दिवाली पर लक्ष्मी गणेश की पूजा के पीछे की क्या है अनसुनी कहानी, कैसे कर सकते हैं इनकी सही आराधना
भारतीय त्यौहार अपनी अद्भुत ऊर्जा और उल्लास के लिए जाने जाते हैं। ये उत्सव हमारे जीवन में खुशियां भर देते हैं। दीपावली इन्हीं में से एक है, जो रोशनी, मिठाइयों और पटाखों से भरा होता है। कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्योहार सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान भी है, जिसे 'दीपावली पूजा' के रूप में जाना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है, जो दिवाली उत्सव का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
पूजा का आध्यात्मिक महत्व
शास्त्रों में लक्ष्मी जी को वैभव और धन की अधिष्ठात्री माना गया है, जबकि गणेश जी बुद्धि-विवेक के स्वामी हैं। लक्ष्मी की कृपा से धन तो आता है, लेकिन गणेश की आराधना से वह समझदारी से उपयोग होता है। इस संयुक्त पूजा से भक्त भौतिक सुखों में फंसने से बचते हैं और संतुलित जीवन जीते हैं। दीपावली पर यह पूजा समृद्धि के साथ विवेक की गारंटी देती है।
वैकुंठ से हुई लक्ष्मी - गणेश कि पूजा की शुरुआत
एक बार वैकुंठ लोक में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के बीच संवाद हो रहा था। लक्ष्मी जी ने गर्व से कहा कि उनकी कृपा से भक्तों को धन, वैभव, सौभाग्य और समृद्धि मिलती है, जिससे जीवन सुखमय हो जाता है। इसलिए उनकी पूजा सबसे ऊपर है। लेकिन विष्णु जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि स्त्री जीवन में मातृत्व का सुख अधूरा रह जाता है, जो पूर्णता का आधार है।इस बात से लक्ष्मी जी उदास हो गईं। उन्होंने अपनी व्यथा माता पार्वती को सुनाई। पार्वती जी ने दया से अपने पुत्र गणेश जी को लक्ष्मी को गोद दे दिया। इससे लक्ष्मी जी को मां का आनंद मिला और उनका हृदय प्रसन्न हो गया।लक्ष्मी जी ने खुशी से घोषणा की कि अब भक्तों को धन, सफलता और समृद्धि तभी मिलेगी, जब वे लक्ष्मी और गणेश दोनों की एक साथ पूजा करेंगे। तब से दीपावली पर गणेश जी को लक्ष्मी के पुत्र के रूप में पूजा जाता है। यह कथा बताती है कि जीवन में धन के साथ बुद्धि का साथ अनिवार्य है।
लक्ष्मी - गणेश पूजन की चरणबद्ध विधि
लक्ष्मी और गणेश की एक साथ पूजा का गहरा अर्थ है। भगवान गणेश बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं, जबकि देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि की। यह हमें सिखाता है कि धन का आगमन तभी शुभ होता है जब उसे सही बुद्धि और ज्ञान के साथ उपयोग किया जाए। ज्ञान के बिना प्राप्त धन अक्सर विनाशकारी साबित हो सकता है। "धन तभी उपयोगी है जब उसे सही मार्ग पर लगाया जाए।" यह युक्ति दीपावली की पूजा के मूल में है। यह हमें भौतिक समृद्धि के साथ-साथ नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को बनाए रखने का संदेश देती है।
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पूजा का आध्यात्मिक महत्व
शास्त्रों में लक्ष्मी जी को वैभव और धन की अधिष्ठात्री माना गया है, जबकि गणेश जी बुद्धि-विवेक के स्वामी हैं। लक्ष्मी की कृपा से धन तो आता है, लेकिन गणेश की आराधना से वह समझदारी से उपयोग होता है। इस संयुक्त पूजा से भक्त भौतिक सुखों में फंसने से बचते हैं और संतुलित जीवन जीते हैं। दीपावली पर यह पूजा समृद्धि के साथ विवेक की गारंटी देती है।
वैकुंठ से हुई लक्ष्मी - गणेश कि पूजा की शुरुआत
