माँ दुर्गा चालीसा के साथ नवरात्रि पूजा और आध्यात्मिक शांति

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माँ दुर्गा, जो शक्ति और करुणा की प्रतीक हैं, अपने भक्तों को हर संकट से बचाती हैं। माँ दुर्गा चालीसा एक ऐसा भक्ति भजन है, जो उनकी शक्ति, दया और राक्षसों पर विजय की कहानियों को सरल शब्दों में बयान करता है। यह पाठ नवरात्रि के पावन अवसर पर या रोज़ाना पूजा में जपने से मन को शांति और आत्मविश्वास मिलता है। इस चालीसा के सरल शब्द इसे हर आयु के भक्तों के लिए प्रिय बनाते हैं। यह न केवल भक्ति का साधन है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने का मार्ग भी है।


चालीसा का महत्व भक्ति और शक्ति का संगम)

माँ दुर्गा चालीसा का जप भक्तों को आध्यात्मिक और मानसिक बल देता है। यह पाठ माँ के विभिन्न रूपों, जैसे लक्ष्मी, सरस्वती और काली, की महिमा का गुणगान करता है। नियमित जप से भय, दुख और शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। नवरात्रि में इसका पाठ विशेष फलदायी होता है, क्योंकि यह माँ को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका है। यह चालीसा साधारण शब्दों में गहरे आध्यात्मिक संदेश देती है, जो हर भक्त के लिए उपयोगी है।


माँ दुर्गा चालीसा का पूर्ण पाठ


नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥


शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥


प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥


लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥


केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तन बीज शंखन संहारे॥


महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

आभा पुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥


प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।
काम क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥


शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपु दारुन कृपा तुम्हीं करावें॥


शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।।

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥


चालीसा जप के लाभ आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति


माँ दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ भक्तों को मानसिक शांति और आत्मविश्वास देता है। यह दुख, भय और शत्रुओं से छुटकारा दिलाता है। खासकर नवरात्रि में इसका जप करने से माँ की कृपा प्राप्त होती है। यह पाठ सरल होने के कारण सभी के लिए आसान है और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है। यह परिवार में सुख-समृद्धि और कार्यों में सफलता का द्वार खोलता है।

चालीसा पाठ की सरल विधि


चालीसा का पाठ शुद्ध मन से करें। सुबह या शाम माँ की मूर्ति के सामने बैठकर पहले दोहा पढ़ें, फिर चौपाइयाँ गाएँ। अंत में दोहा दोहराएँ। अगर संभव हो तो दीप जलाकर और संगीत के साथ पाठ करें। इससे मन शांत रहता है और भक्ति की गहराई बढ़ती है।