महानवमी 2025 कैसे मनाई जाती है? जानें पूरी जानकारी
नवरात्रि का नौ दिवसीय उत्सव, माँ दुर्गा की शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। इन नौ दिनों का समापन महानवमी के दिन होता है, जिसे दुर्गा नवमी भी कहा जाता है। यह दिन माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप, माँ सिद्धिदात्री को समर्पित है। 'सिद्धिदात्री' का अर्थ है 'सिद्धियों (अलौकिक शक्तियों) को देने वाली'। मान्यता है कि इनकी पूजा से भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और उनके जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस वर्ष (2025) महानवमी 1 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी।
नवमी तिथि शुरू: 30 सितंबर 2025, शाम 06:06 बजे
नवमी तिथि समाप्त: 1 अक्टूबर 2025, शाम 07:01 बजे
महानवमी का उत्सव भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है:
आयुध पूजा (दक्षिणी भारत): दक्षिण भारत में, विशेषकर कर्नाटक और तमिलनाडु में, इस दिन आयुध पूजा (अस्त्र पूजा) का चलन है। इस दौरान लोग अपने औज़ारों, मशीनों, पुस्तकों और वाहनों की पूजा करते हैं। यह पूजा जीवन में प्रगति और आजीविका के लिए माँ दुर्गा के आशीर्वाद को दर्शाती है। इसे अस्त्र पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
सरस्वती पूजा: कई स्थानों पर, महानवमी पर माँ दुर्गा को सरस्वती (ज्ञान और विद्या की देवी) के रूप में पूजा जाता है। इस दिन विशेष रूप से पुस्तकों, संगीत वाद्ययंत्रों और शिक्षण सामग्री की पूजा की जाती है।
बथुकम्मा उत्सव का समापन (तेलंगाना): तेलंगाना क्षेत्र में, यह तिथि बथुकम्मा उत्सव के समापन का भी दिन होती है। हिंदू महिलाएँ फूलों को सात परतों में शंकु के आकार में सजाकर, देवी गौरी (दुर्गा का एक रूप) को अर्पित करती हैं। यह उत्सव स्त्रीत्व के गौरव और सुंदरता का सम्मान करता है।
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नवमी तिथि और समय:
नवमी तिथि शुरू: 30 सितंबर 2025, शाम 06:06 बजे
नवमी तिथि समाप्त: 1 अक्टूबर 2025, शाम 07:01 बजे
माँ सिद्धिदात्री की पूजा और आध्यात्मिक महत्व
- माँ सिद्धिदात्री कमल के आसन पर विराजमान हैं और उनके हाथों में कमल, शंख, गदा और सुदर्शन चक्र सुशोभित हैं। इन्हें ज्ञान और विद्या की देवी सरस्वती का स्वरूप भी माना जाता है।
- महानवमी, पिछले आठ दिनों की पूजा और तपस्या की पूर्णता का प्रतीक है। यह वह दिन है जब देवी दुर्गा ने महिषासुर पर अपनी अंतिम विजय प्राप्त की थी, इसलिए यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।
- इस पवित्र दिन पर कई भक्त हवन (अग्नि अनुष्ठान) करते हैं। माँ सिद्धिदात्री को समर्पित यह हवन, विभिन्न सामग्रियों के साथ किया जाता है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। हवन के बाद पूर्णाहुति दी जाती है, जिसके साथ ही नवरात्रि व्रत का विधिवत समापन होता है।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने भी माँ सिद्धिदात्री की कृपा से ही आठ सिद्धियाँ प्राप्त की थीं, जिसके बाद भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हो गया और वे 'अर्धनारीश्वर' कहलाए।
कन्या पूजन: देवी स्वरूप का सम्मान
- नवरात्रि पूजन का सबसे महत्वपूर्ण और भावनात्मक अनुष्ठान कन्या पूजन है, जो महा अष्टमी या महानवमी के दिन किया जाता है।
- पूजा का विधान: इस दिन नौ छोटी कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों के रूप में पूजा जाता है। साथ ही, एक छोटे बालक (जिसे भैरव का स्वरूप मानते हैं) को भी भोजन कराया जाता है।
- अनुष्ठान: भक्त श्रद्धा और सम्मान के साथ कन्याओं के पैर धोते हैं, उनके मस्तक पर कुमकुम का तिलक लगाते हैं, उन्हें चुनरी और मौली अर्पित करते हैं।
- भोग: कन्याओं को विशेष रूप से सात्त्विक भोजन, जैसे हलवा, पूरी और काले चने का भोग लगाया जाता है। भोजन के बाद उन्हें दक्षिणा और उपहार देकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। यह परंपरा समाज में नारी शक्ति और बालिकाओं के प्रति आदर व्यक्त करती है।
क्षेत्रीय परंपराएँ और उत्सव
महानवमी का उत्सव भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है:
आयुध पूजा (दक्षिणी भारत): दक्षिण भारत में, विशेषकर कर्नाटक और तमिलनाडु में, इस दिन आयुध पूजा (अस्त्र पूजा) का चलन है। इस दौरान लोग अपने औज़ारों, मशीनों, पुस्तकों और वाहनों की पूजा करते हैं। यह पूजा जीवन में प्रगति और आजीविका के लिए माँ दुर्गा के आशीर्वाद को दर्शाती है। इसे अस्त्र पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
सरस्वती पूजा: कई स्थानों पर, महानवमी पर माँ दुर्गा को सरस्वती (ज्ञान और विद्या की देवी) के रूप में पूजा जाता है। इस दिन विशेष रूप से पुस्तकों, संगीत वाद्ययंत्रों और शिक्षण सामग्री की पूजा की जाती है।
बथुकम्मा उत्सव का समापन (तेलंगाना): तेलंगाना क्षेत्र में, यह तिथि बथुकम्मा उत्सव के समापन का भी दिन होती है। हिंदू महिलाएँ फूलों को सात परतों में शंकु के आकार में सजाकर, देवी गौरी (दुर्गा का एक रूप) को अर्पित करती हैं। यह उत्सव स्त्रीत्व के गौरव और सुंदरता का सम्मान करता है।