एक बार वैकुंठ लोक में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के बीच संवाद हो रहा था। लक्ष्मी जी ने गर्व से कहा कि उनकी कृपा से भक्तों को धन, वैभव, सौभाग्य और समृद्धि मिलती है, जिससे जीवन सुखमय हो जाता है। इसलिए उनकी पूजा सबसे ऊपर है। लेकिन विष्णु जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि स्त्री जीवन में मातृत्व का सुख अधूरा रह जाता है, जो पूर्णता का आधार है।इस बात से लक्ष्मी जी उदास हो गईं। उन्होंने अपनी व्यथा माता पार्वती को सुनाई। पार्वती जी ने दया से अपने पुत्र गणेश जी को लक्ष्मी को गोद दे दिया। इससे लक्ष्मी जी को मां का आनंद मिला और उनका हृदय प्रसन्न हो गया।लक्ष्मी जी ने खुशी से घोषणा की कि अब भक्तों को धन, सफलता और समृद्धि तभी मिलेगी, जब वे लक्ष्मी और गणेश दोनों की एक साथ पूजा करेंगे। तब से दीपावली पर गणेश जी को लक्ष्मी के पुत्र के रूप में पूजा जाता है। यह कथा बताती है कि जीवन में धन के साथ बुद्धि का साथ अनिवार्य है।
लक्ष्मी - गणेश पूजन की चरणबद्ध विधि
- स्थापना: चौकी पर चावल का ढेर बनाकर उस पर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। गणेश जी को लक्ष्मी जी के दाहिनी ओर स्थापित करें। कलश में जल भरकर उस पर आम के पत्ते रखकर नारियल रखें और उसे चौकी के पास स्थापित करें।
- संकल्प: पूजा करने वाला व्यक्ति हाथ में जल, फूल और चावल लेकर अपनी मनोकामना और पूजा का उद्देश्य दोहराते हुए संकल्प ले।
- गणेश जी की पूजा: सबसे पहले भगवान गणेश का आह्वान करें। उन्हें स्नान कराएं (यदि प्रतिमा हो तो), वस्त्र अर्पित करें, चंदन, कुमकुम, हल्दी लगाएं। दूर्वा और फूल चढ़ाएं। उन्हें लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। गणेश मंत्र का जाप करें।
- लक्ष्मी जी की पूजा: अब देवी लक्ष्मी का आह्वान करें। उन्हें स्नान कराएं, वस्त्र अर्पित करें, चंदन, कुमकुम, हल्दी लगाएं। कमल का फूल और अन्य फूल चढ़ाएं। उन्हें बताशे, खीर, या अन्य मिठाइयों का भोग लगाएं। लक्ष्मी मंत्र का जाप करें।
- अन्य देवताओं की पूजा: इसके बाद कुबेर, सरस्वती और अन्य देवी-देवताओं का भी स्मरण करें।
- दीपक प्रज्वलित करना: तेल या घी के दीपक जलाएं। एक बड़ा दीपक लक्ष्मी-गणेश के सामने रखें।
- कथा वाचन: दीपावली से संबंधित पौराणिक कथाओं का पाठ करें या सुनें।
- आरती: गणेश जी और लक्ष्मी जी की आरती करें। कपूर जलाकर पूरे घर में घुमाएं।
- पुष्पांजलि और प्रसाद वितरण: अंत में देवी-देवताओं को फूल अर्पित करें और सभी उपस्थित लोगों में प्रसाद वितरित करें।
- विसर्जन: पूजा समाप्त होने के बाद, प्रतिमाओं को अगले दिन या निर्धारित समय पर विधि-विधान से विसर्जित करें (यदि मिट्टी की प्रतिमाएं हों) या सम्मानपूर्वक मंदिर में रखें।
दीपावली पूजा का आध्यात्मिक महत्व
लक्ष्मी और गणेश की एक साथ पूजा का गहरा अर्थ है। भगवान गणेश बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं, जबकि देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि की। यह हमें सिखाता है कि धन का आगमन तभी शुभ होता है जब उसे सही बुद्धि और ज्ञान के साथ उपयोग किया जाए। ज्ञान के बिना प्राप्त धन अक्सर विनाशकारी साबित हो सकता है। "धन तभी उपयोगी है जब उसे सही मार्ग पर लगाया जाए।" यह युक्ति दीपावली की पूजा के मूल में है। यह हमें भौतिक समृद्धि के साथ-साथ नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को बनाए रखने का संदेश देती है।