श्री कृष्ण की कुंज बिहारी आरती पूजा और शांति के लिए हिंदी बोल

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भगवान श्री कृष्ण को कुंज बिहारी के रूप में जाना जाता है, जो वृंदावन के हरे-भरे कुंजों में अपनी मधुर लीलाएं रचते हैं। उनकी यह आरती एक प्राचीन भक्ति रचना है, जो उनके श्याम सुंदर स्वरूप, मोर मुकुट, बैजंती माला और मुरली की मधुरता का जीवंत चित्रण करती है। यह गीत विशेषकर जन्माष्टमी, रास पूर्णिमा और दैनिक कृष्ण पूजा के दौरान गाया जाता है, जो भक्तों के हृदय में भक्ति की ज्योति जागृत करता है। आरती के माध्यम से कृष्ण की सर्वव्यापीता और उनके साथ गोप-गोपियों के आनंदमय संबंधों को महसूस किया जा सकता है। इसकी पाठ से न केवल पापों का नाश होता है बल्कि दुखी आत्माओं को भी सांत्वना मिलती है। हम यहां इसकी पूरी हिंदी बोल, व्याख्या और विस्तारित लाभ बता रहे हैं, साथ ही आधुनिक संदर्भ में इसके उपयोग पर चर्चा करेंगे, ताकि नई पीढ़ी भी इस भक्ति से जुड़ सके।


कुंज बिहारी जी की आरती के बोल

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

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गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥


जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।
टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती के लाभ और महत्व


कुंज बिहारी की आरती का नियमित जाप भक्तों को अनेक लाभ प्रदान करता है। यह न केवल पापों और मोह के बंधनों से मुक्ति दिलाती है, जैसा कि "स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच" में वर्णित है, बल्कि दैनिक जीवन में भी शांति और एकाग्रता लाती है। भक्तों का मानना है कि इसका पाठ करने से मानसिक तनाव कम होता है, नींद की गुणवत्ता सुधरती है और आत्मविश्वास बढ़ता है। कृष्ण पूजा में इसका महत्व अपार है, क्योंकि यह वृंदावन की रासलीला और कृष्ण की गोप-गोपियों के साथ मित्रता को याद दिलाता है, जो राष्ट्रीय एकता और प्रेम की भावना को मजबूत करता है। इसके अलावा, यह वातावरण को पवित्र बनाता है और आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करता है। कई भक्तों के अनुभव से पता चलता है कि जन्माष्टमी या होली पर इसका सामूहिक गान उत्साह बढ़ाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। कुल मिलाकर, यह आरती कृष्ण भक्ति का एक शक्तिशाली माध्यम है, जो आधुनिक युग में भी प्रासंगिक बनी हुई है।


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