हारे के सहारे खाटू श्याम की आरती गाकर पाएं बाबा का साथ और आशीर्वाद

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खाटू धाम में विराजमान श्री श्याम बाबा की आरती भक्तों के दिलों को छू लेती है। यह आरती ओम जय श्री श्याम हरे से शुरू होकर भगवान की महिमा का वर्णन करती है। भक्त इसे पूजा के दौरान गाते हैं, जो आस्था और समर्पण का प्रतीक है। आइए जानें इस आरती के शब्दों और इसके आध्यात्मिक फायदों के बारे में।
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आरती का महत्व


यह आरती श्री श्याम बिहारी जी की भक्ति को समर्पित है। खाटू श्याम जी को भक्त अपना संरक्षक मानते हैं। आरती गाने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं। भगवान अपने भक्तों के हर काम को सफल बनाते हैं। यह भजन दैनिक पूजा में शामिल करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है।

खाटू श्याम जी की आरती के बोल


नीचे खाटू श्याम जी की पूर्ण आरती के शब्द दिए गए हैं। इन्हें श्रद्धा से गाएं:


ओम जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे।।

ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।।
रतन जड़ित सिंहासन,सिर पर चंवर ढुरे।
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े।।

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ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।। गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे।
खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जले।।
ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।।

मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे।
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे।।
ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।।

झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे।
भक्त आरती गावे, जय-जयकार करे।।
ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।।

जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे।
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम-श्याम उचरे।।
ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।।


श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत भक्त-जन, मनवांछित फल पावे।।
ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।।

जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे।
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे।।
ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।।

ओम जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे।।
ओम जय श्री श्याम हरे.. बाबा जय श्री श्याम हरे।।

आरती करने की विधि


आरती के दौरान भगवान के सिंहासन पर रत्न जड़े होते हैं और सिर पर चंवर चढ़ाया जाता है। केसरिया वस्त्र, कान में कुंडल, गले में फूलों की माला और सिर पर मुकुट धारण किया जाता है। धूप जलाकर दीपक की ज्योति दिखाई जाती है। भोग में मोदक, खीर और चूरमा सोने की थाली में चढ़ाया जाता है। सेवक रोजाना सेवा करते हैं। झांझ, कटोरा, घड़ियाल, शंख और मृदंग बजाए जाते हैं। भक्त जयकारे लगाते हुए गाते हैं।


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