मां शैलपुत्री आरती: शांति और समृद्धि देने वाला पाठ
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नवरात्रि की शुरुआत मां शैलपुत्री की पूजा से होती है। मां शैलपुत्री बैल पर सवार होकर भक्तों का कल्याण करती हैं। मान्यता है कि उनकी उपासना करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। आरती का पाठ करने से न केवल मन को शांति मिलती है बल्कि माता की कृपा भी सहज ही प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री की कथा और महत्व
मां शैलपुत्री की कथा सती और शिव के विवाह से जुड़ी है। जब सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान देख आत्मदाह कर लिया था, तब अगले जन्म में वह पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। यही स्वरूप शैलपुत्री कहलाया। नवरात्रि में उनकी उपासना से आत्मबल बढ़ता है और साधक को मां दुर्गा के सभी रूपों की आराधना का फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की आराधना से मानसिक शांति, आर्थिक उन्नति और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
शैलपुत्री मां बैल असवार।
करें देवता जय जयकार।।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने ना जानी।।
पार्वती तू उमा कहलावे।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू।
दया करे धनवान करे तू।।
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती तेरी जिसने उतारी।।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिला दो।।
घी का सुंदर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के।।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।।
जय गिरिराज किशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।।
मनोकामना पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।।
मां शैलपुत्री की आरती करने से पहले प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। माता को जल, अक्षत, पुष्प और धूप अर्पित करके घी का दीप जलाना शुभ माना जाता है। नारियल और सफेद रंग के फूल चढ़ाने से माता प्रसन्न होती हैं। भक्तों का विश्वास है कि मां शैलपुत्री की आरती और पूजा से रोग-शोक दूर होते हैं, जीवन में स्थिरता आती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सोमवार के दिन विशेष रूप से उनकी आराधना का फल कई गुना अधिक मिलता है।
मां शैलपुत्री की आरती करने से साधक के जीवन से भय और कष्ट दूर होते हैं।
आरती का पाठ भक्तों को शक्ति और स्थिरता प्रदान करता है।
नवरात्रि के पहले दिन यह आरती करने से मां दुर्गा के सभी रूपों की कृपा सहज प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री की कथा और महत्व
मां शैलपुत्री की कथा सती और शिव के विवाह से जुड़ी है। जब सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान देख आत्मदाह कर लिया था, तब अगले जन्म में वह पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में प्रकट हुईं। यही स्वरूप शैलपुत्री कहलाया। नवरात्रि में उनकी उपासना से आत्मबल बढ़ता है और साधक को मां दुर्गा के सभी रूपों की आराधना का फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री की आराधना से मानसिक शांति, आर्थिक उन्नति और जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार।
करें देवता जय जयकार।।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने ना जानी।।
पार्वती तू उमा कहलावे।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।।
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ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू।
दया करे धनवान करे तू।।
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती तेरी जिसने उतारी।।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिला दो।।
घी का सुंदर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के।।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।।
जय गिरिराज किशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।।
मनोकामना पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।।
पूजा विधि और लाभ
मां शैलपुत्री की आरती करने से पहले प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। माता को जल, अक्षत, पुष्प और धूप अर्पित करके घी का दीप जलाना शुभ माना जाता है। नारियल और सफेद रंग के फूल चढ़ाने से माता प्रसन्न होती हैं। भक्तों का विश्वास है कि मां शैलपुत्री की आरती और पूजा से रोग-शोक दूर होते हैं, जीवन में स्थिरता आती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सोमवार के दिन विशेष रूप से उनकी आराधना का फल कई गुना अधिक मिलता है।
आरती का महत्व
मां शैलपुत्री की आरती करने से साधक के जीवन से भय और कष्ट दूर होते हैं।
आरती का पाठ भक्तों को शक्ति और स्थिरता प्रदान करता है।
नवरात्रि के पहले दिन यह आरती करने से मां दुर्गा के सभी रूपों की कृपा सहज प्राप्त होती है।