वाले के जीवन से सारे डर, दुश्मन और रुकावटें हमेशा के लिए चली जाती हैं। खासकर राहु-केतु या शनि जैसे ग्रह दोषों से पीड़ित लोगों के लिए यह पूजा बहुत फायदेमंद साबित होती है। इस जयंती पर भक्त न केवल भय मुक्त होते हैं, बल्कि समृद्धि और सुरक्षा की प्राप्ति भी करते हैं।
मंत्र और आरती: जपें ये भजन
काल भैरव की साधना के लिए एक सरल मंत्र है:
॥ ॐ भैरवाय नमः ॥
और उनकी प्रसिद्ध आरती इस प्रकार है:
॥ श्री काल भैरव आरती ॥
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।
जय काली और गौर देवी कृत सेवा ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक ।
भक्तो के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ।
चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तेल चटकी दधि मिश्रित भाषावाली तेरी ।
कृपा कीजिये भैरव, करिए नहीं देरी ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरू दम्कावत ।
बटुकनाथ बन बालक जल मन हरषावत ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहे धरनी धर नर मनवांछित फल पावे ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तिथि और दिन: कब मनाएं जयंती?
पंचांग के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि इस साल 11 नवंबर की रात 11 बजकर 8 मिनट से शुरू होगी। यह तिथि 12 नवंबर को रात 10 बजकर 58 मिनट तक चलेगी। इसलिए, सूर्योदय तिथि के हिसाब से काल भैरव जयंती 12 नवंबर को बुधवार के दिन उत्सव के रूप में मनाई जाएगी। इस दिन भक्त मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं और घर पर भी विशेष पूजा का आयोजन करते हैं।
पूजा मुहूर्त: शुभ समय चुनें
इस पर्व पर पूजा दिन के किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन शास्त्रीय नियमों के अनुसार कुछ खास मुहूर्त बताए गए हैं। पहला मुहूर्त सुबह 6 बजकर 41 मिनट से सुबह 9 बजकर 23 मिनट तक का है। दूसरा उत्तम समय सुबह 10 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12 बजकर 5 मिनट तक रहेगा। इन समयों में पूजा करने से फल अधिक मिलता है। भक्तों को सलाह दी जाती है कि इन अंतरालों का लाभ उठाएं।
महत्व: क्यों करें काल भैरव की आराधना?
काल भैरव को काशी का कोतवाल माना जाता है। मान्यता है कि सच्चे मन से उनकी पूजा करने वाले के जीवन से सारे डर, दुश्मन और रुकावटें हमेशा के लिए चली जाती हैं। खासकर राहु-केतु या शनि जैसे ग्रह दोषों से पीड़ित लोगों के लिए यह पूजा बहुत फायदेमंद साबित होती है। इस जयंती पर भक्त न केवल भय मुक्त होते हैं, बल्कि समृद्धि और सुरक्षा की प्राप्ति भी करते हैं।
मंत्र और आरती: जपें ये भजन
काल भैरव की साधना के लिए एक सरल मंत्र है:
॥ ॐ भैरवाय नमः ॥
और उनकी प्रसिद्ध आरती इस प्रकार है:
॥ श्री काल भैरव आरती ॥
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।
जय काली और गौर देवी कृत सेवा ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
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तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक ।
भक्तो के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ।
चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तेल चटकी दधि मिश्रित भाषावाली तेरी ।
कृपा कीजिये भैरव, करिए नहीं देरी ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरू दम्कावत ।
बटुकनाथ बन बालक जल मन हरषावत ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहे धरनी धर नर मनवांछित फल पावे ॥
॥ जय भैरव देवा…॥









