नरसिंह आरती: प्रह्लाद की रक्षा करने वाले भगवान की स्तुति
भगवान विष्णु के इस अवतार ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए होलिका को नष्ट किया था। यह आरती भक्तों में भक्ति और उत्साह जगाती है और होली के रंगों के बीच नरसिंह भगवान की महिमा का गुणगान करती है। नरसिंह, भगवान विष्णु का चौथा अवतार, आधा मनुष्य और आधा शेर के रूप में प्रकट हुए थे। होली पर उनकी आरती गाकर भक्त उनकी शक्ति और करुणा की स्तुति करते हैं। यह आरती होली की पूजा को और भी पवित्र बनाती है, जिसे घरों और मंदिरों में उत्साह के साथ गाया जाता है। नरसिंह भगवान की आरती भक्तों के मन में भक्ति का संचार करती है। यह आरती प्रह्लाद की भक्ति और नरसिंह के चमत्कार को याद दिलाती है, जिन्होंने हिरण्यकशिपु का वध कर अपने भक्त की रक्षा की। होली की रात में होलिका दहन के बाद इस आरती को गाने से बुराई का अंत और अच्छाई की जीत का संदेश मजबूत होता है। यह आरती भक्तों को नरसिंह भगवान के प्रति श्रद्धा बढ़ाने और जीवन में साहस व विश्वास लाने में मदद करती है।
नरसिंह भगवान की आरती
ओम जय नरसिंह हरे, प्रभु जय नरसिंह हरे।
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, जनका ताप हरे॥
ओम जय नरसिंह हरे
तुम हो दिन दयाला, भक्तन हितकारी, प्रभु भक्तन हितकारी।
अद्भुत रूप बनाकर, अद्भुत रूप बनाकर, प्रकटे भय हारी॥
ओम जय नरसिंह हरे
सबके ह्रदय विदारण, दुस्यु जियो मारी, प्रभु दुस्यु जियो मारी।
दास जान आपनायो, दास जान आपनायो, जनपर कृपा करी॥
ओम जय नरसिंह हरे
ब्रह्मा करत आरती, माला पहिनावे, प्रभु माला पहिनावे।
शिवजी जय जय कहकर, पुष्पन बरसावे॥
ओम जय नरसिंह हरे
आरती का आध्यात्मिक महत्व
यह आरती भगवान नृसिंह के उस अद्भुत और शक्तिशाली रूप का गुणगान करती है, जिसमें उन्होंने स्तंभ फाड़कर अपने भक्त की पुकार पर तुरंत दर्शन दिए थे। आरती में उन्हें दिन दयाला (दीनों पर दया करने वाला) और भक्तन हितकारी कहा गया है। यह स्तुति इस बात पर जोर देती है कि नृसिंह भगवान ने अपने भयानक रूप से भय को हरने वाले कार्य किए और दुष्टों का संहार किया। आरती के अंतिम छंद में बताया गया है कि न सिर्फ मनुष्य, बल्कि ब्रह्मा जी स्वयं उनकी आरती करते हैं और शिवजी 'जय जय' कहकर पुष्पों की वर्षा करते हैं। इस आरती का पाठ करना भक्तों को यह याद दिलाता है कि जब भी धर्म पर संकट आता है, भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं
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नरसिंह भगवान की आरती
ओम जय नरसिंह हरे, प्रभु जय नरसिंह हरे।
स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, जनका ताप हरे॥
ओम जय नरसिंह हरे
तुम हो दिन दयाला, भक्तन हितकारी, प्रभु भक्तन हितकारी।
अद्भुत रूप बनाकर, अद्भुत रूप बनाकर, प्रकटे भय हारी॥
ओम जय नरसिंह हरे
सबके ह्रदय विदारण, दुस्यु जियो मारी, प्रभु दुस्यु जियो मारी।
दास जान आपनायो, दास जान आपनायो, जनपर कृपा करी॥
ओम जय नरसिंह हरे
ब्रह्मा करत आरती, माला पहिनावे, प्रभु माला पहिनावे।
शिवजी जय जय कहकर, पुष्पन बरसावे॥
ओम जय नरसिंह हरे
आरती का आध्यात्मिक महत्व
यह आरती भगवान नृसिंह के उस अद्भुत और शक्तिशाली रूप का गुणगान करती है, जिसमें उन्होंने स्तंभ फाड़कर अपने भक्त की पुकार पर तुरंत दर्शन दिए थे। आरती में उन्हें दिन दयाला (दीनों पर दया करने वाला) और भक्तन हितकारी कहा गया है। यह स्तुति इस बात पर जोर देती है कि नृसिंह भगवान ने अपने भयानक रूप से भय को हरने वाले कार्य किए और दुष्टों का संहार किया। आरती के अंतिम छंद में बताया गया है कि न सिर्फ मनुष्य, बल्कि ब्रह्मा जी स्वयं उनकी आरती करते हैं और शिवजी 'जय जय' कहकर पुष्पों की वर्षा करते हैं। इस आरती का पाठ करना भक्तों को यह याद दिलाता है कि जब भी धर्म पर संकट आता है, भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं